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दिल्ली सल्तनत : प्रशासन नोट्स (Delhi Sultanate : Administration Notes)

दिल्ली सल्तनत : प्रशासन नोट्स

*गुलाम वंश के सुल्तानों ने 1206 से 1290 ई. तक शासन किया। *खिलजी वंश ने 1290 से 1320 ई. तक शासन किया। *तुगलक वंश के शासकों ने 1320 से 1412 ई. तक शासन किया। सैयद वंश ने 1414 से 1451 ई. तक शासन किया था। *लोदी वंश के शासकों ने 1451 से 1526 ई. तक शासन किया। *इसमें तुगलक वंश का शासन सबसे दीर्घकालिक था।

*सल्तनत काल के अधिकांश अमीर एवं सुल्तान तुर्क वर्ग के थे। *सुल्तान केंद्रीय शासन का प्रधान था। *इसी तरह सल्तनत काल में प्रायः सभी प्रभावशाली पदों पर नियुक्त व्यक्तियों को अमीर की संज्ञा दी जाती थी। *इन अमीरों का प्रभाव उस समय अधिक होता था, जब सुल्तान अयोग्य और निर्बल अथवा अल्पवयस्क होता था।

*प्रशासनिक विभाग एवं इसे प्रारंभ करने वाले शासक निम्न हैंदीवान-ए-मुस्तखराज (राजस्व विभाग)- अलाउद्दीन खिलजी दीवान-ए-रियासत (बाजार नियंत्रण विभाग)- अलाउद्दीन खिलजी दीवान-ए-अमीरकोही (कृषि विभाग)- मुहम्मद बिन तुगलक दीवान-ए-खैरात (दान विभाग)- फिरोज तुगलक दीवान-ए-बंदगान- फिरोज तुगलक विभाग एवं उनकी कार्यविधियां निम्न हैं – दीवाने अर्ज

– सेना विभाग से संबंधित दीवाने रिसालत

धार्मिक मुद्दों से संबंधित विदेशी मामलों

की देख-रेख से संबंधित दीवाने इन्शा

सरकारी पत्रव्यवहार से संबंधित दीवाने वजारत

वित्तीय मामलात से संबंधित/राजस्व

विभाग *विजारत एक ऐसी संस्था थी, जिसे इस्लामी संविधान में मान्यता दी गई थी। *जिन गैर-अरबी संस्थाओं को अंतर्मुक्त किया गया तथा मुस्लिम सम्राटों के अधीन मंत्रिपरिषद के लिए जो नाम व्यवहार में लाए गए थे, उन्हें विजारत की संज्ञा दी गई थी। *विजारत को एक संस्था के रूप में अपनाने की प्रेरणा अब्बासी खलीफाओं ने फारस से ली थी। *महमूद गजनवी के राज्यकाल में अब्बास फजल-बिन-अहमद प्रथम वजीर हुए, जो शासन व्यवस्था चलाने में निपुण थे। *राज्य का प्रधानमंत्री वजीर कहलाता था। *वजीर मुख्यतया राजस्व विभाग (दीवान-ए-वजारत) का प्रधान होता था। *इस दृष्टि से वह लगान, कर व्यवस्था, दान तथा सैनिक व्यय आदि सभी की देखभाल करता था। *तुगलक काल मुस्लिम भारतीय विजारत का स्वर्ण काल था। *फिरोज तुगलक के समय वजीर का पद अपने चरमोत्कर्ष पर जा पहुंचा।

*दशमलव प्रणाली के आधार पर सेना का संगठन और पदों का विभाजन किया गया था। * घुड़सवारों की टुकड़ी का प्रधान ‘सरेखेल’ कहलाता था। * दस सरेखेल के ऊपर एक ‘सिपहसालार’ दस सिपहसालारों के ऊपर

एक ‘अमीर’, दस अमीरों के ऊपर एक ‘मलिक’ और दस मलिकों के ऊपर एक ‘खान’ होता था। * सुल्तान सेना का मुख्य सेनापति होता था। *फिरोज तुगलक ने करान के नियमों को दृष्टि में रखकर कर निर्धारण किया। *उसने कुरान में अनुमोदित चार कर लगाने की अनुमति दी-खराज, जजिया, खुम्स एवं जकात। *खुम्स लूट का धन था। *जो युद्ध में शत्रु राज्य की जनता से लूट में प्राप्त होता था। *इस लूट का 4/5 भाग सैनिकों में वांट दिया जाता था और शेष 1/5 भाग राजकोष में जमा होता था, किंतु अलाउद्दीन खिलजी और मुहम्मद बिन तुगलक ने 4/5 भाग राजकोष में रखा और शेष 1/5 भाग सैनिकों में बांटा। *सिकंदर लोदी ने गड़े हुए खजाने से कोई हिस्सा नहीं लिया। *सल्तनत काल में शासन की सबसे छोटी इकाई ग्राम थी, जो स्वशासन तथा पैतृक अधिकारियों की व्यवस्था के अंतर्गत थी। *ग्राम स्तर पर चौधरी भू-राजस्व का सर्वोच्च अधिकारी था।

__*सल्तनत कालीन दो प्रमुख मुद्राएं हैं-जीतल एवं टंका। *इल्तुतमिश पहला तुर्क शासक था, जिसने शुद्ध अरबी सिक्के चलाए। *उसी ने दो प्रमुख सिक्के अर्थात चांदी का टंका और तांये का जीतल प्रचलित किया। *टंका एवं जीतल का अनुपात 1 : 48 का था। *अलाउद्दीन मसूद शाह (1242-46 ई.) के सिक्के पर सर्वप्रथम बगदाद के अंतिम खलीफा का नाम अंकित हुआ था। *बगदाद के अंतिम खलीफा अल-मुस्तसीम थे। *यह 1242-58 ई. तक खलीफा रहे। *इल्तुतमिश के सिक्के पर खलीफा अल मुस्तनसीर का नाम उल्लिखित था, जो 1226-42 ई. तक खलीफा रहे। *हदीस एक इस्लामिक कानून है, जबकि जवावित राज्य कानून से संबंधित है।

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Abhishek Dubey

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