नमस्कार दोस्तो , मैं अभिषेक दुबे ( ABHISHEK DUBEY ) एक बार फिर से OnlineGkTrick.com पर आपका स्वागत करता हूँ , दोस्तों इस पोस्ट मे हम आपको ब्रिटिश शासन में संवैधानिक विकास की जानकारी उपलब्ध करा रहे है ! जो आपके आगामी प्रतियोगी परीक्षाओ के लिए बहुत Important है , तो दोस्तों उम्मीद है यह जानकारी आपके आने वाले लगभग सभी Compatitive Exams लिए काफी Helfull साबित होगा .
चार्टर अधिनियम 1853
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- कंपनी को भारतीय प्रदेशों को जब तक संसद चाहे तब तक के लिए अपने अधीन रखने की अनुमति दी गई
- गवर्नर जनरल को बंगाल के शासन से मुक्त करते हुए वहां के शासन के लिए एक लेफ्टिनेंट गवर्नर की नियुक्ति की गई
- गवर्नर जनरल की विधाई एवं कार्यपालिका शक्तियों को पृथक कर दिया गया अतः गवर्नर जनरल की परिषद से अलग एक विधान परिषद की स्थापना हुई
- कंपनी के कर्मचारियों की नियुक्ति के लिए प्रतियोगी परीक्षा की व्यवस्था की गई
- निदेशक मंडल में सदस्यों की संख्या 24 से कम करके 18 कर दी गई तथा इसमें 6 सदस्यों को नियुक्त करने का अधिकार ब्रिटिश क्राउन को दे दिया गया
- निदेशक मंडल के सदस्यों के लिए योग्यता निर्धारित की गई
- विधि आयोग जो कि समाप्त हो चुका था इसके स्थान पर इंग्लिश लॉ कमीशन की नियुक्ति की गई इसी कमीशन ने भारतीय दंड संहिता दीवानी तथा फौजदारी प्रक्रियाओं के संकलन को अंतिम रूप दिया
1858 का भारतीय शासन अधिनियम
- 1857 की क्रांति ने कंपनी शासन की असंतोषजनक नीतियों को उजागर कर दिया था जिससे ब्रिटिश संसद को कंपनी को पद से हटाने का मौका मिल गया और इस अधिनियम द्वारा निम्न प्रावधान किए गए
- भारतीय प्रशासन ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथों से लेकर सीधे ब्रिटिश क्राउन के अधीन कर दिया गया
- अब भारत का शासन ब्रिटिश साम्राज्ञी की ओर से भारत राज्य सचिव को चलाना था जिसकी सहायता के लिए 15 सदस्य भारत परिषद का गठन किया गया अब भारत में शासन से संबंधित सभी कानूनों और कार्यवाहियों पर भारत सचिव की स्वीकृति अनिवार्य कर दी गई
- अब गवर्नर जनरल क्राउन का प्रतिनिधि हो गया तथा उसे वायसराय की उपाधि मिली
- अनुबंध सिविल सेवा में नियुक्ति के लिए प्रतियोगिता द्वारा नियुक्ति की जाने लगी
अखिल भारतीय सेवाएं तथा अर्थव्यवस्था से संबंध मसलों पर भारत सचिव भारत परिषद की राय मानने के लिए बाध्य था - भारत राज्य सचिव एक निगम निकाय घोषित कर दिया गया जिस पर इंग्लैंड एवं भारत में दावा किया जा सकता था अथवा जो दावा दायर कर सकता था
भारतीय परिषद अधिनियम 1861
- गवर्नर जनरल की कार्यकारी परिषद का विस्तार करते हुए उसमें कुछ गैर सरकारी सदस्यों को शामिल किया गया
- भारतीय प्रतिनिधियों को कानून निर्माण करने की प्रक्रिया में शामिल किया जाने लगा
- इस अधिनियम में पहली बार विभागीय प्रणाली का आरंभ हुआ
- गवर्नर जनरल को पहली बार अध्यादेश निकालने की शक्ति दे दी गई
- विकेंद्रीकरण की प्रक्रिया को शुरु किया गया जिसमें बंबई और मद्रास को पुनः विधाई अधिकार दिए गए
भारतीय परिषद अधिनियम 1892
- गैर सरकारी सदस्यों को नियुक्त करने के लिए विशुद्ध नामांकन के स्थान पर सिफारिश के आधार पर नामांकन की पद्धति लागू की गई
- परिषदों को बजट पर विचार-विमर्श करने एवं कार्यपालिका से संबंधित प्रश्न करने का अधिकार दे दिया गया
- परंतु इस अधिनियम में व्याप्त विसंगतियों के कारण भारतीय राष्ट्रवादियों ने अधिनियम की जमकर आलोचना की और यह माना गया कि स्थानीय निकायों के चुनाव मंडल बनाना एक प्रकार से इनके द्वारा मनोनीत करना ही है विधानमंडल को बहुत ही सीमित शक्तियां प्राप्त थी जैसे सदस्य अनुपूरक प्रश्न नहीं पूछ सकते थे किसी भी प्रश्न का उत्तर देने से मना किया जा सकता था कुछ वर्गों को कोई प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया था जबकि कुछ को बहुत ज्यादा जैसे मुंबई में 2 स्थान यूरोपीय व्यापारियों को दिए गए जबकि भारतीय व्यापारियों को एक भी नहीं
भारत परिषद अधिनियम 1909
- इसे मार्ले-मिंटो सुधार भी कहा जाता है
- तत्कालीन भारत सचिव लॉर्ड मार्ले और वायसराय मिन्टो के नाम पर प्रतिनिधिक और लोकप्रियता के क्षेत्र में किए सुधारों का समावेश 1909 के भारतीय परिषद अधिनियम में किया गया
