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भक्ति और सूफी आंदोलन नोट्स ( Bhakti and Sufi Movement Notes)

भक्ति और सूफी आंदोलन नोट्स

*भक्ति आंदोलन का उदय सर्वप्रथम द्रविड़ देश में हुआ तथा वहां से उसका प्रचार उत्तर में किया गया। *भागवत पुराण में कहा गया है कि भक्ति द्रविड़ देश में जन्मी, कर्नाटक में विकसित हुई तथा कुछ काल तक महाराष्ट्र में रहने के बाद गुजरात में पहुंच कर जीर्ण हो गई। * भक्ति आंदोलन का सूत्रपात दक्षिण में 8वीं सदी में महान दार्शनिक शंकराचार्य के उदय के साथ हुआ था, जिन्होंने विशुद्ध अद्वैतवाद का प्रचार किया। *भक्ति आंदोलन को दक्षिण के वैष्णव आलवार संतों और शैव नयनार संतों ने प्रसारित किया था। *भक्ति आंदोलन का पुनर्जन्म पंद्रहवीं-सोलहवीं सदी ई. में हुआ, जब इसके नेतृत्व की बागडोर कवीर, नानक, तुलसी, सूर एवं मीराबाई ने संभाली।

*मध्यकालीन भारत में सूफियों के उदभव से समाज में समरसता फैलाने में मदद मिली। *ये सूफी ध्यान साधना और कठोर श्वास-नियमन जैसी यौगिक क्रियाओं को किया करते थे। *चे एकांत में कठोर यौगिक व्यायाम करते थे तथा समाज में एकता और सौहार्द फैलाने तथा श्रोताओं में आध्यात्मिक हर्षोन्माद उत्पन्न करने के लिए गीतों एवं संगीत का सहारा लेते थे।

*कामरूप जो असम राज्य में स्थित है, वहां पर वैष्णव धर्म को लोकप्रिय बनाने का कार्य शंकरदेव ने किया था। *एकेश्वरवाद उनके धर्म का मूल उद्देश्य था। *वे विष्णु या उनके अवतार कृष्ण को अपना अभीष्ट मानते थे। *उन्होंने एकशरण संप्रदाय की स्थापना की। *वे कर्मकांड एवं मर्तिपजा दोनों के विरोधी थे। *वे असम के चैतन्य के रूप में प्रसिद्ध थे।

* श्री वल्लभाचार्य, सोमयाजी कुल के तेलुगू ब्राह्मण श्री लक्ष्मणभट्ट के पुत्र थे। *परंपरानुसार इन्होंने रुद्र संप्रदाय के प्रवर्तक विष्णुस्वामी के मत का अनुसरण तथा विकास करके अपना शुद्धाद्वैत मत (शुद्ध अद्वैतवाद) या पुष्टिमार्ग प्रतिष्ठित किया। *ये अग्नि के अवतार माने जाते हैं।

*वल्लभाचार्य जी द्वारा रचित महत्त्वपूर्ण ग्रंथ-ब्रह्मसूत्र का ‘अणु भाष्य’ और ‘वृहद भाष्य’, भागवत की ‘सुबोधिनी’ टीका, भागवत तत्वदीप निबंध, पूर्व मीमांसा भाष्य, गायत्री भाष्य, पत्रावलंबन, दशम स्कंध अनुक्रमणिका, त्रिविध नामावली आदि हैं। *द्वैतवाद के प्रवर्तक मध्वाचार्य हैं। *विशिष्ट द्वैतवाद के रामानुजाचार्य और द्वैताद्वैतवाद के प्रवर्तक निम्बार्काचार्य हैं, जो कि सनक संप्रदाय से संबंधित हैं। *उत्तर भारत में रामानंद भक्ति आंदोलन के प्रथम प्रवर्तक थे, जिनका जन्म 1299 ई. में प्रयाग (इलाहाबाद/प्रयागराज) के कान्यकुब्ज ब्राह्मण परिवार में हुआ था। *ये सगुण ईश्वर में विश्वास करते थे। *इन्होंने सर्वप्रथम अपने संदेश का प्रचार हिंदी भाषा में किया। *कबीर (1398-1518 ई.) रामानंद के 12 शिष्यों में से प्रमुख थे। *लोक परंपरा के अनुसार, उनका जन्म किसी विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से वाराणसी के समीप हुआ था तथा पालन-पोषण एक जुलाहा दंपत्ति नीरू और नीमा ने किया था। *बीजक’ संत कबीर के उपदेशों का संकलन है, जो कबीरपंथी संप्रदाय के मानने वालों का पवित्र ग्रंथ है। *’सबद’, ‘साखी’ एवं ‘रमैनी’ कबीर की रचनाएं हैं, परंतु धरमदास के साथ उनके संवादों का संकलन ‘अमरमूल’ शीर्षक के अंतर्गत प्राप्त होता है। *संत मलूकदास का जन्म लाला सुंदरदास खत्री के घर में 1574 ई.में कड़ा (वर्तमान कौशाम्बी जिला) में हुआ था। *गुरु घासीदास का जन्म दिसंबर, 1756 में छत्तीसगढ़ में रायपुर जिले के गिरौदपुरी गांव में हुआ था। *उनके पिता महंगूदास और माता अमरौतीन वाई थीं। *भगवान शिव की प्रतिष्ठा में भारत के विभिन्न भागों में 12 ज्योतिर्लिंगों की स्थापना की गई है। *ये हैं केदारनाथ, विश्वनाथ, वैद्यनाथ, महाकालेश्वर, ओंकारेश्वर, नागेश्वर, सोमनाथ, त्र्यंबकेश्वर, घृष्णेश्वर, भीमाशंकर, मल्लिकार्जुनस्वामी और रामेश्वरम। *गुरुनानक का जन्म 1469 ई. में तलवंडी नामक स्थान पर हुआ था। अब यह ‘नानकाना साहब’ कहलाता है। *यह पंजाब (पाकिस्तान) के नानकाना साहिब जिले में स्थित है। *गुरुनानक की मृत्यु 1539 ई. में डेराबाबा (करतारपुर, पाकिस्तान) नामक स्थान पर हई थी। *गरुनानक (1469-1539 ई.) ने सिख धर्म की स्थापना सिकंदर लोदी (1489-1517 ई.) के समय में की थी। *नानक एकेश्वरवाद में विश्वास करते थे तथा निर्गुण ब्रह्म की उपासना पर बल देते थे। *गुरुनानक का कहना है, ” ईश्वर व्यक्ति के गुणों को जानता

