पुर्तगाली ( Portuguese Empire ) भारत का एक नया इतिहास वर्ष 1505 में प्रारंभ हुआ जब पुर्तगाल के सम्राट ने तीन वर्षों के लिए भारत में एक गवर्नर नियुक्त किया और उसे पुर्तगाली हितों की रक्षा हेतु पर्याप्त सुविधा एवं बल प्रदान किया गया । फ्रांसिस्को डी अल्मेडा , नव नियुक्त गवर्नर , को भारत में पुर्तगाली स्थिति को सुदृढ़ करने को कहा गया और अदन , ऑर्मुज और मलक्का को जब्त करके मुस्लिम व्यापार बर्बाद करने का निर्देश दिया गया ।
उसे अंजादिवा , कोचीन , केन्नोर और किल्वा में किलेबंदी करने की भी सलाह दी गई । वेनिस के घटते व्यापार पर नजर रखते हुए , जिनका आकर्षक व्यापार पुर्तगाली हस्तक्षेप के कारण खतरे में था , मिस्र ने पुर्तगालियों ( Portuguese Empire ) को रोकने के लिए लाल सागर में अपनी चौकसी बढ़ा दी । डी अलमेडा , जिसे उत्तरी अफ्रीका में मूर से युद्ध करना पड़ा , जल्द ही इस चुनौती से उबर गया ।
हालांकि , 1507 में , पुर्तगाली स्कवेड्रन को मिस्र की और गुजराती नौसेना ने संयुक्त रूप से दीव से हटकर समुद्री युद्ध में हरा दिया , और अल्मेडा का पुत्र मारा गया । अगले वर्ष , अल्मेडा ने दोनों की नौसेना को पूरी तरह ध्वस्त करके हार का बदला ले लिया ।
विस्तार की रणनीतिः अल्फांसों डी अलबुकर्क , जिसने भारत में पुर्तगाली गवर्नर के रूप में अल्मेडा का स्थान लिया , के पास अधिक बड़ी एवं व्यापक रणनीति थी । वह पूरब में , अपनी मृत्यु से पहले , पुर्तगाली साम्राज्य ( Portuguese Empire ) की स्थापना का कार्य पूरा कर लेना चाहता था । उसने पुर्तगाल ( Portuguese Empire ) के लिए हिंद महासागर के रणनीतिक नियंत्रण हेतु समुद्र के सभी प्रवेश द्वारों पर अपने बेस स्थापित किए ।
भारत में पुर्तगाली सत्ता ( Portuguese Empire ) की स्थापना में निर्णायक भूमिका द्वितीय गवर्नर अलफांसों डी अलबुकर्क की रहो । अलबुकर्क स्क्वैड्रेन कमाण्डर के रूप में 1503 ई . में भारत आया था । 1509 ई . में उसे वायसराय नियुक्त किया गया और 1515 ई . तक उसने भारत में पुर्तगाली सत्ता की स्थापना में विशेष भूमिका निभाई ।
उसने 1510 ई . में बीजापुर से गोवा छीनकर ठोस शुरुआत की । गोवा एक प्राकृतिक बंदरगाह था और एक सामरिक स्थल भी । यहां असे पुर्तगाली मालाबार व्यापार पर नियंत्रण करते थे एवं दक्षिण के राजाओं की नीति का निरीक्षण भी । इस आधार पर , पुर्तगाली ( Portuguese Empire ) गोवा के सामने की मुख्य भूमि , दमन , राजौरी और दाभोल के बंदरगाहों पर कब्जा जमाने में सफल रहे ।
अलबुर्कक ने हिन्दू और पुर्तगाली क्षेत्र महिलाओं के साथ विवाह की नीति अपनाई । 1515 ई . में ही मलक्का ( ईरान ) पर पुर्तगाली ( Portuguese Empire ) आधिपत्य कायम हो गया । अलबुकर्क के समय में एक मजबूत नौ – सैनिक शक्ति के रूप में स्थापित हो चुके थे ।
गोवा पर कब्जाः 1510 में अलबुकर्क ने गोवा पर आसानी से कब्जा कर लिया । जो बीजापुर के सुल्तान का प्रमुख पत्तन था , यह एलेक्जेंडर के बाद पहला भारतीय था जो यूरोपियों के अधीन आया । मलक्का पर 1511 ई . में ही पुर्तगाली प्रभुत्व ( Portuguese Empire ) कायम हो चुका था ।
लाल सागर के मुहाने पर स्थित सोकोत्रा द्वीप , सुमात्रा के सचिन दु श्रीलंका के कोलम्बो इत्यादि में नए किले स्थापित किए गए । जावा , थाईलैण्ड , पे इत्यादि से भी सम्पर्क स्थापित किए गए । 1518 ई . से पुर्तगालियों ( Portuguese Empire ) ने चीन के संचाओं द्वीप पर बस्ती बसानी शुरू की ।
