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Kisan Andolan and Kisan Sabha Notes (किसान आंदोलन और किसान सभा नोट्स)

किसान आंदोलन और किसान सभा नोट्स

*अवध में होमरूल लीग आंदोलन के कार्यकर्ता काफी सक्रिय थे। *इन्होंने किसानों को संगठित करना शुरू किया। * संगठन को नाम दिया गया ‘किसान सभा’। * फरवरी, 1918 में इंद्र नारायण द्विवेदी, गौरीशंकर मिश्र और मदन मोहन मालवीय के प्रयासों से ‘य.पी. किसान सभा की स्थापना हुई। * इस संगठन ने किसानों को बड़े पैमाने पर संगठित किया। * किसान सभा ने किसानों को किस हद तक जागरूक बनाया, इसका

अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि दिसंबर, 1918 में दिल्ली में कांग्रेस अधिवेशन में बड़ी संख्या में उ.प्र. के किसानों ने भाग लिया। *वर्ष 1919 के अंतिम दिनों में किसानों का संगठित विद्रोह खुलकर सामने आया। *अवध के प्रतापगढ़ जिले की एक जागीर में ‘नाई-धोबी बंद’ सामाजिक बहिष्कार एवं संगठित कार्रवाई की पहली घटना थी। * झिंगुरी सिंह और दुर्गापाल सिंह ने इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई लेकिन जल्दी ही आंदोलन में एक नया चेहरा उभरा-बाबा रामचंद्र, जिन्होंने आंदोलन की बागडोर ही नहीं संभाली, अपितु उसे और मजबूत एवं जुझारू बनाया। * बाबा रामचंद्र महाराष्ट्र के ब्राह्मण परिवार के थे। वर्ष 1920 के मध्य में वे एक किसान नेता के रूप में उभरे तथा उन्होंने अवध के किसानों को संगठित करना शुरू किया। * उनमें संगठन की अदभुत क्षमता थी। *वर्ष 1920 में इनके प्रयासों से प्रतापगढ़ में ‘अवध किसान सभा’ का गठन हुआ। *सहजानंद सरस्वती विहार प्रांतीय किसान सभा के संस्थापक थे। * इनके कृषि सुधार कार्यक्रम का वास्तविक लक्ष्य जमींदारी प्रथा का उन्मूलन तथा कृषकों को मालिकाना अधिकार दिलाना था। *किसानों के प्रति इनकी समर्पित सेवाओं के कारण इन्हें ‘किसान-प्राण’ कहा जाता था। *वर्ष 1936 में लखनऊ में अखिल भारतीय किसान कांग्रेस की स्थापना हुई, जिसका नाम बाद में बदलकर ‘अखिल भारतीय किसान सभा’ कर दिया गया, इसका अध्यक्ष भी स्वामी सहजानंद को तथा महासचिव एन.जी.रंगा को बनाया गया। * फैजपुर में कांग्रेस सत्र के साथ अखिल भारतीय किसान कांग्रेस का भी दूसरा सत्र चला जिसकी अध्यक्षता एन. जी. रंगा ने की।

___ *एका आंदोलन (1921-22) का नेतृत्व पिछड़ी जाति के मदारी पासी ने किया था। * इस आंदोलन में, जिसकी गतिविधि के मुख्य केंद्र हरदोई, बाराबंकी, बहराइच तथा सीतापुर थे, किसानों की मुख्य शिकायतें जमीदारों द्वारा लगान में बढ़ोत्तरी और उपज के रूप में लगान वसूल करने की प्रथा को लेकर थीं। * किसानों से 50 प्रतिशत से अधिक लगान वसूल किया जा रहा था। * इस आंदोलन में सरकार को लगान देना बंद नहीं किया गया, बल्कि आंदोलनकारियों की प्रमुख मांग थी-“बढ़ती महंगाई के कारण लगान का नकद में रूपांतरण किया जाए।” *वर्ष 1928 में सूरत जिले के वारदोली तालुके में गांधीवादी आंदोलन और सत्याग्रह को पर्याप्त सफलता मिली। *यहां मेहता बंधु सरीखे गांधीजी के अनुयायियों ने वर्ष 1922 से ही निरंतर अभियान चला रखा था। वर्ष 1928 में यहां कृषक आंदोलन का नेतृत्व वल्लभभाई पटेल ने किया था, जो बारदोली सत्याग्रह के नाम से प्रसिद्ध हुआ। * इसी आंदोलन में सफलता के कारण पटेल को बारदोली की महिलाओं ने ‘सरदार’ की उपाधि प्रदान की। *सितंबर, 1946 में बंगाल की ‘प्रांतीय किसान सभा’ द्वारा तिभागा आंदोलन प्रारंभ किया गया। * इस आंदोलन में बर्गादारों (बंटाईदारों) की मांग थी कि जमींदारों का फसल में हिस्सा आधे भाग से कम करके एक-तिहाई किया जाए तथा शेष दो-तिहाई हिस्सा बर्गादारों का हो। * इस

आंदोलन से उत्तरी बंगाल के जिले विशेष रूप से प्रभावित हए। *आचार्य विनोबा भावे सर्वोदय सम्मेलन के सिलसिले में 18 अप्रैल, 1951 को

तेलंगाना (तत्कालीन आंध्र प्रदेश) के ‘नलगोंडा जिले में पहुंचे थे। *यह जिला उस समय साम्यवादी गतिविधियों का प्रमुख केंद्र था। *इसी जिले के पोचमपल्ली’ गांव में विनोबा जी ठहरे हुए थे। * पोचमपल्ली प्रवास के दौरान गांव के 40 हरिजन परिवारों के लिए भूमि की समस्या का समाधान तलाशते समय इसी गांव के जमींदार रामचंद्र रेड्डी ने 100 एकड़ भूमि देने का प्रस्ताव किया। * यह स्वतः स्फूर्ति प्रस्ताव ही भूदान आंदोलन की उत्पत्ति का स्रोत बना। * अक्टूबर, 1951 से 1957 तक विनोबा जी ने पूरे भारत में 50 मिलियन एकड़ भूमि, भूमिहीनों के लिए प्राप्त करने के उद्देश्य से भूदान आंदोलन का नेतृत्व किया, जबकि लगभग 50 लाख एकड़ भूमि प्राप्त हुई थी।

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Abhishek Dubey

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