है, पर वह उसकी जाति के बारे में नहीं पूछता, क्योंकि दूसरे लोक में कोई जाति नहीं हैं। गुरुनानक ने गुरु का लंगर नाम से मुक्त सामुदायिक रसोई की शुरुआत की। “उनके अनुयायी किसी की भी जाति पर ध्यान दिए बिना एक साथ भोजन करते थे। *मीरावाई मेड़ता के रतन सिंह राठौर की इकलौती पुत्री थीं। *इनका जन्म 1498 ई. में मेड़ता के कुदकी नामक ग्राम में हुआ था। *इनका विवाह उदयपुर के प्रसिद्ध शासक राणा सांगा के ज्येष्ठ पुत्र युवराज भोजराज से हुआ था। ___ *महाराष्ट्र में भक्ति आंदोलन को लोकप्रिय बनाने में नामदेव की महत्वपूर्ण भूमिका थी। *इनका जन्म 1270 ई. में पंढरपुर में हुआ था। *इनके गुरु विसोबा खेचर थे। *नामदेव वारकरी संप्रदाय से संबंधित थे। *बिसोबा खेचर अथवा खेचर नाथ नामक एक नाथपंथी कनफटे ने इन्हें रहस्यवादी जीवन की दीक्षा दी तथा ईश्वर के सर्वव्यापी स्वरूप से परिचय कराया। *नामदेव ने कहा था “एक पत्थर की पूजा होती है, तो दूसरे को पैरों तले रौंदा जाता है यदि एक भगवान है, तो दूसरा भी भगवान है।” *इनके कुछ गीतात्मक पद्य गुरु ग्रंथ साहिब में संकलित हैं। *तुकाराम का काल 1608 से 1649 ई. के मध्य माना जाता है। *ऐसी मान्यता है कि 1608 ई. में जन्में संत तुकाराम 1649 ई. में अदृश्य हो गए। यह वरकरी संप्रदाय से संबंधित थे।

*दादू दयाल का समय 1544 ई. से 1603 ई. के मध्य था। *त्यागराज का समय 1767 ई. से 1847 ई. तक था। *यह भक्ति मार्गी कवि एवं कर्नाटक संगीत के महान संगीतज्ञ थे।

*भक्ति आंदोलन के प्रसिद्ध संत महाप्रभु चैतन्य (1486-1534 ई.) का जन्म बंगाल के नदिया जिले में एक संभ्रांत ब्राह्मण परिवार में हुआ था। *उनके पिता का नाम जगन्नाथ मिश्र तथा माता का नाम शची देवी था। *चैतन्य के बचपन का नाम निमाई था। *चैतन्य ने कृष्ण को अपना आराध्य बनाया तथा उन्हीं की भक्ति का प्रचार किया।

*सुप्रसिद्ध भक्त/संत कवि गोस्वामी तुलसीदास अकबर तथा जहांगीर के समकालीन थे। *तुलसीदास ने अनेक ग्रंथ लिखे, जिनमें ‘रामचरितमानस’ तथा ‘विनयपत्रिका’ सर्वोत्तम हैं। *’रामचरितमानस’ की रचना गोस्वामी तलसीदास (1532-1623) ने अवधी भाषा में की थी।

