नमस्कार दोस्तो , मैं अभिषेक दुबे ( ABHISHEK DUBEY ) एक बार फिर से OnlineGkTrick.com पर आपका स्वागत करता हूँ , दोस्तों इस पोस्ट मे हम आपको राजस्थान की प्रमुख लोक देवीयाँ ( Rajasthan Ke Pramukh Lok Devi ) की जानकारी उपलब्ध करा रहे है ! जो आपके आगामी प्रतियोगी परीक्षाओ के लिए बहुत Important है , तो दोस्तों उम्मीद है यह जानकारी आपके लिए काफी महत्वपूर्ण साबित होगी !
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राजस्थान की प्रमुख लोक देवीयाँ ( Rajasthan Ke Pramukh Lok Devi )
जीण माता –
इनको शेखावाटी क्षेत्र की लोक देवी, मधुमक्खियों की देवी, चैहानों की कुल देवी आदि नामों से जाना जाता हैं। इनका जन्म चुरू जिलें के धांधु गाँव में हुआ। इनके मन्दिर का निर्माण पृथ्वीराज चैहान प्रथम के समय हट्टड़ द्वारा हर्ष की पहाड़िया पर करवाया गया। यहाँ पर ढाई प्यालें शराब चढ़ती हैं। तथा पहलेे बकरे की बली दी जाती थी। जो वर्तमान समय में बन्द कर दी गयी। सभी देवी-देवताओं में जीणमाता का लोकगीत सबसे लम्बा हैं। यहाँ प्रतिवर्ष चैत्र व आश्विन के नवरात्रों में मेला लगता हैं।
करणी माता –
इनका जन्म जोधपुर जिलें के सुआप गाँव में मेहाजी चारण के घर हुआ था। इनका बचपन का नाम रिद्वी बाई था। इन्हें चुहों की देवी, डोकरी, जोग माया, व जगत माता का अवतार भी कहा जाता हैं। तथा सफेद चील को करणी माता का स्वरूप माना जाता हैं। इनका मन्दिर देशनोक बीकानेर में हैं जिसकी नींव स्वयं करणी माता ने रखी थी। इस मन्दिर का वर्तमान स्वरूप सुरतसिंह ने बनवाया। इस मन्दिर में सर्वाधिक चुहें पायें जाते हैं। इसलिए इस मन्दिर को चुहों का मन्दिर भी कहते हैं। यहाँ प्राप्त सफेद चुहों को “काबा“ कहते हैं। करणी माता बीकानेर के राठौडों की इष्टदेवी हैं।
शिला देवी –
यह आमेर (जयपुर) के कछवाहा की इष्टदेवी हैं। 16 वीं शताब्दी में मानसिंह प्रथम द्वारा पूर्वी बंगाल के राजा केदार को हराकर ‘जस्सोर’ नामक स्थान से अष्टभूजी भगवती की मूर्ती आमेर लाकर आमेर दुर्ग में स्थित जलेब चैक के दक्षिण-पश्चिमी कोनें में मन्दिर बनवाया। इस मन्दिर का वर्तमान स्वरूप् मिर्जा राजा जयसिंह द्वारा करवाया गया। यहाँ ढाई प्याले शराब चढाते हैं तथा भक्तों को शराब व जल का चरणामृत प्रसाद के रूप में दिया जाता हैं।
शीतला माता –
इनको चेचक की देवी, बोदरी की देवी, बच्चों की सरंक्षिका, महामाई, सेढ़ल माई आदी नामों से पुकारते हैं। इनके मन्दिर का निर्माण सवाई माधोंसिह ने जयपुर के चाकसु में शिल डुगंरी पर करवाया। इनके मन्दिर में मुर्ती की जगह पाषाण (पत्थर) की पुजा की जाती हैं। इनका पुजारी कुम्हार होता हैं तथा सवारी गधा होता हैं। यहाँ पर प्रतिवर्ष चैत्र कृष्ण अष्टमी (शितलाष्टमी) को मेला लगता हैं। इस दिन शितला माता के मन्दिर में ठण्डा भोजन का भोग लगता हैं। शीतला माता का प्राचीन मन्दिर उदयपुर में गोगुन्दा ग्राम में स्थित हैं। तथा एक अन्य मन्दिर उदयपुरवाटी (झुंझुनू) में हैं।
