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मराठा राज्य और संघ नोट्स (Maratha State and Union Notes)

मराठा राज्य और संघ नोट्स

*शिवाजी का जन्म 6 अप्रैल, 1627 या 19 फरवरी, 1630 में शिवनेर के दुर्ग में हुआ था। *शिवाजी ने 1674 ई. में राज्याभिषेक के बाद छत्रपति की उपाधि धारण की। *’रायगढ़’ को अपनी राजधानी बनाया। उस युग के महान विद्वान बनारस के पंडित विश्वेश्वर उर्फ ‘गंगाभट्ट’ ने उन्हें क्षत्रिय घोषित करते हुए उनका राज्याभिषेक कराया। *53 या 50 वर्ष की आयु में 1680 ई. में शिवाजी की मृत्यु हो गई।

*मराठा शक्ति का उत्कर्ष किसी एक व्यक्ति या विशेष व्यक्ति समूह का कार्य न था और न किसी विशेष समय में उत्पन्न हुई अस्थायी परिस्थितियों का ही परिणाम था। *मराठा शक्ति के उदय का आधार महाराष्ट्र के संपूर्ण निवासी थे, जिन्होंने जाति, भाषा, धर्म, साहित्य और निवास स्थान की एकता के आधार पर राष्ट्रीयता की भावना को जन्म दिया और उस राष्ट्रीयता को संगठित करने के लिए एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना की इच्छा व्यक्त की। *महाराष्ट्र की भौगोलिक परिस्थितियां भी मराठा शक्ति के उत्कर्ष में सहायक थीं। *शिवाजी और अन्य मराठा नेताओं की उच्च नेतृत्व क्षमता भी इसमें भागीदार थी।

*बीजापुर के सुल्तान ने 1659 ई. में अफजल खां नामक अनुभवी एवं विश्वस्त सेनानायक को शिवाजी की महत्वाकांक्षाओं पर अंकुश लगाने के लिए भेजा था, किंतु कूटनीतिज्ञ शिवाजी ने उसका वध कर दिया।

*1665 ई. में शिवाजी और जयसिंह के मध्य पुरंदर की संधि हुई। *शिवाजी को औरंगजेब ने आगरा में 1666 ई. में कैद कर दिया था। *शिवाजी मुगलों की कैद से भागने के समय आगरा नगर के जयपुर भवन में कैद (नजरबंद) थे। *शिवाजी ने राज्य के प्रशासन के लिए केंद्रीय स्तर पर ‘अष्ट प्रधान’ की व्यवस्था की थी, जिसके अंतर्गत आठ मंत्रियों को नियुक्त किया गया था। *इसमें पेशवा, अमात्य, मंत्री, सचिव, सुमंत, सेनापति, पंडित राव एवं न्यायाधीश शामिल थे। *ये निम्न प्रकार थे(i) पेशवा-राजा का प्रधान मंत्री।

(ii) अमात्य अथवा मजमुआदार-वित्त एवं राजस्व मंत्री। (iii) वाकिया नवीस या मंत्री-राजा के दैनिक कार्यों तथा दरबार की प्रतिदिन की कार्यवाहियों का विवरण रखता था। (iv) सचिव अथवा शुरुनवीस-राजकीय पत्र-व्यवहार का कार्य देखना। (v) सुमंत या दबीर-विदेश मंत्री। (vi) सेनापति या सर-ए-नौबत-सेना की भर्ती, संगठन, रसद आदि का प्रबंध करना। (vii) पंडित राव-विद्वानों और धार्मिक कार्यों के लिए अनुदानों का दायित्व निभाना। (viii) न्यायाधीश-मुख्य न्यायाधीश।

___ *राजाराम 1689-1700 ई. तक शाहू के प्रतिनिधि के रूप में मराठों का नेतृत्व करता रहा। *राजाराम की मृत्यु के बाद उसकी विधवा पत्नी ताराबाई ने अपने चार वर्षीय पुत्र को शिवाजी द्वितीय के नाम से गद्दी पर बैठाया और मुगलों से स्वतंत्रता संघर्ष जारी रखा। *औरंगजेब की मृत्यु के समय मराठा नेतृत्व ताराबाई के ही हाथों में था।