*सूफी मत का जन्म भले ही विदेशी धरती पर हुआ हो, किंतु उसका पोषक तत्व भारतीय वेदांत वाद है। ___ *सूफी प्रेम काव्य कोमल हृदय की सुंदर एवं सरस अभिव्यक्ति है। कुछ विद्वानों के अनुसार, सूफी मत पर चार दार्शनिक प्रभाव हैं

  1. आर्यों का अद्वैतवाद एवं विशिष्टाद्वैतवाद 2. नव अफलातूनी मत 3. विचार स्वातंत्र्य 4. इस्लाम की गुह्य विद्या

*चिश्तिया सूफी मत की स्थापना अफगानिस्तान के चिश्त में अबू इस्हाक शमी चिश्ती और उनके शिष्य ख्वाजा अबू अहमद अब्दाल ने की थी, किंतु भारत में सर्वप्रथम इसका प्रचार ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के द्वारा हुआ था। *वे 12वीं शताब्दी में मुहम्मद गोरी की सेना के साथ भारत आए थे। *उन्होंने अजमेर (राजस्थान) में अपना निवास स्थान बनाया। *1236 ई. में इनकी मृत्यु हो गई। *कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी इनके प्रमुख शिष्य थे। *निशापुर के हारोन में ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती, ख्वाजा उस्मान चिश्ती हरुनी के शिष्य बने। ___ *शेख फरीदुद्दीन-गंज-ए-शकर चिश्ती सिलसिले के सूफी संत थे, जो बाबा फरीद के नाम से प्रसिद्ध थे। *इन्हीं के प्रयत्नों के फलस्वरूप चिश्तिया सिलसिले को भारत में लोकप्रियता मिली। *इनका सबसे महत्वपूर्ण योगदान वे रचनाएं हैं, जो गुरु ग्रंथ साहिब में संकलित हैं। *ये बलबन के दामाद थे। *शेख निजामुद्दीन औलिया के आध्यात्मिक गुरु हजरत वावा फरीदुद्दीन मसूद गंजशकर (Hazarat Baba Fariduddin Masood Ganjshakar) थे, जिन्हें बाबा फरीद (Baba Farid) के नाम से भी जाना जाता है। *इनके अन्य प्रमुख शिष्य अलाउद्दीन साबिर कलियारी और नसीरुद्दीन चिराग-ए-देहलवी थे। *शेख निजामद्दीन औलिया की दरगाह दिल्ली में स्थित है। *1325 ई. में निजामुद्दीन औलिया की मृत्यु हुई। उन्हें गियासपुर (दिल्ली) में दफनाया गया था। *शेख निजामुद्दीन औलिया ने सात सुल्तानों का राज्य देखा, जो कि एक के बाद एक सत्तासीन होते रहे, किंतु वे कभी भी किसी के दरबार में नहीं गए। *जब अलाउद्दीन ने उनसे मिलने की आज्ञा मांगी तो शेख ने उत्तर दिया कि ‘मेरे मकान के दो दरवाजे हैं, यदि सुल्तान एक के द्वारा आएगा, तो मैं दूसरे के द्वारा बाहर चला जाऊंगा।’ *इस प्रकार उन्होंने अलाउद्दीन से मिलने से इंकार कर दिया था। *वे महबूब-ए-इलाही और ‘सुल्तान-उल-औलिया’ (संतों का राजा) के नाम से प्रसिद्ध थे।

चिश्ती शाखा के अंतिम सूफियों में शेख सलीम चिश्ती का नाम विशेष उल्लेखनीय है। *इनके पिता का नाम शेख बहाउद्दीन था। *ये बहुत दिनों तक अरब में रहे और वहां उन्हें ‘शेख-उल-हिंद’ की उपाधि से विभूषित किया गया। *तत्पश्चात वे भारत लौट आए और आगरा से 36 किमी. की दूरी पर स्थित सीकरी नामक स्थान पर रहने लगे, जिसे अकबर ने अपने प्रसिद्ध नगर फतेहपुर सीकरी का रूप प्रदान किया। *कहा जाता है कि जहांगीर का जन्म शेख सलीम चिश्ती के आशीर्वाद से हआ था।

*चिश्ती सिलसिले का प्रभाव क्षेत्र दिल्ली एवं आस-पास के क्षेत्रों में था, जबकि सुहरावर्दी सिलसिले का प्रभाव क्षेत्र सिंध के क्षेत्र में था। *फिरदौसी सिलसिला चिश्ती सिलसिले का ही भाग था, जिसका प्रभाव क्षेत्र बिहार में था।

*कादरी शाखा के सर्वप्रथम संस्थापक बगदाद के शेख मुहीउद्दीन कादिर जिलानी थे, जिनकी गणना इस्लाम के महान संतों में की जाती है। *शेख अब्दुल कादिर जिलानी की प्रमुख उपाधियां थीं- ‘महबूब-ए-सुमानी’

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Abhishek Dubey

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