शाकम्भरी माता –
यह साँभर के चैहानों की कुल देवी हैं। इनका मन्दिर साँभर में हैं, जिसका निर्माण वासुदेव चैहान ने करवाया था। इनका मुख्य मन्दिर उदयपुरवाटी (झुंझुनू) में हैं। यहाँ अकाल के समय में शाकम्भरी माता ने साग-सब्जी लगाकर यहाँ के लोगों को अकाल से बचाया था। उदयपुरवाटी की शाकम्भरी माता खण्डेलवालों की कुल देवी हैं। सहारनपुर (यू.पी.) में भी एक मन्दिर हैं।
सती माता (राणीसती) –
विश्व का सबसे बड़ा सती माता का मन्दिर झुंझुंनू में हैं। इनका मूल नाम नारायण बाई था। 1652 में ये अपने पति तन-धन दास के साथ सती हुई। यह अग्रवालों की कुल देवी हैं। तथा विश्व का दूसरा सबसे बड़ा मन्दिर भी खेमीसती झुंझुनू में ही हैं।
चैथ माता –
इनका मन्दिर सवाईमाधोपरु के चैथ का बरवड़ा गाँव में हैं। ये कंजर जाति की आराध्य देवी है। महिलाएँ अपने पति की दीर्घ आयु मांगने के लिए ‘कार्तिक कृष्ण चतुर्थी, करवा चैथ को माता का व्रत रखती हैं।
कैला देवी –
यह करौली के यदुवंशी राजवंश की कुल देवी हैं। जहां कभी माँस का भोग नहीं लगता हैं। इसके सामने बोहरा भक्त की छतरी हैं। इस मेले के लांगुरिया गीत व घुटकन नृत्य प्रसिद्व है। जिसे मीणा व गुर्जर जाति के लोग करते हैं।
ब्रह्यणी माता –
यह कुम्हारों की कुल देवी हैं। इनका मंदिर सोरसेन (अन्ता-बाँरा) में हैं। ये विश्व की एकमात्र ऐसी देवी जिनकी पीठ की पुजा की जाती हैं।
त्रिपुरा सुन्दरी –
इनको तुरताई माता भी कहते हैं। इनका मन्दिर तलवाड़ा गाँव बाँसवाडा में हैं। यह पांचाल जाति की कुल देवी हैं। तथा मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे की इष्ट देवी हैं।
नारायणी माता –
इनका मन्दिर अलवर जिलें की राजगढ तहसिल में बरवा की डुंगरी पर स्थित हैं। यह नाइयों की कुल देवी हैं। इसके पुजारी मीणा जाति के लोग होते हैं। वर्तमान समय में मीणा और नाइयों में इनके आने वाले चढ़ावें को लेकर विवाद चल रहा हैं।
आई माता –
आई माता के बचपन का नाम जीजीबाई था, जिनका जन्म अम्बापुर गुजरात में हुआ था। यह सिरवी जाति के लोगों की कुल देवी हैं। इनका मन्दिर बिलाड़ा जोधपुर में हैं। इनकें मन्दिर को दरगाह तथा थान का बड़ेर कहते हैं। इनके मन्दिर में मुर्ती नहीं हैं। तथा यहाँ जलने वाले दीपक से केसर टपकती हैं। इस मन्दिर में गुर्जर जाति के लोगों का प्रवेश निषिद्व हैं।
सुगाली माता –
यह आऊवा (पाली) के ठाकुर कुशालसिंह चम्पावत की इष्ट देवी हैं। जिसके 10 सिर 54 हाथ हैं। इनकों 1857 की क्रांति की देवी भी कहते हैं। इनकी मुर्ती वर्तमान समय में पाली के बागड़ संग्रहालय में स्थित हैं।
तनोट माता –
