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राजस्थान के प्रमुख लोकनृत्य ( Folk Dance of Rajasthan in Hindi )

राजस्थान के प्रमुख लोकनृत्य ( Folk Dance of Rajasthan in Hindi )
Written by Abhishek Dubey

नमस्कार दोस्तो , मैं अभिषेक दुबे ( ABHISHEK DUBEY ) एक बार फिर से OnlineGkTrick.com  पर आपका स्वागत करता हूँ , दोस्तों इस पोस्ट मे  हम आपको राजस्थान के प्रमुख लोकनृत्य ( Folk Dance of Rajasthan in Hindi ) की जानकारी उपलब्ध करा रहे है ! जो आपके आगामी प्रतियोगी परीक्षाओ के लिए बहुत Important है , तो दोस्तों उम्मीद है यह जानकारी आपके लिए काफी महत्वपूर्ण साबित होगी !

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घूमर –

इसे राजस्थान के नृत्यों की आत्मा, नृत्यों का सिरमौर तथा सामन्ती नृत्य कहते हैं। यह मुलतः मध्य एशिया का हैं। इस नृत्य को गणगौर पर महिलाओं द्वारा किया जाता हैं। इसमें हाथों का लचकदार सचांलन होता हैं। ढोल व नगाड़ा इसके मुख्य वाद्ययंत्र हैं। इसमें पुरूष नृत्य नहीं करते हैं लेकिन यह पुरूष प्रधान नृत्य हैं।

कच्छी घोड़ी नृत्य –

शेखावाटी क्षैत्र में पुरूषों द्वारा किया जाने वाला नृत्य जो वर्तमान में एक व्यावसायीक नृत्य बन चुका हैं। इसमें पुरूष पिठ पर काठ की बनी घोड़ी बांधकर नृत्य करते हैं। इस नृत्य में चार-चार लोगों की दो पक्तिंयाँ बनती हैं। जिसमें पक्तिंयों के बनते और बिगड़ते समय फूल की पंखुड़ियों के खिलने का आभास होता हैं।

अग्नि नृत्य –

जसनाथी सपं्रदाय के पुरूषों द्वारा अग्नि के धधकते हुए अंगारों पर ये नृत्य किया जाता हैं। नृत्य करते समय फतह-फतह कि आवाज करते हैं। नृत्य के दौरान विभिन्न करतब करते हैं। बीकानेर का कतरियासर गाँव इस नृत्य का मुख्य केन्द्र हैं। बीकानेर महाराजा गंगासिंह ने इसके कलाकारों को सरंक्षण प्रदान किया था। आग में मतिरे फोड़ने का सम्बन्ध अग्नि नृत्य से हैं।

घुड़ला नृत्य –

जोधपुर में शीतलाष्टमी से लेकर गणगौर तक महिलाओं द्वारा किया जाने वाला एक लोकनृत्य, जिसमें महिलाएं सिर पर छिद्रित मटका रखकर नाचती हैं मटके में जलता हुआ दीपक रखा जाता हैं। यह नृत्य जोधपुर राजा सातल की याद में किया जाता हैं। कोमल कोठारी ने घुड़ला नृत्य के कलाकारों को अंतराष्ट्रीय मंच उपलब्ध करवाया।

ढोल नृत्य –

जालौर क्षैत्र में पुरूषों द्वारा किया जाने वाला नृत्य जो थाकना शैली में किया जाता हैं। राज. के पूर्व मुख्यमंत्री जयनारायण  व्यास ने इस नृत्य के कलाकारों को मंच उपलब्ध करवाया।

चरी नृत्य –

अजमेर के किशनगढ़ की गुर्जर जाति के महिलाओं द्वारा ये नृत्य किया जाता हैं। जिसमें महिलाएं सिर पर चरी रखकर  नृत्य करती हैं। चरी में कपास के बीजों को जलाया जाता हैं। फलकू बाई इसकी प्रसिद्व नृत्यांगना थी।

तेरहताली –

रामदेवी जी द्वारा स्थापित कामड़िया पंथ की महिलाओं द्वारा ये नृत्य किया जाता हैं। इसमें 9 मजींरे दाँयें पैर में,  2 मजींरे कोहनी के पास तथा 2 मजींरे हाथ में लेकर महिलाएं बैठकर नृत्य करती हैं। तेरहताली नृत्य अब व्यावसायिक नृत्य बन चुका हैं। पाली का पादरला गाँव इसका मुख्य केन्द्र हैं। माँगीबाई व लख्मण दास इसके प्रमुख कलाकर हैं। चैतारा मुख्य वाद्ययंत्र हैं।

