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भारत का संवैधानिक विकास (Constitutional Development of India)

भारत का संवैधानिक विकास | नोट्स

*ब्रिटिश सरकार ने कंपनी में व्याप्त भ्रष्टाचार एवं कुप्रशासन को दूर करने के लिए 1773 ई. का रेग्युलेटिंग एक्ट पारित किया। * इसके तहत मद्रास एवं बंबई प्रेसीडेंसियों को कलकत्ता प्रेसीडेंसी के अधीन कर दिया गया। * बंगाल के गवर्नर को अब अंग्रेजी क्षेत्रों का गवर्नर जनरल कहा गया। *बंगाल का प्रथम गवर्नर जनरल वॉरेन हेस्टिंग्स को बनाया

गया। * रेग्युलेटिंग एक्ट का उद्देश्य भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी की गतिविधियों को ब्रिटिश सरकार की निगरानी में लाना था। *रेग्युलेटिंग एक्ट 1773 के द्वारा सर्वप्रथम कलकत्ता में एक सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना की गई, इसमें एक मुख्य न्यायाधीश तथा 3 अन्य न्यायाधीशों की व्यवस्था की गई।* इस सर्वोच्च न्यायालय को सामान्य न्यायालय एवं देश विधि के न्यायालय, नौसेना विधि के न्यायालय तथा धार्मिक न्यायालय के रूप में कार्य करना था। * यह उच्चतम न्यायालय 1774 ई. में गठित किया गया और एलिजा इम्पे इसके मुख्य न्यायाधीश तथा रॉबर्ट, चैम्बर्स, स्टेफन सीजर ली मैस्टर एवं जान हाइड अन्य न्यायाधीश नियुक्त हुए। *1786 ई. में एक अधिनियम ब्रिटिश संसद के सम्मुख इस भावना से रखा गया ताकि कार्नवालिस को भारत के गवर्नर जनरल का पद स्वीकार करने के लिए मना लिया जाए। * वह गवर्नर जनरल तथा मुख्य सेनापति दोनों की शक्तियां लेना चाहता था। * नए अधिनियम के अनुसार, यह सब स्वीकार हो गया तथा उसे विशेष अवस्था में अपनी परिषद के निर्णयों को रद्द करने तथा अपने निर्णयों को लागू करने का अधिकार भी दे दिया गया। *कार्नवालिस जिला कलेक्टरों को अधिक शक्तिशाली नहीं बनने देना चाहता था, अतः उसने ‘शक्ति के पृथक्करण सिद्धांत’ को अपनाया। *ईस्ट इंडिया कंपनी के भारतीय व्यापार के एकाधिकार को (चाय एवं चीन के साथ व्यापार के अतिरिक्त) 1813 के चार्टर एक्ट द्वारा समाप्त किया गया था। * इसके द्वारा कंपनी को अगले 20 वर्षों के लिए भारतीय प्रदेशों तथा राजस्व पर नियंत्रण का अधिकार दे दिया गया। * चार्टर एक्ट, 1813 के द्वारा भारत में शिक्षा पर कंपनी को एक लाख रुपये वार्षिक खर्च करने का प्रावधान किया गया। *चार्टर एक्ट, 1833 द्वारा कंपनी के सभी वाणिज्यिक अधिकार समाप्त कर दिए गए तथा उसे भविष्य में केवल राजनैतिक कार्य ही करने थे। * इस अधिनियम द्वारा वंगाल का गवर्नर जनरल अब समूचे भारत का गवर्नर जनरल बन गया। * इस अधिनियम द्वारा कानून बनाने के लिए गवर्नर जनरल की परिषद में एक कानूनी सदस्य चौथे सदस्य के रूप में सम्मिलित किया गया। *वह सदस्य भारतीय नहीं बल्कि अंग्रेज होना था। * सर्वप्रथम मैकाले को विधि सदस्य के रूप में परिषद में शामिल किया गया। *1853 के चार्टर एक्ट में यह व्यवस्था की गई कि नियंत्रण बोर्ड और उसके अन्य पदाधिकारियों का वेतन सरकार निश्चित करेगी. परंतु धन कंपनी देगी। * डायरेक्टरों की संख्या 24 से घटाकर 18 कर दी गई, उसमें 6 क्राउन द्वारा मनोनीत किए जाने थे। * इसमें प्रावधानित था कि नियुक्तियां अब प्रतियोगी परीक्षाओं द्वारा की जाएंगी, जिसमें किसी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाएगा।

*1858 के भारत सरकार अधिनियम (गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट, 1858) द्वारा भारतीय प्रशासन का नियंत्रण कंपनी से छीनकर ब्रिटिश क्राउन को सौंप दिया गया। * अब बोर्ड ऑफ डायरेक्टर और बोर्ड ऑफ कंट्रोल के समस्त अधिकार ‘भारत सचिव’ को सौंप दिए गए। *इंडियन काउंसिल एक्ट, 1861 के द्वारा गवर्नर जनरल को अध्यादेश जारी

