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हिमाचल प्रदेश का आधुनिक इतिहास (Modern history of Himachal Pradesh)

Modern history of Himachal Pradesh
Written by Abhishek Dubey

हिमाचल प्रदेश का आधुनिक इतिहास (Modern history of Himachal Pradesh)

नमस्कार दोस्तो , मैं अभिषेक दुबे ( ABHISHEK DUBEY ) एक बार फिर से OnlineGkTrick.com  पर आपका स्वागत करता हूँ , दोस्तों इस पोस्ट मे  हम आपको की जानकारी उपलब्ध करा रहे है ! जो आपके आगामी प्रतियोगी परीक्षाओ के लिए बहुत Important है , तो दोस्तों उम्मीद है यह जानकारी आपके लिए काफी महत्वपूर्ण साबित होगी !

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हिमाचल में गोरखों का आक्रमण(Gorkha Invasion in Himachal):

राजा संसार चन्द के व्यवहार से तंग आकर बिलासपुर, मण्डी, चम्बा और अन्य शासकों ने गोरखा सेनापति अमर सिंह थापा को संसार चन्द पर आक्रमण का न्योता दिया। अमर सिंह थापा ने सन् / 1804 ई. में यमुना नदी को पार करके सिरमौर में प्रवेश किया। वह अपने साथ लगभग 40,000 सैनिकों को लेकर आया था। 1806 ई. में अमर सिंह थापा ने महल मोरिया नामक स्थान पर संसार चन्द को हरा दिया। संसार चन्द ने कांगड़ा किले में शरण ली अमर सिंह थापा को ज्वालामुखी कैम्प में नूरपुर, सुकेत, बिलासपुर, जसवां और कुटलैहड़ के शासकों ने गोरखा से सैनिक सहायता दी। अमर सिंह थापा ने 1806 ई. में कांगड़ा दुर्ग पर घेरा डाला। इससे पहले वह नादौन और सुजानपुर-टिहरा के किलों को जीत चुका था। इसी दौरान गोरखों ने पहाड़ी राज्यों में लूटपाट की। भारी संख्या में लोग गांवों, कस्बों और शहरों को छोड़कर भाग गए। संसार चन्द वेश बदलकर कांगड़ा किले से निकलकर सुजानपुर-टिहरा चला गया। 

महाराजा रणजीत सिंह को बुलावा:

संसार चन्द ने लाहौर शासक रणजीत अमर सिंह से सहायता मांगी। रणजीत सिंह 1809 ई. में सेना लेकर कांगडा की ओर बढ़ा। गोरखा सैनिक चार वर्षों से युद्ध करके थक चुके थे। पहाडी शासकों ने भी तंग आकर गोरखों का साथ छोड़ दिया था। अमर सिंह थापा ने अपनी स्थिति को देखते हुए सिक्खों से सन्धि कर ली। गोरखा सैनिक सतलुज पार करके अर्की पहुंचे। गोरखा सैनिकों ने लाचल के शासक को अर्की से भगाकर वहीं कैम्प लगा दिया। रणजीत महाराज सिंह ने 24 अगस्त 1809 ई. को कांगड़ा किले के साथ कांगड़ा को भी राजा संसार चन्द को लौटा दिया। 

गोरखों का आक्रमण (Gorkha Invasion):

गोरखों ने नालागढ़, जुब्बल, पुन्दर और धामी रियासतों को 1810 ई. में तथा 1811 ई. में बुशहर, ठियोग, बलसन और कोटगढ़ रियासतों को पराजित किया।

अंग्रेजों की युद्ध घोषणा (British war declaration):

गोरखा सेनापति अमर सिंह थापा के ब्रिटिश कम्पनी के विरोध तथा लालच ने अंग्रेजों को हिमाचल में हस्तक्षेप करने का अवसर दिया। नवम्बर 1814 ई. में अंग्रेजों ने गोरखों के विरूद्ध युद्ध का मोर्चा खोल दिया। स्थानीय शासकों का समर्थन प्राप्त करने की कोशिश करी गयी। मेजर जनरल रोल्लो गिल्लेस्पी के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना ने देहरादून, क्यारदा- दून होते हुए कालंगा किले पर कब्जा किया। ब्रिटिश सेना ने 19 दिसम्बर, 1814 ई. को नाहन में प्रवेश किया।

मेजर जनरल ऑक्टरलोनी का सफल अभियान:

ब्रिटिश जनरल ने गोरखों को घेरने के उद्देश्य से रोपड़ से अर्की की ओर बढ़ना आरम्भ किया। अर्की में अमर सिंह थापा ने रामगढ़ किले में सुरक्षा के उपाय किए थे। जनरल ऑक्टरलोनी ने बिलासपुर राजा को अपने पक्ष में करके थापा को नालागढ़ से भागने के लिए विवश किया। गोरखों और अंग्रेजों के बीच मलोण किले के पास युद्ध हुआ। यहां गोरखा थापा ने सेना सहित शरण ली हुई थी। अमर सिंह थापा का विश्वसनीय और शूरवीर सेना नायक कि भक्ति थापा युद्ध में मारा गया। इसके बाद गोरखा सैनिक डर के मारे भागने लगे।

अंग्रेजों से सन्धि (British Treaty):

अमर सिंह थापा ने अंग्रेजों से सन्धि कर ली। उसे अपने पुत्र रणजोर सिंह के साथ सुरक्षित नेपाल जाने दिया गया। अंग्रेजों की इस विजय से सतलज घाटी और शिमला की पहाड़ी रियासतों पर अंग्रेजों का प्रभुत्व स्थापित हो गया।

