कांग्रेस में गरम दल और नरम दल नोट्स
*भारत में राष्ट्रीय आंदोलन की दिशा को महात्मा गांधी के पदार्पण के पूर्व इटली-अबीसीनिया युद्ध (जिसमें इटली की औपनिवेशिक शक्ति पराजित हई), 1899-1901 ई. के दौरान चीन में साम्राज्यवादियों के विरुद्ध चलाए गए बॉक्सर आंदोलन तथा रूस पर जापान की विजय, इन सबने प्रभावित किया, किंतु इनमें वर्ष 1905 में जापान की रूस पर विजय का सर्वाधिक प्रभाव पड़ा। * जापान ने वर्ष 1905 में जारशाही रूस को हराकर स्वयं को सैनिक दृष्टि से एक शक्तिशाली यूरोपीय देश से श्रेष्ठ सिद्ध कर दिया था। * इससे इस मिथ्या भ्रम का निवारण हो गया कि गोरी जाति के लोग अजेय हैं। कांग्रेस के नरम दल के नेताओं की आंदोलन की प्रमुख पद्धति राजवांमवध्य आंदोलन (Constitutional Agitation) अर्थात प्रशासन में
भारतीयों की भागीदारी की मांग तथा जनता में राजनीतिक जागरूकता उत्पन्न करना था। * वहीं गरम दल के नेताओं की मुख्य मांगें अनुकूल प्रविघटन (Passive Resistance) पद्धति की थीं। *वर्ष 1907 में कांग्रेस के सूरत अधिवेशन में कांग्रेस नरमपंथी और गरमपंथी दो अलग-अलग गुटों में विभक्त हो गई। *उदारवादी राजनीति या राजनीतिक भिक्षावृत्ति के युग में अधिकांश नरमपंथी नेता यथा-दादाभाई नौरोजी, फिरोजशाह मेहता, दिनशा वाचा, व्योमेश बनर्जी और सुरेंद्रनाथ बनर्जी आदि शहरी क्षेत्रों से संबद्ध थे। * इस काल में कांग्रेस पर समृद्धशाली मध्यवर्गीय बुद्धिजीवियों का जिनमें वकील, डॉक्टर, इंजीनियर, पत्रकार एवं साहित्यिक व्यक्ति सम्मिलित थे, का अधिकार था। * उपाधियां और बड़े-बड़े पद इन लोगों के लिए आकर्षण रखते थे। * कांग्रेस में आने वाले ये प्रतिनिधि बड़े-बड़े नगरों से आते थे तथा जनसाधारण से इनका कोई संपर्क नहीं था। *फिरोजशाह मेहता ने स्वयं कहा था-“कांग्रेस की आवाज जनता की आवाज नहीं है, परंतु उनके साथ रहने वाले अन्य देशवासियों का यह कर्तव्य है कि वे इनकी भावनाओं को समझें और उन्हें व्यक्त करें और उनके उपचार का प्रयत्न करें।” *गोपाल कृष्ण गोखले उदारवादी खेमे से संबद्ध थे। * वह समभाव और मृद न्यायप्रियता में विश्वास करते थे। *उन्हें पूर्ण विश्वास था कि देश का पुनरुद्धार उत्तेजना के बवंडरों में नहीं हो सकता। * वे साधन और साध्य दोनों की पवित्रता में विश्वास करते थे। *इन्हीं विचारों से प्रभावित होकर गांधीजी उनके शिष्य बन गए। * गोखले ने 1889 ई. में सर्वप्रथम राजनीति में भाग लिया। * 1897 ई. में उन्हें और वाचा को भारतीय व्यय के लिए नियुक्त वेल्यी आयोग के सम्मुख साक्ष्य देने को कहा गया। *वर्ष 1902 में वह वंबई संविधान परिषद के लिए और कालांतर में Imperial Legislative Council के लिए चुने गए। वर्ष 1906 के बाद भारतीय राजनीति में कांग्रेस के अंदर उग्रवादी दल के उदय के साथ-साथ देश में क्रांतिकारी उग्रवादी दलों का आविर्भाव हुआ। * उग्रवादी विचारधारा के चार प्रमुख नेता थे-बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय, बिपिन चंद्र पाल तथा अरबिंद घोष। *इन नेताओं ने स्वराज्य प्राप्ति को ही अपना लक्ष्य बनाया। * उन्हें उदारवादी नेताओं की तरह संवैधानिक दायरे के अंदर अपनी मांगें मनवाने में विश्वास नहीं था। * तिलक ने कहा कि-“हमारा उद्देश्य आत्मनिर्भरता है, भिक्षावृत्ति नहीं।” * उन्होंने कांग्रेस पर प्रार्थना, याचना तथा विरोध की राजनीति करने का आरोप लगाया। * उनके नेतृत्व में कांग्रेस की प्रार्थना और याचना की नीति समाप्त हो गई।