गींदड़ नृत्य –

शेखावाटी क्षैत्र में होली के अवसर पर पुरूषों द्वारा किया जाने वाला नृत्य इसमें पुरूष हाथों में डंडे लेकर गोल घेरे में आपस में टकराते हुए नृत्य करते हैं। इसमें जो पुरूष महिलाओं के कपड़े पहनकर नाचते हैं। उनको गणगौर कहते हैं। मुख्य वाद्ययंत्र नगाड़ा होता है। शेखावाटी क्षैत्र में फतेहपुर, रामगढ़, मण्डावा, नवलगढ़, उदयपुरवाटी आदी क्षैत्रों की गिंदड़ लोकप्रिय हैं।

चंग नृत्य –

शेखावाटी क्षैत्र में होली के अवसर पर पुरूषों द्वारा किया जाने वाला नृत्य इसमें पुरूष चंग के साथ नृत्य करते हैं। तथा इसमें गाये जाने वाले गीतों का धमाल कहते हैं। शेखावाटी क्षैत्र में फतेहपुर, रामगढ़, मण्डावा, नवलगढ़, उदयपुरवाटी आदी क्षैत्रों की धमाल लोकप्रिय हैं।

बम नृत्य –

भरतपुर क्षैत्र में फसलों की कटाई के अवसर पर पुरूषों द्वारा किया जाने वाला नृत्य जिसमें गीत गायें जाते हैं। जिन्हें रसिया कहा जाता है। तथा इस नृत्य को बमरसिया नृत्य भी कहते हैं। मुख्य वाद्ययंत्र नगाड़ा होता हैं।

डांग नृत्य –

नाथद्वारा क्षैत्र में होली के अवसर पर किया जाने वाला लोकनृत्य। भवाई नृत्यः- उदयपुर सभांग में गुजरात के सीमावर्ती इलाकों में भवाई जाति द्वारा किया जाने वाला लोकनृत्य जो अब व्यावसायिक रूप धारण कर चुका हैं। इसमें  संगीत पर कम ध्यान दिया जाता हैं जबकि करतब अधिक दिखाए जाते हैं। इसमें नृतक सिर पर कई मटके रखकर नृत्य करता हैं। इसके जन्मजाता बाघाजी जाट केकड़ी-अजमेर वाले हैं।

हिंडोला नृत्य –

जैसलमेर में दीपावली के अवसर पर किया जाने वाला नृत्य। लुहर या लहुर नृत्यः- शेखावाटी क्षैत्र में किया जाने वाला अश्लील नृत्य हैं। इसमें किसी नृत्यंगना द्वारा अश्लील नृत्य किया जाता हैं।

मछली नृत्य –

बाड़मेर में बंजारों की स्त्रियों द्वारा किया जाने वाला अद्भूत नृत्य। जिसकी शुरूआत हार्षोल्लास के साथ होती हैं। किन्तु अन्त दुःख के साथ होता हैं। लांगुरिया नृत्यः- यह नृत्य मीणा  व ग ुर्जर जाति के लागों द्वारा कैला देवी माता के मेले में किया जाता हैं।

बिन्दौरी नृत्य –

यह नृत्य झालावाड़ क्षैत्र में होली के अवसर पर किया जाने वाला लोकनृत्य।

राजस्थान की जनजातियों के प्रमुख लोकनृत्य –

भील जनजाति के लोकनृत्य गैर, गवरी, युद्व, द्विचक्री, घुमरा, नैजा, हाथीमना आदी।

गैर नृत्य –

मेवाड़ क्षैत्र में भील पुरूषों द्वारा किया जाने वाला एक लोकनृत्य जिसमें पुरूष हाथों में डण्डे लेकर आपस में टकराते हुए नृत्य करते हैं। मारवाड़ में भी होली के अवसर पर पुरूषों द्वारा यह नृत्य किया जाता हैं। बाड़मेर का कनाना गाँव इसका प्रमुख केन्द्र हैं। नृत्य करते समय पुरूष एक विशेष प्रकार का वस्त्र पहनते हैं जिसे ओंगी कहा जाता हैं।

गवरी नृत्य –

मेवाड़ क्षैत्र के भील पुरूषों द्वारा किया जाने वाला एक लोकनृत्य जो रक्षाबन्धन के अगले दिन से शुरू होता है जो अगले 40 दिन तक चलता हैं। यह नृत्य शिव-भस्मासुर की कहानी पर आधारित हैं। इसमें मांदल वाद्ययंत्र का प्रयोग किया जाता हैं।