*शंभाजी के बाद मराठा शासन को पेशवा बालाजी विश्वनाथ ने सरल एवं कारगर बनाया। *मराठा छत्रपति शाह ने बालाजी को पेशवा के पद पर नियुक्त किया। *नवंबर, 1713 केवल बालाजी तथा उसके परिवार के लिए ही नहीं अपितु संपूर्ण मराठा जाति के लिए भी महत्वपूर्ण था, क्योंकि इस समय से सत्ता छत्रपति के हाथों से निकलकर पेशवा के हाथों में स्थानांतरित हो गई।

*बालाजी विश्वनाथ का शासनकाल 1713 से 1720 ई. के बीच है। *1720 ई. में शाहू ने बालाजी विश्वनाथ के बड़े पुत्र बाजीराव प्रथम को पेशवा नियुक्त किया। *बाजीराव प्रथम का कार्यकाल 1720 से 1740 ई. तक था। *बालाजी बाजीराव 1740 ई. में बाजीराव के मृत्यु के पश्चात पेशवा बने तथा 1761 ई. तक पेशवा रहे। *माधवराव का शासनकाल 1761 से 1772 ई. है।

___ *बालाजी बाजीराव के समय तक पेशवा पद पैतृक बन गया था। *इससे पूर्व ही शक्ति छत्रपति के हाथों में केंद्रित न रहकर पेशवा के हाथों में आ चुकी थी। *1750 ई. में हुई संगोला की संधि के तहत सवैधानिक क्रांति द्वारा यह प्रक्रिया पूरी हो गई। *इसके पश्चात मराठा छत्रपति केवल नाममात्र के राजा रह गए और ‘महलों के महापौर’ बन गए। *मराठा संगठन का वास्तविक नेता पेशवा बन गया।

_*मराठा काल में सरंजामी प्रथा’ भू-राजस्व प्रशासन से संबंधित थी। इस काल में मराठा जागीरदारों को सरंजामी भूमि उनके निर्वहन के लिए प्रदान की जाती थी।

*जनवरी, 1757 में अहमदशाह अब्दाली दिल्ली में प्रवेश कर गया और उसने मथुरा तथा आगरा तक लूटमार की। *अपनी वापसी से पहले अब्दाली भारत में आलमगीर द्वितीय को सम्राट, इमादुलमुल्क को वजीर और रूहेला सरदार नजीवुद्दौला (नजीब खान) को साम्राज्य का मीर बख्शी और अपना मुख्य एजेंट बना कर वापस चला गया। ___*पानीपत की तीसरी लड़ाई 14 जनवरी, 1761 को सदाशिव भाऊ के नेतृत्व में मराठा सेना और अहमदशाह अब्दाली के नेतृत्व में अफगान सेना के बीच हुई, जिसमें मराठे बुरी तरह पराजित हुए। *काशीराज पंडित इस युद्ध के प्रत्यक्षदर्शी थे, उनके अनुसार “पानीपत का तीसरा युद्ध मराठों के लिए प्रलयकारी सिद्ध हुआ।” *इसी युद्ध में मराठों की हार की सूचना

बालाजी बाजीराव को एक व्यापारी द्वारा कूट संदेश के रूप में पहुंचाई गई, जिसमें कहा गया कि “दो मोती विलीन हो गए बाईस सोने की मुहरें लुप्त हो गई और चांदी तथा तांबे के सिक्कों की तो पूरी गणना ही नहीं की जा सकती।” *पानीपत की लड़ाई का तात्कालिक कारण यह था कि अहमद शाह अब्दाली अपने वायसराय तैमूर शाह के मराठों द्वारा लाहौर से निष्कासन का बदला लेना था।

*अहिल्याबाई मराठों के होल्कर वंश की शासिका थीं। होल्कर वंश इंदौर पर काबिज था।

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Abhishek Dubey

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