करने की शक्ति प्रदान कर दी गई। * ये अध्यादेश अधिकाधिक 6 माह तक लागू रह सकते थे। *1861 के भारतीय परिषद अधिनियम द्वारा वायसराय की परिषद को कानून बनाने की शक्ति प्रदान की गई, जिसके तहत लॉर्ड कैनिंग ने विभागीय प्रणाली की शुरुआत की। *लॉर्ड कैनिंग ने भिन्न-भिन्न सदस्यों को अलग-अलग विभाग सौंप कर एक प्रकार से मंत्रिमंडलीय व्यवस्था की नींव डाली। * इस व्यवस्था के अनसार प्रशासन का प्रत्येक विभाग एक व्यक्ति के अधीन होता था। * भारतीय परिषद अधिनियम, 1861 के द्वारा कानून बनाने के लिए, वायसराय की कार्यकारी परिषद में न्यूनतम 6 और अधिकतम 12 अतिरिक्त सदस्यों की नियुक्ति से उसका विस्तार किया गया। * इन्हें वायसराय मनोनीत करेगा और वे दो वर्ष तक अपने पद पर बने रहेंगे। * इनमें से न्यूनतम आधे सदस्य गैर-सरकारी होंगे। * इस अधिनियम के अनुसार, बंबई तथा मद्रास प्रांतों को अपने लिए कानून बनाने तथा उनमें संशोधन करने का अधिकार पुनः दे दिया गया। तथापि, इन प्रांतीय परिषदों द्वारा बनाए गए कोई भी कानून उस समय तक वैध नहीं माने जाएंगे जब तक कि गवर्नर जनरल की अनुमति न प्राप्त करे ले। * बॉम्बे, मद्रास और कलकत्ता उच्च न्यायालयों की स्थापना ब्रिटिश संसद द्वारा पारित 1861 ई. के भारतीय उच्च न्यायालय अधिनियम के तहत 1862 ई. में की गई थी। * भारतीय परिषद अधिनियम, 1892 के अनुसार, विधानमंडलों के सदस्यों के अधिकार दो क्षेत्रों में बढ़ा दिए गए(i) बजट पर उन्हें अपने विचार प्रकट करने का अधिकार दिया

गया यद्यपि इस विषय पर कोई प्रस्ताव रखने अथवा सदन में

मत विभाजन कराने का अधिकार उन्हें नहीं था। (ii) सार्वजनिक हित के मामलों में 6 दिन की सूचना देकर प्रश्न

पूछने का भी अधिकार दिया गया।

* भारत में ब्रिटेन के सभी संवैधानिक प्रयोगों में सबसे कम समय तक 1909 का इंडियन काउंसिल एक्ट चला। * रैम्जे मैक्डोनॉल्ड के शब्दों में “ये सुधार प्रजातंत्रवाद और नौकरशाही के मध्य एक अधूरा और अल्पकालीन समझौता था।” *मॉन्टेग्यू-चेम्सफोर्ड ने वर्ष 1918 में प्रस्तुत अपनी रिपोर्ट में अनुशंसा की थी कि प्रशासन में भारतीयों की भागीदारी बढ़ानी चाहिए। * रिपोर्ट में यह भी अनुशंसा की गई थी कि सिविल सेवा परीक्षा इंग्लैंड एवं भारत में एक साथ आयोजित की जानी चाहिए तथा उच्च भारतीय सिविल सेवा के एक-तिहाई पद भारतीयों के लिए आरक्षित होने चाहिए। * मॉन्टेग्य-चेम्सफोर्ड की संस्तुति के आधार पर ही वर्ष 1922 से सिविल सेवा परीक्षा इंग्लैंड एवं भारत में एक साथ आयोजित की जाने लगी। * एचिसन आयोग ने 1887 ई. में प्रस्तुत अपनी रिपोर्ट में यह अनुशंसा की थी कि सिविल सेवा परीक्षा इंग्लैंड एवं भारत में एक साथ नहीं आयोजित की जानी चाहिए। *20 अगस्त, 1917 के सधारों की घोषणा को तत्कालीन भारत सचिव एडविन मॉन्टेग्यू के नाम पर ‘मॉन्टेग्यू घोषणा’ के नाम से जाना जाता है। *तत्कालीन भारत सचिव एडविन मॉन्टेग्यू और वायसराय लॉर्ड चेम्सफोर्ड की रिपोर्ट भारतीय परिषद अधिनियम, 1919 का आधार बनी थी। * भारत में प्रांतों में द्वैध शासन का प्रारंभ