युद्व नृत्य –

भील पुरूषों द्वारा हाथों में हथियार लेकर किया जाने वाल लोकनृत्य।

द्विचक्री –

भील महिला-पुरूषों द्वारा किया जाने वाला लोकनृत्य जिसमें दो चक्र बनाये जाते हैं।

घुमरा –

बाँसवाड़ा क्षैत्र में भील महिलाओं द्वारा किया जाने वाला लोकनृत्य।

हाथीमना –

विवाह के अवसर पर भील पुरूषों द्वारा घुटनों पर किया जाने वाला लोकनृत्य।

नैजा –

इसमें लकड़ी के डण्डे पर एक नारियल बाँधा जाता हैं। लड़के उस नारियल को उतारने की कोशिश करते हैं। तथा लड़कियाँ उस नारियल की रक्षा करती हैं। यह नृत्य भील तथा मीणा दोनों जनजातियों द्वारा किया जाता हैं।

गरासिया जनजाति के लोकनृत्य वालर, माँदल, लूर, कूद, मोरियो, जवारा, गौर आदी हैं। सभी गरासिया जनजाति के लोकनृत्य राजस्थान में प्रमुख सिरोही क्षैत्र में ही किये जाते हैं।

वालर नृत्य –

यह एक युगल नृत्य हैं जो राजस्थान का एकमात्र ऐसा नृत्य है जो बिना किसी वाद्ययंत्र के किया जाता हैं। पुरूष हाथ में तलवार व छाता लेकर नृत्य करते हैं। नाचते समय महिला व पुरूषों के दो वृत बन जाते हैं।

माँदल नृत्य –

यह नृत्य माँदल वाद्ययंत्र के साथ किया जाता हैं। माँदल वाद्ययंत्र के कारण ही इसका नाम माँदल नृत्य पड़ा।

लूर नृत्य –

गरासिया जनजाति की महिलाओं द्वारा विवाह के अवसर पर यह नृत्य किया जाता हैं। इसमें महिलाओं के दो प़क्ष बन जाते है। वर पक्ष और वधु पक्ष जिसमें वर पक्ष की महिलाओं द्वारा वधु पक्ष की महिलाओं से लड़की की मांग की जाती हैं।

कूद –

यह बिना वाद्ययंत्र के साथ किया जाता हैं। तालियों की थाप पर यह नृत्य किया जाता हैं। इसमें भी महिला व पुरूषों के दो वृत बन जाते हैं।

मोरियो –

विवाह के समय गणपति स्थापना के अवसर पर पुरूषों के द्वारा यह नृत्य किया  जाता हैं।

जवारा –

होलिका दहन के समय महिला व पुरूषों द्वारा किया जाने वाला नृत्य। इसमें महिलायें हाथों में ज्वार लेकर नाचती हैं।

गौर –

आबू क्षैत्र के गरासियों द्वारा किया जाता हैं।

कालबेलिया जनजाति के लोकनृत्य चकरी, पणिहारी, शंकरिया, बागड़िया, इंडोणी आदी हैं।

चकरी –

कालबेलिया जनजाति द्वारा वृताकर मुद्रा में तेज गति से घूमते हुए किया जाने वाला लोकनृत्य। गुलाबो इसकी प्रसिद्व अन्तराष्ट्रीय ख्याती प्राप्त नृत्यांग्ना हैं।

शंकरिया –

पुरूष  व महिलाओं द्वारा प्रेम कहानी पर किया जाने वाला नृत्य।

बागड़िया –

कालबेलिया महिलाओं द्वारा भीख माँगते समय किया जाने वाला नृत्य।

इडोंणी –

इस नृत्य की पोशाक की सजावट आकर्षक होती हैं। मुख्य वाद्ययंत्र पुंगी व खंजरी होती हैं।

नोटः- 1.कालबेलिया नृत्य को यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में स्थान मिला हुआ हैं।

2. आमेर (जयपुर) के हाथी गाँव में “कालबेलियाँ स्कूल आॅफ डाँस“ कि स्थापन कि गई हैं।

3. कंजर जनजाति द्वारा चकरी और धाकड़ नृत्य किया जाता हैं।

4. कथौड़ी जनजाति द्वारा मावलिया और होली नृत्य किया जाता हैं।

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Abhishek Dubey

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