गांधी-इर्विन समझौता नोट्स
*सविनय अवज्ञा आंदोलन के विस्तारित होते स्वरूप को देखते हुए वायसराय इर्विन ने देश में सौहार्द्र का वातावरण उत्पन्न करने के उद्देश्य से 26 जनवरी, 1931 को गांधीजी को जेल से रिहा कर दिया। * तेज बहादुर सप्रू तथा एम.आर. जयकर के प्रयत्नों से गांधी एवं इर्विन के मध्य फरवरी, 1931 में दिल्ली में वार्ता आरंभ हुई। * 5 मार्च, 1931 को दोनों के मध्य एक समझौता हुआ, जो गांधी-इर्विन समझौते के नाम से जाना जाता है। * इस समझौते के परिप्रेक्ष्य में सरोजिनी नायडू ने गांधी और इर्विन को दो महात्मा (The Two Mahatmas) की संज्ञा दी थी। * गांधी-इर्विन समझौते के अनुसार, (i) गांधीजी के नेतृत्व में कांग्रेस सविनय अवज्ञा आंदोलन स्थगित करने के लिए तैयार हो गई। (ii) सभी युद्ध बंदियों, जिनके विरुद्ध हिंसा का आरोप नहीं था, को रिहा करने का आदेश। (iii) विदेशी कपड़ों और शराब की दुकानों पर शांतिपूर्ण धरना देने का अधिकार। (iv) समुद्र तटीय प्रदेशों में बिना नमक कर दिए नमक बनाने की अनुमति। (v) कांग्रेस द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने के लिए तैयार हो गई। * परंतु इस समझौते ने जनता को निराश किया क्योंकि भगत सिंह, सुखदेव एवं राजगुरु को फांसी न दिए जाने की जनता की मांग को इसमें सम्मिलित नहीं किया गया था। *इर्विन के जीवनीकार, एलन कैम्पवेल जॉनसन ने गांधी-इर्विन समझौते में महात्मा गांधी के लाभों को ‘सांत्वना पुरस्कार’ (Consolation Prizes) और इर्विन के एकमात्र आत्मसमर्पण के रूप में बातचीत के लिए सहमत होने को कहा था।