पुर्तगालियों ( Portuguese Empire ) ने पश्चिमी भारत के विभिन्न क्षेत्रों पर अपना आधिपत्य स्थापित किया । 1531 ई . में चाउल , 1532 ई.में दीव , 1534 ई . में सॉलसेट और बेसिन , 1536 ई . में क्रैगानोर तथा मैंगलोर , होनावर , भतकल , कैन्नौर , क्वीलोन , मावनगर इत्यादि क्षेत्रों में अपना कब्जा जमाकर इनमें से कुछ क्षेत्रों में अपने कारखाने खोले । उन्होंने कारखानों का दुर्गीकरण आरम्भ कर दिया । कारखानों का सर्वोच्च अधिकारी पुर्तगाली | सम्राट् द्वारा नियुक्त होता था । से पुर्तगालियों ( Portuguese Empire ) का व्यापार पर प्रभुत्वः पुर्तगालियों ने पूर्वी तट के साथ सीधा सम्पर्क स्थापित करने का प्रयास किया ।
कोरोमण्डल तट पर स्थित मसुलीपट्टम , पुलिकट इत्यादि शहरों से वे वस्त्रादि वस्तुएं इकट्ठा करते थे । मलक्का , मनीला इत्यादि पूर्वी एशियाई क्षेत्रों से व्यापार करने के लिए नागापट्टम् पुर्तगालियों ( Portuguese Empire ) का एक प्रमुख बंदरगाह था । नागापट्टम् के उत्तर में स्थित सैनथोम ( मैलपुर ) में पुर्तगालियों की बस्ती थी । बंगाल के शासक महमूद शाह ने पुर्तगालियों को 1536 ई . में चटगांव और सतगांव में फैक्ट्री खोलने की अनुमति दी । अकबर की अनुमति से हुगली में तथा शाहजहां के फरमान से बुदेल में भी कारखाने खुले ।
16 वीं सदी के दौरान पूर्वी तट पर किलेबंदी नहीं हुई । सोलहवीं शताब्दी के आरंभ तक पुर्तगालियों ( Portuguese Empire ) का एशियाई व्यापार पर प्रभुत्व बना रहा । 1506 ई . में मसाले के लाभदायक व्यापार को राजा ने अपने अधीन कर लिया और दूसरी तरफ पुर्तगाली अपने पड़े । कभी – कभी व्यापार और अधिकार को सुरक्षित रखने के लिए जी जान से भिड़ लूट में अंतर करना मुश्किल हो जाता था ।
भारतीय जहाजों से कई तरीके से पैसा वसूल किया जाता था , इनमें प्रमुख थी ” कार्टेज व्यवस्था ” । इस व्यवस्था के तहत् भारतीय जहाजों के कप्तानों को गोवा के वायसराय से लाइसेंस या पास लेना पड़ता था जिससे पुर्तगाली ( Portuguese Empire ) भारतीय जहाजों पर हमला नहीं भारत करते थे , अन्यथा उसे लूट लेते थे ।
पुर्तगालियों ( Portuguese Empire ) के समुद्र पर वर्चस्व रहने का एक महत्वपूर्ण कारण था कि मुगल शासकों ने कभी भी मजबूत नौसेना तैयार करने का प्रयत्न नहीं किया तथा सुदूर दक्षिण में मुगलों का प्रत्यक्ष नियंत्रण नहीं था । पुर्तगालियों ( Portuguese Empire ) के पास ऐसी कोई वस्तु नहीं थी , जिससे वस्तु – विनिमय द्वारा व्यापार हो । इसलिए , पूर्व की वस्तुओं के लिए वे पश्चिम से सोना , चांदी और अन्य बहुमूल्य रत्न लाया करते थे ।
मालाबार और कोंकण तट से सबसे ज्यादा काली मिर्च का निर्यात होता था । मालाबार से अदरक , दालचीनी , हरड़ , चंदन , हल्दी , नील इत्यादि निर्यात किए जाते थे । उत्तर – पश्चिमी भारत से टाफ्टा ( एक प्रकार का कपड़ा ) , चिंट्स इत्यादि पुर्तगाली ( Portuguese Empire ) ले जाते थे ।
जटामांसी बंगाल से लाया जाता था । दक्षिण – पूर्व एशिया से लाख , लौंग , कस्तूरी इत्यादि इकट्ठा किए जाते थे । भारत से पुर्तगालियों ( Portuguese Empire ) का व्यापार इतना बढ़ गया था कि मात्र काली मिर्च की खरीद के लिए संयुक्त व्यापार संघ ने 1,70,000 क्रूजेडो प्रतिवर्ष भारत भेजने का निर्णय लिया था ।
पुर्तगाली फ्लैण्डर्स , जर्मनी , इंग्लैण्ड इत्यादि क्षेत्रों से गुलाब जल , मूंगा , तांबा , पारा सिंदूर आदि वस्तुएं भारत में लाते थे । ढाले हुए सिक्के भी कोचीन व गोवा बंदरगाह पर लाए जाते थे । इस प्रकार पुर्तगालियों ( Portuguese Empire ) ने न केवल मसाले के व्यापार से लाभ अर्जित किया अपितु विभिन्न एशियाई देशों के बीच सामान लाने और ले जाने के कार्य से भी लाभ कमाया ।
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