*जहां उदारवादी दल संवैधानिक आंदोलन में, अंग्रेजों की न्यायप्रियता में, वार्षिक सम्मेलनों में, भाषण देने में प्रस्ताव पारित करने में और इंग्लैंड में शिष्टमंडल भेजने में विश्वास करता था वहीं दूसरी ओर उग्रवादी दल आक्रामक प्रतिरोध में, सामूहिक आंदोलन में तथा आत्मबलिदान के लिए दृढ़ निश्चय में विश्वास करता था। *इनके लिए स्वराज का अर्थ ‘विदेशी नियंत्रण से पूर्ण स्वतंत्रता था’, जबकि उदारवादी दल के स्वराज का अर्थ ‘साम्राज्य के अंदर औपनिवेशिक स्वशासन था।’
*लाला लाजपत राय ‘शेर-ए-पंजाब‘ के नाम से भी जाने जाते थे। * ये भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में गरम दल के नेता तथा परे पंजाब के प्रतिनिधि थे। * इन्हें ‘पंजाब केसरी’ भी कहा जाता है। * लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक तथा बिपिन चंद्र पाल को ‘लाल-बाल-पाल’ के नाम से भी जाना जाता है। * “साइमन कमीशन’ का विरोध करते समय हुए लाठीचार्ज से लाला लाजपत राय घायल हुए, जिसके कारण 17 नवंवर, 1928 को इनकी मृत्यु हो गई। *लाला लाजपत राय ने इटली के क्रांतिकारी (राष्ट्रपिता) मैजिनी के जीवनवृत्त को पढ़ने के बाद उन्हें अपना राजनीतिक गुरु माना तथा बाद में उन्होंने मैजिनी की उत्कृष्ट रचना ‘ड्यूटीज ऑफ मैन’ का उर्दू में अनुवाद भी किया। *बंगाल के विभाजन के विरोध में चलाए गए ‘स्वदेशी आंदोलन’ के अरबिंद घोष प्रमुख नेता थे। * इस
आंदोलन के अन्य प्रमुख नेता लाला लाजपत राय (पंजाब), बाल गंगाधर तिलक (महाराष्ट्र) तथा बिपिन चंद्र पाल (बंगाल) थे। *तिलक सेवा और बलिदान में विश्वास करते थे और उनमें सरकार की सत्ता को चुनौती देने का साहस था। * सर वैलेंटाइन शिरोल ने उन्हें भारत में ‘अशांति का जन्मदाता’ कहा था। * बाल गंगाधर तिलक को सजा सुनाए जाने के पश्चात प्रसिद्ध विद्वान मैक्स मुलर ने दया की वकालत करते हुए यह कहा था कि “संस्कृत के एक विद्वान के रूप में तिलक में मेरी दिलचस्पी है।” *वर्ष 1908 में बाल गंगाधर तिलक को ‘केसरी’ में प्रकाशित लेखों के आधार पर राजद्रोह का मुकदमा चलाकर 6 वर्ष के कारावास की सजा देकर मांडले जेल (बर्मा) भेज दिया गया था। * तिलक को हुई इस सजा के विरोधस्वरूप बंबई के कपड़ा मिल मजदूरों ने देश में पहली राजनीतिक हड़ताल की थी। * “मांडले जेल’ में ही इन्होंने ‘गीता रहस्य’ नामक पुस्तक लिखी थी। *तिलक सांप्रदायिकतावादी नहीं थे। *वे प्रथम राष्ट्रवादी नेता थे, जिन्होंने जनता से निकट का संबंध स्थापित करने का प्रयत्न किया और इस दृष्टि से वे महात्मा गांधी के अग्रगामी थे।* इस उद्देश्य से उन्होंने अखाड़े, लाठी क्लब, गो-हत्या विरोधी सभाएं स्थापित की। * उन्होंने महाराष्ट्र में शिवाजी महोत्सव तथा गणपति पर्व आरंभ किए ताकि जनता में राष्ट्रसेवा की भावना जागे। *बाल गंगाधर तिलक की 1 अगस्त, 1920 को हुई मृत्यु के बाद उनकी अर्थी को महात्मा गांधी के साथ मौलाना शौकत अली तथा डॉ. सैफुद्दीन किचलू ने उठाया था। * मौलाना हसरत मोहानी ने उस समय शोक गीत पढा था।