कांग्रेस : बनारस, कलकत्ता एवं
सूरत अधिवेशन
नोट्स
*गोपाल कष्ण गोखले ने कांग्रेस के बनारस अधिवेशन (1905) की अध्यक्षता की। *वर्ष 1905 में ही इन्होंने भारत सेवक समाज (Servants of India Society) की स्थापना की थी। वर्ष 1906 के कलकत्ता कांग्रेस अधिवेशन में अध्यक्ष पद को लेकर पार्टी में विभाजन की नौबत आ गई थी, लेकिन दादाभाई नौरोजी के अध्यक्ष बनने से संभावित विभाजन उस समय टल गया। * राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में ही पहली बार दादाभाई ने स्वराज्य की मांग की। *कांग्रेस द्वारा ‘सेल्फ रूल’ संबंधी प्रस्ताव पर सर्वप्रथम वर्ष 1905 में बनारस अधिवेशन में चर्चा हई एवं वर्ष 1906 में कलकत्ता के अधिवेशन में स्वराज का प्रस्ताव पारित कर दिया गया। * इस प्रस्ताव के साथ स्वदेशी, बहिष्कार तथा राष्ट्रीय शिक्षा संबंधी प्रस्ताव भी पारित किए गए। *दादाभाई नौरोजी को लोग श्रद्धा से ‘भारत के वयोवृद्ध नेता’ (Grand Old Man of India) के नाम से स्मरण करते हैं। * 1892 ई. में वे पहले भारतीय थे, जो उदारवादी दल की ओर से फिंसबरी से ब्रिटिश संसद के सदस्य चुने गए। * वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 1886, 1893 और 1906 ई. में अध्यक्ष भी रहे। *दादाभाई
नौरोजी पहले भारतीय थे, जो एलफिंस्टन कॉलेज, बंबई में गणित एवं भौतिकी के प्रोफेसर नियुक्त हुए थे। * इन्होंने एक गुजराती पत्रिका ‘रास्त गोफ्तार’ की शुरुआत 1851 ई. में की थी। * सी. वाई. चिंतामणि ने दादाभाई नौरोजी के विषय में कहा था कि “भारत के सार्वजनिक जीवन को अनेक बुद्धिमान और निःस्वार्थ नेताओं ने सुशोभित किया है, परंतु हमारे युग में कोई भी दादाभाई नौरोजी जैसा नहीं था। दूसरी ओर गोखले ने कहा था-“यदि मनुष्य में कहीं देवत्व है, तो वह दादाभाई में है।” *वर्ष 1907 में सूरत में आयोजित कांग्रेस के 23वें वार्षिक अधिवेशन में उदारवादियों और उग्रवादियों में अध्यक्ष पद को लेकर कांग्रेस का विभाजन हो गया। * उग्रपंथी जहां लाला लाजपत राय को अध्यक्ष बनाना चाहते थे, वहीं उदारवादी रास बिहारी घोष को अध्यक्ष बनाना चाहते थे। *अंततः रास बिहारी घोष अध्यक्ष बनने में सफल हुए।