मांट-फोर्ड (मॉन्टेग्यू-चेम्सफोर्ड) सुधारों, वर्ष 1919 से प्रारंभ किया गया, जिसे भारत सरकार अधिनियम, 1919 भी कहा जाता है। * इस अधिनियम ने पहली बार ‘उत्तरदायी शासन’ शब्दों का स्पष्ट प्रयोग किया था। * इस अधिनियम के तहत प्रांतों में विषयों को आरक्षित’ एवं ‘हस्तांतरित’ दो भागों में बांटा गया। * इनमें हस्तांतरित विषयों का प्रशासन विधायिका के चयनित सदस्यों को सौंपा गया, जबकि आरक्षित विषय गवर्नर की कार्यकारिणी के पास ही रहे। *वर्ष 1926 में भारत में एक लोक सेवा आयोग का गठन किया गया। *वर्ष 1935 के अधिनियम के तहत लोक सेवा आयोग के स्थान पर संघीय लोक सेवा आयोग का गठन हुआ। *वर्ष 1937 से संघीय लोक सेवा आयोग ने ब्रिटिश लोक सेवा आयोग से स्वतंत्र परीक्षा आयोजित करना प्रारंभ किया। * वर्ष 1950 में संविधान के लागू होने के बाद संघीय लोक सेवा आयोग (FPSC) का नाम बदलकर संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) कर दिया गया। *वर्ष 1935 के अधिनियम द्वारा सर्वप्रथम भारत में संघात्मक सरकार की स्थापना का प्रावधान किया गया। *इस संघ को ब्रिटिश भारतीय प्रांतों तथा कुछ भारतीय रियासतें, जो संघ में शामिल होना चाहती थीं. को मिलाकर बनाया गया था। * इस अधिनियम के द्वारा प्रांतों में द्वैध शासन समाप्त कर, प्रांतों को स्वायत्तता प्रदान की गई एवं केंद्र में द्वैध शासन लागू किया गया। *वर्ष 1935 के भारत सरकार अधिनियम द्वारा प्रांतों को दोहरे शासन के स्थान पर उत्तरदायी शासन मिल गया तथा आरक्षित एवं हस्तांतरित विषयों में भेद समाप्त हो गया। * गवर्नरों को आरक्षित तथा बचाव की संज्ञा के अधीन ‘व्यक्तिगत निर्णय’ तथा ‘विवेकाधीन शक्तियों का प्रयोग करने का अधिकार दे दिया गया, साथ ही गवर्नर को अध्यादेश जारी करने का भी अधिकार दे दिया गया। * इस अधिनियम द्वारा सांप्रदायिक तथा वर्गीय मतदाता मंडलों का विस्तार हुआ और मुसलमान, सिख, युरोपीय, भारतीय-ईसाई, एंग्लो-इंडियन तथा भारतीय मुसलमान आदि को पृथक-पृथक प्रतिनिधित्व मिला। *भारत का वर्तमान संवैधानिक ढांचा बहुत कुछ वर्ष 1935 के अधिनियम पर आधारित है। * वर्ष 1935 के मुख्य उपबंध इस प्रकार हैं- 1. संघात्मक सरकार की स्थापना, 2. केंद्र में द्वैध शासन की स्थापना, 3. प्रांतों में द्वैध शासन के स्थान पर स्वायत्त शासन की स्थापना, 4. द्विसदनीय केंद्रीय विधानमंडल, 5. प्रांतीय शासन व्यवस्था, 6. प्रांतीय विधानमंडल, 7. केंद्र एवं प्रांतों में शक्तियों का विभाजन, 8. फेडरल न्यायालय की स्थापना आदि। *वर्ष 1935 के अधिनियम के बारे में जवाहरलाल नेहरू ने कहा था-“एक कार जिसमें ब्रेक तो है पर इंजन नहीं।” * जवाहरलाल नेहरू वर्ष 1947 से 1964 तक भारत के प्रधानमंत्री रहे। *वे पंचशील के प्रणेता तथा गट-निरपेक्षता में विश्वास रखने वाले थे। *भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने अपने लखनऊ अधिवेशन, 1936 में भारत सरकार अधिनियम, 1935 को अस्वीकार किया था।* इस अधिवेशन की अध्यक्षता जवाहरलाल नेहरू ने की थी। *पंडित जवाहरलाल नेहरू ने ‘भारत सरकार अधिनियम, 1935 को “गुलामी का अधिकार” या “दासता का आज्ञा-पत्र” बताते हुए उसकी कटु आलोचना की। * ब्रिटिश शासन के पूरे इतिहास में वर्ष 1935 का अधिनियम सबसे लंबा-चौड़ा प्रलेख था। * इसमें 14 भाग, 321 धाराएं

और 10 अनुसूचियां थीं। * भारत सरकार अधिनियम, 1935 में अंतर्विष्ट अनुदेश-प्रपत्र (Instrument of Instructions) को वर्ष 1950 में भारत के संविधान में राज्य की नीति के निदेशक तत्व’ के रूप में समाविष्ट किया गया है। * आलोचकों ने इसे केवल पवित्र लोकोक्तियां कहा है।

 

 

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Abhishek Dubey

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