हिमाचल रियासतों को अंग्रेजों का संरक्षण:

1815 ई. में अंग्रेजों ने सिरमौर, बिलासपुर, बुशहर, बघाट, क्योंथल, बाघल, नालागढ़, शांगरी, कुम्हारसेन, कुठाड़ और बलसन रियासतों को अपने अधीन कर लिया। ठियोग, धामी, भज्जी, थिरोच, महलोग, बेजा, मांगल, कुनिहार और दरकोटी ठकुराईयों को भी संरक्षण में लेकर इनके शासकों को सनदें प्रदान की। सुरक्षित रियासतों के शासकों को आन्तरिक शासन में स्वायतता प्रदान की गई। बुशहर के राजा को 15,000 रूपये वार्षिक नजराना देने की शर्त रखी गई।

आन्तरिक मामलों में अंग्रेजो का हस्तक्षेप (British intervention in internal matters):

अंग्रेजों ने रियासतों को दिए गए वचनों का पालन नहीं किया। आन्तरिक रियासतों में इनका हस्तक्षेप बढ़ता रहा। रियासतों की सीमा में फेर – बदल होते रहे। 1830 ई. में अंग्रेजों ने क्योंथल के राणा संसार सेन से 15 गांव प्राप्त करके शिमला में निर्माण आरम्भ कराया।

1846 ई. का युद्ध (War of 1846 AD):

ऐग्लो सिक्ख युद्ध में अंग्रेज विजयी हुए; कांगड़ा की पहाड़ी रियासतें अंग्रेजी सरकार के अधीन आ गई। हिमाचल में एक नये युग का आरम्भ हो रहा था।

अंग्रेज सरकार की नीति (British government policy):

अंग्रेजों ने मण्डी, सुकेत और चम्बा के शासकों को शिमला हिल्स की भांति राज्य लौटाकर उन्हें आन्तरिक स्वायतत्ता प्रदान की। परन्तु कांगड़ा, गुलेर, जसवां, कुल्लू, दत्तारपुर, कोटला, हरिपुर और लाहौल-स्पीति शासकों के राज्य छीन कर इन्हें अंग्रेजी शासन का भाग बना लिया। इन राज्य के शासकों को छोटी-छोटी जागीरें दे दी गई।

कांगड़ा के विस्थापित शासकों की गुप्त मन्त्रणा:

अपने राज्य छीनने के विरोध में कांगड़ा के शासकों ने 1848 ई. में गुप्त मन्त्रणा की। नूरपुर के शासक राम सिंह पठानिया ने जम्मू क्षेत्र से सेना का प्रबन्ध किया और शाहपुर किले को नियन्त्रण में ले लिया। कांगड़ा के राजा प्रमोद चन्द, जसवां के राजा उमेद सिंह, राज कुमार, जय सिंह और जगत चन्द आदि ने भी अंग्रेजी सरकार का विरोध किया। राम सिंह राजा वीर सिंह के नाबालिग पुत्र को राजा घोषित कराकर स्वयं उसका मन्त्री बना। |

कांगड़ा का प्रशासन (Administration of kangra):

1849 ई. में कांगड़ा का विद्रोह शांत होने के बाद कांगड़ा, कुल्लू और लाहौल-स्पीति को एक जिला बना दिया गया। मण्डी, सुकेत, बिलासपुर और चम्बा रियासतों को तथा शिमला हिल स्टेटस को भी सुपरिन्टेन्डेंट (Superintendent) के अधीन कर लिया गया।

1857 का स्वतंत्रता संग्राम (1857 freedom struggle):

1857 का सैन्य विद्रोह मेरठ से शुरू हुआ। 13 मई 1857 तक सैन्य विद्रोह की सूचना शिमला तक पहुँच गई। 1857 के स्वतंत्रता संग्राम की गूंज हिमाचल प्रदेश में भी उठने लगी। कसौली के 80 सैनिकों ने विद्रोह कर दिया और बाद में  शिमला के जतोग में स्थित नसीरी बटालियन के सैनिको ने भी  बिद्रोह कर दिया। सैनिको ने कसौली में स्थित खजाना लूट लिया। डिप्टी कमिश्नर विलियम हे ने मंडी के राजा के माध्यम से विद्रोहियों को समझा  कर शांत करने का प्रयास किया पर उसे सफलता ना मिली।

शिमला से अंग्रेज चुपचाप पहाड़ी राज्यों में चले गए शिमला खाली हो गया। पहाड़ी राजा अंग्रेजों के प्रति वफादार थे, उन्होंने अंग्रेजों के घरों को सुरक्षा प्रदान की। सूबेदार भीम सिंह  ने क्रांतिकारी विद्रोही सेना का नेतृत्व किया। अंग्रेजो ने गोरखों और राजपूत सैनिकों में फुट डलवा दी। सूबेदार भीम सिह को कैद कर लिया गया और फांसी की सजा सुनाई  गई।  भीम सिह जेल से भाग कर रामपुर के राजा शमशेर सिह के यहाँ शरण ले ली।  अंग्रेजो ने राजा शमशेर सिंह को देने वाला 15000 रूपये नजराना देना बंद कर दिया। बाद में भीमसिंह और उसके साथी प्रतापसिह को पकड़ लिया गया और फांसी की सजा दी गई।

* 1857 के बाद विभिन्न आंदोलनों का युग शुरू होने लगा !

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Abhishek Dubey

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