इनका मन्दिर जैसलमेर में हैं। इनकों थार की वैष्णों देवी भी कहते हैं। तथा ये भाटी शासकों व सेना के जवानों की इष्ट देवी है। और इसे रूमाली वाली देवी भी कहते हैं। इसकी पुजा बार्डर सिक्योरिटी फोर्स के जवान करते हैं।
आमजा माताः-
केलवाड़ा (उदयपुर) के रिछड़े गाँव में इनका मन्दिर है। यह भीलों की कुल देवी हैं। जिसकी पुजा एक भील तथा एक ब्राह्यण पुजारी करता हैं।
बाण माताः-
कुम्भलगढ किले के पास केलवाड़ा उदयपुर की गढी में इसका मंदिर हैं। यह मेवाड़ के शासकों व सिसोदिया वंश की कुल देवी हैं।
अन्य प्रमुख लोक देवियों के नाम स्थान –
- छींक माता – जयपुर
- छीछं माता – बांसवाड़ा
- हिचकी माता – सरवाड़ (अजमेर)
- अम्बिका माता – जगत (उदयपुर)
- क्षेमकारी माता- भीनमाल (जालौर)
- सुभद्रा माता -भाद्राजूण (जालौर)
- खूबड़ माता – सिवाणा (बाड़मेर)
- बाण माता – उदयपुर सिसोदिया वंश की कुल देवी
- नागणेची माता – नगाणा गांव (बाडमेर)
- बिखडी माता – उदयपुर
- सुंन्धा माता -सुन्धा पर्वत (जालौर)
- घेवर माता – राजसमंद
- चार भुजा देवी – खमनौर (राजसमंद)
- पीपाड़ माता- ओशिया (जोधपुर)
- आमजा माता – केलवाडा (उदयपुर)
- कुशाल माता- बदनोर (भीलवाडा)
- जिलाडी माता – बहरोड़ (अलवर)
- चैथ माता – चैथ का बरवाडा (स.धो)
- हर्षत माता – आभानेरी (दौसा)
- मनसा देवी – (चुरू)
- आवरी माता- निकुम्भ (चित्तौड़गढ) लकवे के रोगियां का उपचारकत्र्ता देवी
- भदाणा माता – कोटा
- भांवल माता – नागौर
- भंवर माता- छोटी सादडी (प्रतापगढ)
- सीता माता- बडी सादडी (चित्तौड़गढ)
- दधिमति माता- गोठ मांगलोद (नागौर)
- हींगलाज माता – नारलाई (जोधपुर)
- त्रिपुरा सुन्दरी माता /तरतई माता/त्रिपुरा महालक्षमी -तलवाडा (बांसवाडा)
- उन्टाला माता – वल्लभ नगर (उदयपुर)
- भद्रकाली माता – हनुमानगढ़
- मगरमण्डी माता – नीमाज (पाली)
- विरात्रा माता – बाड़मेर
- कुण्डालिनी माता- राश्मी (चित्तौड़गढ)
- जमुवाय माता-जमवारामगढ़ (जयपुर) कच्छवाह वंश की कुल देवी।
- धूणी माता -डबोक (उदयपुर)
- सेणी माता – जोधपुर
- बिजासणी माता – लालसौट (दौसा)
- सुगाली माता- आउवा (पाली)
- आसपुर माता – आसपुर तह. (डूंगरपुर)
- बडली माता-चित्तौड़गढ़ छीपों का अंकोला (बेडचनदी के किनारे)
- जोगणिया माता – भीलवाडा
- लटियाल भवानी -जोधपुर-कल्ला समाज की कुल देवी। इन्हे खेजड़अेरी राय भवानी भी कहते है।
- खोडिया देवी – जैसलमेर
- सीमलमाता- बसंतगढ़ (बाड़मेर)
- अधर देवी /अर्बुदा देवी – माऊंट आबू
- राणी भटियाणी – जसौल (बाडमेर)
- नगटी माता – जयपुर
- महामाई माता- रेनवाल (जयपुर)
- ज्वाला माता – जोबनेर (जयपुर) खंगारातो की कुल देवी
- पोकरण वाली आसपुर माता बिस्सा समाज की कुल देवी है।
- त्रिपुरा सुन्दरी पांचाल जाति की कुल देवी है।
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