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राजस्थान की प्रमुख बोलियां | Rajasthan Ki Pramukh Boliyan

Written by Abhishek Dubey

नमस्कार दोस्तो , मैं अभिषेक दुबे ( ABHISHEK DUBEY ) एक बार फिर से OnlineGkTrick.com  पर आपका स्वागत करता हूँ , दोस्तों इस पोस्ट मे  हम आपको की जानकारी उपलब्ध करा रहे है ! जो आपके आगामी प्रतियोगी परीक्षाओ के लिए बहुत Important है , तो दोस्तों उम्मीद है यह जानकारी आपके लिए काफी महत्वपूर्ण साबित होगी !

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राजस्थान की प्रमुख बोलियाँ

राजस्थान की मातृभाषा राजस्थानी हैं तथा राजस्थान की राजभाषा हिन्दी हैं। राजस्थानी भाषा दिवस 21 फरवरी को बनाया जाता हैं। तथा 14 सितम्बर को हिन्दी दिवस बनाया जाता हैं। राजस्थान की मूल भाषा राजस्थानी हैं। राजस्थानी भाषा की लिपि-देवनागरी है। इसकी उत्पति डाॅ. ग्रियर्सन ने नागर अपभ्रंश से मानी हैं। राजस्थान में सर्वाधिक भाषा मारवाड़ी बोली जाती हैं। अबूल-फजल ने अपनी पुस्तक आईने-अकबरी में मारवाड़ी भाषा को भारत की मानक बोलियों में शामिल किया था। राजस्थान की भाषा के लिए राजस्थानी शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग 1907-08 में जार्ज ग्रियर्सन ने अपनी पुस्तक ‘लिंग्वटिक सर्वे आॅफ इण्डिया’ में किया। राजस्थानी साहित्य का स्वर्णकाल 1700-1900 ई. तक माना जाता हैं।

राजस्थान में क्षैत्रफल के हिसाब से मारवाड़ी भाषा बोली जाती हैं। लेकिन सर्वाधिक लोग ढूंढाड़ी भाषा को बोलते हैं। राजस्थानी भाषा का प्राचीनतम ग्रन्थ ‘वज्रसेन सुरी’ द्वारा रचित ‘भरतेश्वर बाहुबलि घोर’ है, तथा उधोतन सूरी की ‘कुवलयमाला’ ग्रंथ में भारत की 18 देशी भाषाओं में मारवाड़ी भाषा को ’मरूवाणी’ के नाम से पुकारा गया। राजस्थानी भाषा का साहित्यिक रूप डिंगल हैं।

मारवाड़ीः

यह जोधपुर, बीकानेर, जैसलमेर, बाड़मेर, नागौर, पाली, जालौर, सिरोही आदि क्षैत्रों में बोली जाती हैं। इस भाषा की प्रमुख साहित्य रचना राजिया रा दूहा, ढोला-मारू, मीराबाई की रचना आदी। यह राजस्थानी भाषा का मानक रूप हैं। तथा इसे राजस्थान की मरूभाषा भी कहते हैं। मारवाड़ी भाषा का शुद्व रूप जोधपुर क्षैत्र में मिलता हैं।

मेवाड़ीः-

यह मारवाड़ी की उपबोली हैं। यह उदयपुर, राजसमंद, चितौड़गढ आदि क्षैत्रों में बोली जाती हैं। मेवाड़ के राणा कुंभा द्वारा रचित रचनाएँ मेवाड़ी भाषा में ही लिखी हुई हैं।

ढूढांड़ीः-

उत्तर भाग को छोड़कर सम्पूर्ण जयपरु में बोली जाने वाली भाषा हैं। तथा अजमेर-मेरवाड़ा का पूर्वी भाग, टोंक, लावा एवं किशनगढ़ में भी बोली जाती हैं। दादूदयालजी की रचनाएँ इसी भाषा में लिखी गई हैं। नागरचोल, हाड़ौती, किशनगढ़ी, राजावटी, तोरावाटी, चैरासी तथा अजमेरी ढूढांड़ी की उपबोली हैं।

शेखावाटीः-

यह मारवाड़ी की उपबोली हैं।  यह चुरू, झुन्झुनू, सीकर एवं नागौर के कुछ क्षैत्र में बोली जाती हैं। इस पर ढुंढाड़ी का प्रभाव हैं।

गौड़वाडी़ः-

पाली के बाली से लेकर जालौर के आहोर तक इस बाली का प्रभाव हैं। नरपति नाल्ह द्वारा रचित बीसलदेव रासौ इसी भाषा का उदाहरण हैं।

खैराड़ीः-

यह भीलवाड़ा के शाहपुरा तथा बूंदी के कुछ क्षैत्र में बोली जाती हैं। यह मारवाड़ी की उपबोली हैं। मेवाड़ी, हाडौती एवं ढूंढाड़ी इस तीनों का प्रभाव हैं।

देवड़ावाटीः-

यह मारवाड़ी की उपबोली हैं। यह सिरोही क्षैत्र में बोली जाती हैं।

हाड़ौतीः-

यह ढूंढाड़ी की उपबोली हैं। यह कोटा, बूँदी, बांरा, झालावाड़ क्षैत्र में बोली जाती हैं। इस भाषा में सूर्यमल मिश्रण की रचनाएँ लिखी गयी हैं।

तोरावाटीः-

यह ढूंढाड़ी की उपबोली हैं। सीकर और झुन्झुनू में बोली जाती हैं।

राजावाटीः-

यह ढूंढाड़ी की उपबोली हैं। यह भाषा जयपुर के पूर्वी भाग में बोली जाती हैं।

चैरासीः-

यह ढूंढाड़ी की उपबोली हैं। जयपुर के दक्षिण-पश्चिमी (शाहपुरा) में बोली जाती हैं। तथा टोंक के पश्चिम भाग में बोली जाती हैं।

नागरचैलः-

यह ढूंढाड़ी की उपबोली हैं। यह सवाईमाधोपुर के पश्चिमी भाग तथा टोंक के दक्षिण व पूर्वी भाग में बोली जाती हैं।

काठेड़ीः-

यह ढूंढाड़ी की उपबोली हैं। यह जयपुर के दक्षिण भाग में बोली जाती हैं।

मेवातीः-

यह अलवर व भरतपुर के मेवात क्षैत्र में बोली जाती हैं। चरणदासजी व लालदासजी की रचनाएँ इसी भाषा में रचित हैं।

राठी/अहिरवाटीः-

यह जयपुर के कोटपुतली व अलवर के बहरोड़ व मुण्डावर में बोली जाती हैं। अलिबख्क्षी ख्याल इसी भाषा में होता हैं।

वागड़ीः-

यह डूँगरपूर एवं बाँसवाड़ा क्षैत्र में बोली जाती हैं। संत मावजी की रचनाएँ इसी भाषा में लिखी हुई हैं। इसे भीली बोली भी कहते हैं। इस बोली पर गुजराती भाषा का अधिक प्रभाव हैं। ग्रिर्यसन ने इसे भीली बोली कहा था।

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About the author

Abhishek Dubey

नमस्कार दोस्तों , मैं अभिषेक दुबे, Onlinegktrick.com पर आप सभी का स्वागत करता हूँ । मै उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले का रहने वाला हूँ ,मैं एक upsc Aspirant हूँ और मै पिछले दो साल से upsc की तैयारी कर रहा हूँ ।

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