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भारतीय कृषि श्रमिकों की समस्या निदान हेतु भारत द्वारा प्रयास (Problems Of Formars in India)

Problems Of Formars in India
Written by Abhishek Dubey

नमस्कार दोस्तो , मैं अभिषेक दुबे ( ABHISHEK DUBEY ) एक बार फिर से OnlineGkTrick.com  पर आपका स्वागत करता हूँ , दोस्तों इस पोस्ट मे  हम आपको भारतीय कृषि श्रमिकों की समस्या निदान हेतु भारत द्वारा प्रयास (Problems Of Formars in India),मौसमी रोजगार,ऋणग्रस्ततानिम्न मजदूरी,आवास की समस्या,मजदूरों की छँटनी ,बंधुआ मजदूर प्रथा का अंत,भूमिहीन श्रमिकों के लिए भूमि की व्यवस्था,कृषि श्रमिक सहकारिता का संगठन,कुटीर एवं लघु उद्योगों का विकास,ऋण मुक्ति कानून की जानकारी दे रहे है. जो आपके आगामी प्रतियोगी परीक्षाओ के लिए बहुत Important है , तो दोस्तों उम्मीद है यह जानकारी आपके लिए काफी महत्वपूर्ण साबित होगी !

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भारतीय कृषि श्रमिकों की समस्या निदान हेतु भारत द्वारा प्रयास (Problems Of Formars in India)

कृषि श्रमिक:-

वह व्यकित जो किसी व्यक्ति की भूमि पर केवल एक श्रमिक (मजदूर) के रूप में कार्य करता है। तथा अपने श्रम (काम) के बदले में रूपये या फसल (अनाज) के रूप में मजदूरी प्राप्त करता है। और कार्य के संचालन देख-रेख या लाभ-हानि के जोखिम के प्रति उत्तरदाई नहीं होता और ना ही श्रमिक को उस भूमि के संबंध में कोई अधिकार प्राप्त होता है। उस व्यक्ति को कृषि श्रमिक कहा जाता है।

कृषि श्रमिकों की समस्याएं:-

भारत में कृषि श्रमिकों की अनेक कठिनाइयां है जो इस प्रकार है। 

  • मौसमी रोजगार
  • ऋणग्रस्तता
  • निम्न मजदूरी
  • आवास की समस्या
  • मजदूरों की छँटनी

मौसमी रोजगार:-  

अधिकांश कृषि श्रमिकों को वर्ष -भर कार्य नही मिल पाता हैै। उनकी माँग फसल की बुवाई तथा कटाई के समय अधिक होती है। कृषि श्रमिकों 40 दिन कार्य करता है। और चार महीनेवह बेकार रहता है।

ऋणग्रस्तता:- 

भारतीय कृषि श्रमिकों को कम मजदूरी मिलती है। वे वर्ष में कई महीने बेरोजगार रहते हैं। इस कारण उनकी निर्धनता बढ़ जाती है। और अपने सामाजिक कार्यों के लिए जैसे विवाह जन्म आदि पर वे महाजनों से ऋण लेते हैं। और परिणाम स्वरूप उनके ऊपर ऋणग्रस्तता अधिक हो जाती है। वर्ष 2005 में जारी एन. एस. एस. डी. की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में कृषक परिवारों पर औसत ऋण भार ₹ 12,585 है। 

निम्न मजदूरी:-   

भारत में कृषि श्रमिकों की मजदूरी की दर अत्यधिक नीची हैं जो उनकी लिंग आदि से निर्धारित होती है। जैसे स्त्रियों बच्चों व बूढ़ों को कम मजदूरी दी जाती है। उससे उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं हो पाती। और इस कारण उनका जीवन स्तर तथा स्वास्थ्य निम्न कोटि का हो जाता है। तथा इसी कारण श्रम की कुशलता में भी कमी है। 

आवास की समस्या:- 

कृषि श्रमिकों की आवासीय स्थिति दयनीय होती है। इनके मकान कच्ची मिट्टी के बने होते हैं। जिनमें सर्दी गर्मी और बरसात में सुरक्षा का अभाव होता है। समस्त परिवार एवं पशु रात के समय एक ही मकान में रहते हैं। जिससे वातावरण दूषित रहता है। 

