लोदी वंश
नोट्स
*लोदी वंश की स्थापना बहलोल लोदी ने 1451 ई. में की। *वह ‘बहलोलशाह गाजी’ के नाम से दिल्ली के सिंहासन पर बैठा तथा अपने नाम का खुतबा पढ़वाया। *इसकी सबसे महत्वपूर्ण विजय जौनपुर की थी। *बहलोल लोदी ने हिंदुओं के प्रति धार्मिक कट्टरता का व्यवहार नहीं किया। *उसके दरबार में कई प्रतिष्ठित हिंदू सरदार थे- राय करनसिंह, राय प्रतापसिंह, राय नरसिंह, राय त्रिलोकचंद्र और राय दादू। *उसने ‘बहलोल सिक्का’ चलाया जो उत्तर भारत में अकबर से पूर्व विनिमय का
य साधन था। *बहलोल लोदी ने अपनी मृत्यु के पहले ही अपने तीसरे पुत्र निजाम खां को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया था, किंतु कुछ सरदारों ने इसका विरोध किया जिसका मुख्य कारण यह था कि निजाम
खां की मां जैवंद एक सुनार की पुत्री थी। *कुछ शक्तिशाली सरदारों ने निजाम खां का साथ दिया और 17 जुलाई, 1489 ई. को निजाम खां सुल्तान सिकंदर शाह के नाम से सिंहासन पर बैठा। *वह लोदी वंश का महानतम शासक था। *1504 ई. में सिकंदर लोदी ने राजस्थान के शासकों पर नियंत्रण के ध्येय से यमुना नदी के किनारे आगरा नामक नवीन नगर बसाया और इसे अपनी राजधानी बनाया। *सिकंदर शाह अत्यधिक परिश्रमी, उदार एवं न्यायप्रिय शासक था। *उसने कृषि और व्यापार की
उन्नति के लिए प्रयत्न किया। *नाप का पैमाना ‘गज-ए-सिकंदरी’ उसी के समय में आरंभ किया गया। *उसने निर्धनों के लिए मुफ्त भोजन की व्यवस्था की। *उसने मुहर्रम में ‘ताजिये’ निकालना बंद कर दिया तथा ‘पीरों और संतों की मजारों पर मुस्लिम स्त्रियों के जाने पर रोक लगा दी थी। *उसके समय में योग्य व्यक्तियों की एक सूची बनाकर प्रत्येक छ: माह पश्चात उसके सामने प्रस्तुत की जाती थी। *वह शिक्षित और विद्वान था। *उसके स्वयं के आदेश से एक आयुर्वेदिक ग्रंथ का फारसी में अनवाद किया गया. जिसका नाम ‘फरहंगे सिकंदरी’ रखा गया। *उसके समय में गायन विद्या के एक श्रेष्ठ ग्रंथ ‘लज्जत-ए-सिकंदरशाही’ की रचना हुई। *सिकंदर लोदी शहनाई सुनने का बहुत शौकीन था। *वह ‘गुलरुखी’ उपनाम से कविताएं लिखता था। *सुल्तान सिकंदर ने अनाज से जकात (संपत्ति कर) समाप्त कर दिया।
*1518 ई. में महाराणा सांगा और इब्राहिम लोदी के मध्य खातोली का युद्ध हुआ। *इस युद्ध में इब्राहिम लोदी पराजित हुआ था। *पानीपत का प्रथम युद्ध 21 अप्रैल, 1526 को बाबर और इब्राहिम लोदी के मध्य हुआ था। *बाबर के योग्य सेनापतित्व, श्रेष्ठ युद्ध नीति और तोपखाने के कारण इब्राहिम की पराजय हुई और युद्ध स्थल में मारा गया। *फरिश्ता के अनुसार, वह मृत्युपर्यंत लडा और एक सैनिक की भांति मारा गया। *नआमतउल्ला (नियामतउल्ला) के अनुसार, सुल्तान इब्राहिम के अतिरिक्त भारत का अन्य कोई सुल्तान युद्ध स्थल में नहीं मारा गया।