मुगलकालीन साहित्य नोट्स
*गुलबदन बेगम बाबर की पुत्री थी। *उसका जन्म 1523 ई. में तथा मृत्यु 1603 ई. में हुई थी। *उसने अपनी प्रसिद्ध रचना ‘हुमायूंनामा’ में ऐतिहासिक विवरण लिखे। *अकबर उसका बहुत सम्मान करता था। *गुलबदन बेगम ने
स्वयं लिखा है कि उसने अकबर के आदेश पर बाबर और हुमायूं का इतिहास अपनी स्मृति से लिखा था। *गुलबदन बेगम ने अपनी इस रचना में हुमायूं और कामरान के मध्य युद्ध का भी वर्णन किया है।
*माहम अनगा ने दिल्ली के पुराने किले में ‘खैरुल मनजिल अथवा ‘खैर-उल मनजिल’ नामक मदरसे की स्थापना कराई थी, जिसे ‘मदरसा-ए-बेगम’ भी कहा जाता था। *संस्कृत ग्रंथ हितोपदेश का फारसी भाषा में अनुवाद 1450 ई. के आस-पास ‘ताज-अल-दिन मुफ्ती अल मलीकी’ द्वारा ‘मुफरिह-अल-कुबाल’ नाम से किया गया था। ताज-अल-दिन मुफ्ती अल-मलीकी को ही त्रुटि वश कुछ पुस्तकों में ताजुल माली लिखा गया है।
*मुगल कालीन लेखक एवं उनकी पुस्तके हैंलेखक
पुस्तक निजामुद्दीन अहमद – तबकाते अकबरी अब्बास खां शरवानी – तारीखे शेरशाही/तोहफा-ए-अकबरशाही हसन निज़ामी – ताजुल मासिर ख्खांदमीर
कानून-ए-हुमायूंनी भीम सेन
– नुश्खा-ए-दिलकुशा मिर्जा मोहम्मद काज़िम – आलमगीर नामा गुलाम हुसैन
सियार-उल-मुतखरीन मुहम्मद सालेह
आलमे सालेह इनायत खां
शाहजहांनामा चंद्रभान ब्रह्मन
चहार चमन मोतमिद खां
– इकबालनामा-ए-जहांगीरी
*अब्दल हमीद लाहौरी शाहजहां के शासनकाल का एक राजकीय इतिहासकार था। *उसने अपनी पुस्तक ‘पादशाहनामा’ (Padshahnama) में शाहजहां कालीन इतिहास का वर्णन किया है।
___ *अकबर द्वारा स्थापित अनुवाद विभाग में संस्कृत, अरबी, तुर्की एवं ग्रीक भाषाओं की अनेक कृतियों का अनुवाद फारसी भाषा में किया गया। ___*पंचतंत्र का अनुवाद विभिन्न शासकों के काल में अलग-अलग नामों से किया गया है। गजनवी काल में नसुरूल्लाह मुंशी शीराजी ने कलीलावा-दिमनाह बेहरामशाही के नाम से, सुल्तान हुसैन मिर्जा के काल में मुल्ला वाइज हुसैन काशफीह ने ‘अनवर-ए सुहेली’ के नाम से एवं अकबर के काल में अबुल फजल ने ‘आयर-ए-दानिश’ के नाम से किया था।
* अकबरनामा’, अकबर के नवरत्नों में से एक अबुल फजल द्वारा अकबर शासनकाल के आधिकारिक वृत्तांत के रूप में लिखा गया था। यह तीन भागों में है, इसका तीसरा भाग ‘आइन-ए-अकबरी’ है।
*फारसी मुगलों की राजभाषा थी। *राजकाज से संबंधित सभी कार्य फारसी में ही संपन्न होते थे। *सर्वप्रथम भारत में लाहौर फारसी साहित्य के विकास का केंद्र रहा।
*’नस्तालीक’ एक फारसी लिपि है, जो मध्यकालीन भारत में प्रयुक्त होती थी। *मुगल बादशाह औरंगजेब नस्तालीक तथा शिकस्त लिखने में निपुण था।
*अजमेर की किशनगढ़ रियासत के राजा सावंत सिंह (17वीं-18वीं शती) का वैष्णव उपनाम नागरीदास (राधा का सेवक) था। *इन्होंने ही कृष्ण की प्रशंसा में अनेक छंद लिखे। *किशनगढ़ के शासकों ने निम्बार्क संप्रदाय को संरक्षण प्रदान किया था।
*”रामचंद्रिका’ एवं ‘रसिकप्रिया’ हिंदी कविता के रीतिकालीन कवि केशवदास (1555-1617 ई.) की रचनाएं हैं।