नमस्कार दोस्तो , मैं अभिषेक दुबे ( ABHISHEK DUBEY ) एक बार फिर से OnlineGkTrick.com पर आपका स्वागत करता हूँ , दोस्तों इस पोस्ट मे हम आपको राजस्थान के प्रमुख सम्प्रदाय ( Rajasthan Ke Pramukh Sampraday ) की जानकारी उपलब्ध करा रहे है ! जो आपके आगामी प्रतियोगी परीक्षाओ के लिए बहुत Important है , तो दोस्तों उम्मीद है यह जानकारी आपके लिए काफी महत्वपूर्ण साबित होगी !
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राजस्थान के प्रमुख सम्प्रदाय ( Rajasthan Ke Pramukh Sampraday )
रामस्नेही सम्प्रदाय –
इस सम्प्रदाय की चार जगह पीठ हैं। जिसमें प्रधान पीठ शाहपुरा भीलवाड़ा में हैं। इसके संस्थापक रामचरण जी थे, जिनका जन्म सोड़ा ग्राम टोंक में हुआ था। शाहुपरा भीलवाड़ा में रामस्नेही सम्प्रदाय द्वारा फुलडोल महोत्सव का चैत्र कृष्ण एकम से चैत्र कृष्ण पंचमी तक मनाया जाता हैं। तथा इस सम्प्रदाय की अन्य पीठ खेड़ापा जोधपुुर के संस्थापक रामदासजी थे। रैण नागौर पीठ के संस्थापक दरियावजी थे। सीथंल बीकानेर के संस्थापक हरीराम दास जी थे।
दादू सम्प्रदाय –
इसके संस्थापक दादू जी थे। जिनका जन्म अहमदाबाद गुजरात में हुआ। इनके गुरू का नाम वृद्वानन्द जी था। दादूजी को राजस्थान का कबीर भी कहते हैं। दादूजी ने अपना अंितम स्थान नारायणा जयपुर में बिताया था। दादू जी के अनुयायी पाँच शाखाओं में विभाजित हो गये। वो इस प्रकार हैं खालसा, नागा, उत्तरादे, विरक्त, खाकी। खालसा शाखा का नारायणा जयपुर में मुख्य स्थान रहा। दादू जी के 152 शिष्य थें। जिनमें से इनके प्रमुख 52 शिष्यों को ‘बावन स्तम्भ’ कहते हैं। इनके प्रिय शिष्यों में रज्जब जी, गरीबदास जी, सुन्दर दास जी आदि थे। आमेर के राजा भगवन्त दास ने दादूजी की मुलाकत फतेहपुर सिकरी में अकबर से करवाई। दादूजी का सिद्वान्त यह कहता हैं कि ‘ईश्वर केवल मनुष्य सदगुण को पहचानता है तथा उसकी जाति नहीं पूँछता। आगामी दुनिया में कोई जाति नहीं होगी।
विश्नोई सम्प्रदाय –
इसके संस्थापक जाम्भोजी थे। जिनका वास्तविक नाम धनराज था। इनको विष्णु का अवतार, गूंगा-गहला, पर्यावरण वैज्ञानिक आदि के नामों से जाना जाता हैं। इनका जन्म बीकानेर की पीपासर गाँव में हुआ। इन्होंने 29 नियम दिये। 20$9 (बीस$नौ) के कारण ये विश्नोई कहलायें। जाम्भोजी के दिये गये उपदेशों का संकलन ’जम्भ सागर’ के नाम से जाने जाते हैं। बीकानेर की मुकाम गाँव में जाम्भोजी ने समाधि ली। वहीं पर इनका मुख्य मंदिर हैं। विश्नोई सम्प्रदाय के सर्वाधिक लोग जोधपुर में रहते हैं। राजस्थान में वन्य जीवों (मृग) एवं वृक्षों की रक्षा के लिए परम्परागत रूप से सक्रिय जाति विश्नोई ही हैं।
जसनाथी सम्प्रदाय –
इसके संस्थापक जसनाथ जी थे। इनकी प्रधान पीठ बीकानेर की कतरियासर गाँव में हैं। जसनाथ जी अपने अनुयायियों को 36 नियम दिये थे। जसनाथ जी को आश्विन शुक्ल सप्तमी को ही ज्ञान की प्राप्ति हुई व इसी तिथि को उन्होंने समाधि ली। जसनाथ जी ने अपने उपदेशों को सिभूदड़ा व कोड़ा नामक ग्रंथों में संकलित किया। इस सम्प्रदाय के लोग धधकते हुए अंगारों पर नृत्य करते हैं। जिसकों अग्नि नृत्य कहते हैं। जसनाथ जी के चमत्कारों से प्रभावित होकर सुल्तान सिंकदर लोदी ने उन्हें जागीर दी। इस सम्प्रदाय के सर्वाधिक लोग बीकानेर में निवास करते हैं।