- इन सुधारों के पीछे दो घटनाएं मुख्य थी प्रथम अक्टूबर 1906 आगा खान के नेतृत्व में एक मुस्लिम प्रतिनिधिमंडल लार्ड मिंटो से मिला और मांग की कि मुसलमानों को प्रथम निर्वाचन प्रणाली की सुविधा मिले तथा द्वितीय मांग थी कि मुसलमानों को उनकी जनसंख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व मिले
- इन्हीं परिपेक्ष में भारतीय परिषद अधिनियम 1909 के प्रावधान बनाए गए थे
- इस अधिनियम द्वारा मुस्लिम समुदाय के लिए पृथक प्रतिनिधित्व की व्यवस्था की गई
- प्रांतीय विधान परिषदों के आकार में वृद्धि करते हुए उसमें कुछ निर्वाचित गैर सरकारी सदस्यों को भी शामिल किया गया
- निर्वाचित गैर सरकारी सदस्यों के शामिल होने से प्रांतीय विधान मंडलों में शासकीय बहुमत समाप्त हो गया परंतु केंद्रीय विधान परिषद में यह बना रहा
- कुछ विनिर्दिष्ट विषयों को छोड़कर विधान परिषदों को यह अधिकार दिया गया कि वह बजट या लोकहित के मुद्दों पर प्रस्ताव पारित कर प्रशासन पर प्रभाव डाल सकें
भारत शासन अधिनियम 1919
- इसे मांटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार भी कहा जाता है
- इस अधिनियम के अंतर्गत प्रांतों में द्वैध शासन की व्यवस्था की गई जिसके तहत प्रांतीय विषयों को आरक्षित एवं हस्तांतरित दो वर्गों में विभाजित किया गया प्रांतीय विधान परिषदों में निर्वाचित सदस्यों की संख्या 70% तक कर दी गई
- उत्तरदाई सरकार की नीवं हस्तांतरित विषयों के संकीर्ण क्षेत्र में डाली गई
प्रांतीय गवर्नर एवं उसकी कार्यकारी परिषद द्वारा आरक्षित विषयों का प्रशासन होना निश्चित हुआ जिसमें कोई भी विधानमंडल के प्रति उत्तरदाई नहीं था - प्रशासन के समस्त विषयों को केंद्रीय एवं प्रांतीय विषयों में विभाजित किया गया स्थूल रूप से राष्ट्रीय महत्व के विषयों को केंद्रीय एवं प्रांतीय महत्व के विषयों को प्रांतीय विषय के तहत रखा गया
- प्रांतों का राजस्व केंद्रीय राजस्व से अलग कर दिया गया केंद्रीय विधान परिषद को द्विसदनीय पहली बार बनाया गया इस के उच्चतर सदन को राज्य परिषद कहा गया जिस का गठन 60 सदस्यों से हुआ
- राज्य परिषद के 60 सदस्यों में 34 निर्वाचित सदस्य थे निचले सदन जिसका नाम विधानसभा था इसमें 144 सदस्य थे इस में से 104 सदस्य निर्वाचित सदस्य थे
- दोनों सदनों की शक्तियां प्राय समान थी परंतु बजट पर मतदान करने का अधिकार निचले सदन को ही था गवर्नर जनरल को भारतीय विधान मंडल द्वारा पारित किसी विधेयक पर वीटो करने अथवा सम्राट के विचारार्थ प्रेषित करने का अधिकार दिया गया गवर्नर जनरल को भी अधिकार दिया गया के विधान मंडल द्वारा नामंजूर किए गए किसी विधेयक या अनुदान को प्रमाणित कर दे और गवर्नर जनरल आपात की दशा में अध्यादेश जारी कर सकता था
भारत शासन अधिनियम 1935
- 1935 ईस्वी के भारत शासन अधिनियम द्वारा परिसंघ की स्थापना का प्रावधान था जिसमें प्रांतों और देशी रियासतों की इकाइयां थी देसी रियासतों को इसमें शामिल होने का विकल्प था हालांकि यह परिसंघ कभी नहीं बन सका
- इस अधिनियम के द्वारा विधाई शक्तियों का केंद्र तथा प्रांतों के बीच विभाजन किया गया
- 1937 में इस अधिनियम के प्रावधानों के तहत प्रांतीय स्वायत्तता प्रभावी की गई प्रांतीय गवर्नर सम्राट की ओर से प्रांत की कार्यपालिका शक्तियों का प्रयोग करता था अब वह गवर्नर जनरल के अधीन नहीं रहा था
- प्रांतीय गवर्नर को मंत्रियों की सलाह से शासन करना था जो प्रांतीय विधानमंडल के प्रति उत्तरदाई थे
- प्रांतों में द्वैध शासन प्रणाली समाप्त कर दी गई परंतु केंद्र में लागू की गई अब गवर्नर-जनरल आरक्षित विषयों के मामलों में केंद्रीय विधानमंडल के प्रति उत्तरदाई नहीं रहा
- इस अधिनियम के तहत एक संघीय न्यायालय की स्थापना की गई जिसमें एक मुख्य न्यायाधीश तथा दो अन्य न्यायाधीश थे
- संघीय न्यायालय का अधिकार क्षेत्र प्रांतों तथा रियासतों तक विस्तृत था न्यायालय से संबंधित अंतिम शक्ति प्रिवी काउंसिल लंदन को प्राप्त थी
- इस अधिनियम द्वारा भारत परिषद समाप्त कर दिया गया तथा भारतीय शासन पर ब्रिटिश संसद की सर्वोच्चता स्थापित की गई
- इस अधिनियम द्वारा सांप्रदायिक निर्वाचन पद्धति का विस्तार किया गया तथा वर्मा को भारत से अलग किया गया
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