मजदूरों की छँटनी:- 

औद्योगिक श्रमिकों को कभी-कभी बेकारी का सामान भी करना पड़ता है। कारखाने में कभी उद्योग में घाटे की स्थित कभी वस्तु की मांग की कमी हो जाने के कारण उद्यमी कारखानों को बंद कर देतें है। इस स्थिति में श्रमिकों को स्थाई या अस्थाई बेरोजगारी का सामना करना पड़ता है। उनके समक्ष आर्थिक समस्या उत्पन्न हो जाती है। 

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कृषि श्रमिकों की समस्या के निवारण हेतु सरकार द्वारा किए गए प्रयास:- 

भारत के स्वतंत्र होते ही सरकार ने जिन प्रमुख कार्यों की ओर ध्यान दिया उनमें से एक महत्वपूर्ण कार्य मजदूरों का कल्याण भी था। कृषि श्रमिकों की समस्या के निवारण हेतु सरकार ने निम्नलिखित कदम उठाए हैं-

  • बंधुआ मजदूर प्रथा का अंत
  • भूमिहीन श्रमिकों के लिए भूमि की व्यवस्था
  • कृषि श्रमिक सहकारिता का संगठन
  • कुटीर एवं लघु उद्योगों का विकास
  • ऋण मुक्ति कानून

 बंधुआ मजदूर प्रथा का अंत:-

गाँवो में भूमिहीन मजदूरों की एक बड़ी संख्या ऐसी है जो बंधुआ मजदूरों के रूप में काम करती थी जुलाई 1975 में प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने 20 सूत्री कार्यक्रम के अंतर्गत यह घोषित किया कि अगर कहीं बंधुआ मजदूर हैं तो उन्हें मुक्त कर दिया जाए। और यह व्यवस्था गैरकानूनी घोषित कर दी जाए। केंद्रीय श्रम मंत्रालय ने एक अध्यादेश जारी करके बंधुआ मजदूरी प्रथा को समाप्त कर दिया है। 

भूमिहीन श्रमिकों के लिए भूमि की व्यवस्था:

सरकार ने जोतों की सीमा का निर्धारण करके अतिरिक्त भूमि को भूमि हीन कृषको में बांटने की व्यवस्था की। तथा भूदान ग्रामदान आंदोलन आदि से प्राप्त भूमि को भूमिहीन श्रमिको में बांटा गया। इस कार्य के लिए चतुर्थ पंचवर्षीय योजना में विशेष बल दिया गया। 

कृषि श्रमिक सहकारिता का संगठन:- 

 कृषि श्रमिक सहकारी समितियां लघु एवं सीमांत कृषकों ग्रामीणों तथा श्रमिकों को सुविधाएं देने के उद्देश्य से स्थापित की गई हैं। ऐसी समितियां नहरों एवं तालाबों की खुदाई सड़कों के निर्माण आदि का ठेका लेती है। जिससे श्रमिकों को रोजगार के अवसर मिलते हैं। अब तक लगभग 213 ऐसी समितियों की स्थापना हो चुकी है। 

कुटीर एवं लघु उद्योगों का विकास:-  

कृषि पर हुई जनसंख्या के भार को कम करने के लिए सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों में कुटीर और लघु उद्योगों के विकास को महत्व दिया। 

ऋण मुक्ति कानून:- 

कृषि श्रमिकों को ऋण मुक्ति कानून दिलाने के लिए उत्तर प्रदेश तथा कई अन्य राज्यों ने अध्यादेश के माध्यम से कानून बनाया। इस कानून के अनुसार जिन श्रमिकों की वार्षिक आय ₹ 2,400 या इससे कम है उनको पुराने ऋण से मुक्त कर दिया गया है। सन् 1975 में लघु कृषकों भूमिहीन कृषकों व कारीगरों पर महा जनों के ऋणों से मुक्ति की घोषणा की गई।

कृषि मजदूरों के जीवन स्तर को सरकार ने विभिन्न कानून बनाकर एवं उन्हें लागू कर सुधारने का प्रयास किया है।

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About the author

Abhishek Dubey

नमस्कार दोस्तों , मैं अभिषेक दुबे, Onlinegktrick.com पर आप सभी का स्वागत करता हूँ । मै उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले का रहने वाला हूँ ,मैं एक upsc Aspirant हूँ और मै पिछले दो साल से upsc की तैयारी कर रहा हूँ ।

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