निम्बार्क सम्प्रदाय –
इस सम्प्रदाय को हंस सम्प्रदाय, सनकादि सम्प्रदाय आदि नामों से जाना जाता हैं। इसके संस्थापक निम्बाकाचार्य थे। इस सम्प्रदाय की प्रधान पीठ सलेमाबाद अजमेर में हैं। तथा दूसरी पीठ उदयपुर में हैं। इस सम्प्रदाय के अनुयायी राधा व श्रीकृष्ण को युगल रूप में पुजा करते हैं। अर्थात राधा को श्रीकृष्ण की पत्नी के रूप में पुजा करते हैं।
वल्लभ सम्प्रदाय –
इसके संस्थापक वल्लभाचार्य थे। इसकी प्रधान पीठ नाथद्वारा राजसंमद में हैं। तथा दूसरी पीठ कोटा में हैं। इस सम्प्रदाय के लोग श्रीकृष्ण के बालरूप को पुजते हैं। इस सम्प्रदाय का संबोधन ‘श्रीकृष्णम शरणम ममः’ हैं।
दासी सम्प्रदाय –
इसकी संस्थापक मीरांबाई थी। मीरां बाई का जन्म 1498 में पाली जीले के कुड़ली गाँव में रतन्सिंह राठौड़ (पिताजी) व खुशबु कँवर (माताजी) के घर में हुआ। इनके बचपन का नाम पेमल था। तथा इनके पति का नाम भोजराज था। इनके गुरू का नाम रैदास था। मेड़ता-नागौर को मीरां बाई की क्रिड़ा स्थली कहा जाता हैं। मीरां बाई के निर्देशन में रतनाखाती ने ब्रजभाषा में ‘नृसिंह जी रो मायरों’ नामक ग्रंथ की रचना की। मीरां बाई ने अपना अंतिम समय द्वारिका डाकोर (गुजरात) में बिताया।
निरंजनी सम्प्रदाय –
इसके संस्थापक संत हरिदास जी थे। जिनका जन्म कापड़ोद गाँव नागौर में हुआ। इनका मुल नाम हरिसिंह था जो पहले एक डाकू थे। फिर ये एक संत बन गये इसलिए इनको राजस्थान का वाल्मिकी कहा जाता हैं।
चरणदासी सम्प्रदाय –
इसके संस्थापक चरणदास जी थे। इनका जन्म डेहरा गाँव अलवर में हुआ। इस सम्प्रदाय की प्रधान पीठ दिल्ली में हैं। इनके सर्वाधिक अनुयायी अलवर में हैं। इन्होंने भारत पर नादिरशाह के आक्रमण की भविष्यवाणी की थी।
लालदासी सम्प्रदाय –
इसके संस्थापक लालदास जी थे। जिनका जन्म दूब गाँव अलवर में हुआ। इसकी प्रधान पीठ नगला भरतपुर में हैं। इन्होंने समाधी शेरपुर गाँव अलवर में ली थी।
नवल सम्प्रदाय –
इसके संस्थापक हरसौलव गाँव में जन्में संत नवलदासजी थें, जिनका प्रमुख मंदिर जोधपुर में हैं।माननाथी सम्प्रदायः- इसके प्रवर्तक नाथ मुनी थे। इसकी प्रधान पीठ महामन्दिर जोधपुर में हैं। यह सम्प्रदाय जोधपुर के राजा मानसिंह के समय फल-फुला था।
तेरापंथी सम्प्रदाय –
जैन श्वेताम्बर के तेरापंथी सम्प्रदाय के संस्थापक आचार्य भिक्षू स्वामी थे, जिनका जन्म कंटालिया गाँव जोधपरु में हुआ।
गूदड़ सम्प्रदाय –
इसके संस्थापक संत दास जी थें। इनकी प्रमुख पीठ दाँतड़ा गाँव भीलवाड़ा में हैं।
अलखिया सम्प्रदाय –
इसके संस्थापक स्वामी लालगिरी थे। जिनका जन्म चूरू में हुआ तथा इनकी प्रधान पीठ बीकानेर में हैं।
निष्कलंक सम्प्रदाय-
इसके संस्थापक संत मावजी थे। इसकी प्रधान पीठ साबला गाँव डूंगरपूर में हैं।
बैरागीनाथ सम्प्रदाय –
इसकी प्रधान पीठ राताडूगां पुष्कर में हैं।
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