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राजस्थान के लोक-नाट्य | Rajasthan Ke Lok Natya

Written by Abhishek Dubey

नमस्कार दोस्तो , मैं अभिषेक दुबे ( ABHISHEK DUBEY ) एक बार फिर से OnlineGkTrick.com  पर आपका स्वागत करता हूँ , दोस्तों इस पोस्ट मे  हम आपको की जानकारी उपलब्ध करा रहे है ! जो आपके आगामी प्रतियोगी परीक्षाओ के लिए बहुत Important है , तो दोस्तों उम्मीद है यह जानकारी आपके लिए काफी महत्वपूर्ण साबित होगी !

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गवरी नाट्य

इसे मेरू लोकनाट्य भी कहते हैं। मेवाड़ क्षैत्र के भील पुरूषों द्वारा किया जाने वाला एक लोक-नाट्य जो रक्षाबन्धन के अगले दिन से शुरू होता है जो अगले 40 दिन तक चलता हैं। यह नाट्य शिव-भस्मासुर की कहानी पर आधारित हैं। इसमें शिव को राई बुढ़िया तथा पार्वती को गवरी कहते हैं। हास्य कलाकारों को झटपटिया कहा जाता हैं।  इसमें मांदल वाद्ययंत्र का प्रयोग किया जाता हैं। यह राजस्थान का सबसे प्राचीन लोक-नाट्य हैं। इस लोक-नाट्य की प्रमुख कहानियाँ कानगूजरी, जोगी-जोगणा, बणजारा -बणजारी, अकबरं-बीरबल आदी। सम्प्ूार्ण भारत का दिन में होने वाला लोकनाट्य हैं।

भवाई

उदयपुर सभांग में गुजरात के सीमावर्ती इलाकों में भवाई जाति द्वारा किया जाने वाला लोक नाट्य जो अब व्यावसायिक रूप धारण कर चुका हैं। इसमें  संगीत पर कम ध्यान दिया जाता हैं जबकि करतब अधिक दिखाए जाते हैं। इसमें कलाकार सिर पर कई मटके रखकर नृत्य करता हैं। इसमें मुख्य पात्र को सगाजी सगीजी कहा जाता हैं। इसमें पात्र मंच पर आकर परिचन नहीं देेते हैं। इसके जन्मजाता बाघाजी जाट केकड़ी-अजमेर वाले हैं। शांता गाँधी द्वारा लिखे गए नाटक ‘जसमल ओडण’ पर आधारित भवाई लोकनाट्य अंतराष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय हुआ। भवाई नाट्य की प्रसिद्व नृत्यांगना श्रेष्ठा सोनी को ‘लिटिल वंडर‘ की उपाधि प्राप्त हैं।

ख्याल

ऐतिहासिक व पौराणिक कहानियों को संगीतबद्व करके उन पर अभिनय करना ख्याल लोकनाट्य कहलाता हैं। भिन्न-भिन्न क्षैत्रों के ख्यालों का निचे विवरण दिया हुआ हैं।

कुचामनी ख्याल

यह ख्याल नागौर के कुचामन में होता हैं। इसके प्रवर्तक लच्छीरामजी थे। इसमें  महिला पात्रों की भूमिका भी पुरूष ही निभाते हैं। इस ख्याल का स्वरूप ओपेरा जैसा हैं। इसमें लोकगीतों की प्रधानता हैं।  उगमराज इसके प्रमुख कलाकर हैं।

जयपुरी ख्याल

यह ख्याल जयपुर में होता हैं। इस ख्याल में भी महिला पात्रों की भूमिका पुरूष ही निभाते हैं। इस ख्याल में नए प्रयोग की सभांवना बनी रहती हैं।

तुर्रा-कंलगी ख्याल

तुकनगीर व शाह अली ने इसे प्रांरभ किया था। चंदेरी-मध्यप्रदेश के राना ने इसके अभिनय से प्रभावित होकर इनको तुर्रा व कलंगी भेंट की थी। यह शिव-पार्वती की कहानी से संबधित हैं। इसमें तुर्रा पक्ष के झंडे का रंग भगवा होता है। तथा कलंगी पक्ष के झंडे का रंग हरा होता हैं। दोनों पक्ष आपस में जो सवांद करते हैं। उसे ’गम्मत’ कहते हैं। एकमात्र लोकनाट्य जिसमें मंच की सजावट की जाती हैं। एकमात्र लोकनाट्य जिसमें दर्शकों के भाग लेने  की सभांवना होती हैं। सहेड़ सिंह व हम्मीद बेग ने इसे चितौड़ क्षैत्र में प्रवेश किया। गोसुण्डा व निम्बाहेड़ा इसके दो प्रमुख केन्द्र हैं। चेतराम, ओंकार सिंह, जयदयाल सोनी इसके प्रमुख कलाकार हैं। यह सर्वाधिक चितौड़गढ में प्रचलित हैं।

शेखावाटी ख्याल

इसके प्रवर्तक नानूराम जी चिड़ावा थे। दुलिया राणा जी ने इसको लोकप्रिय किया हैं। इसका प्रमुख केन्द्र झुन्झुनू के चिड़ावा में हैं। यह राजस्थान की सबसे लोकप्रिय विधा हैं।

हेला ख्याल

इसके प्रवर्तक हेला शायर थे। यह दौसा, सवाईमाधोपुर, लालसोट आदी में लोकप्रिय हैं। इसमें नौबत वाद्ययंत्र का प्रयोग किया जाता हैं।

अली बख्शी ख्याल

मुण्डावर(अलवर) के नवाब अली बख्श के समय यह ख्याल लोकप्रिय हुआ था। अली बख्श को अलवर का रसखान कहा जाता हैं।

ढप्पाली ख्याल

भरतपुर व अलवर के लक्ष्मणगढ़ क्षैत्र में लोकप्रिय हैं। इसका मुख्य वाद्ययंत्र डफ हैं।

कन्हैया ख्याल

करौली क्षैत्र में लोकप्रिय है। इसमें सुत्रधार को मेड़िया कहते हैं।  इसमें रामायण व महाभारत पर चरितार्थ होता हैं।

नौटंकी

भरतपुर क्षैत्र में लोकप्रिय हैं। इसके प्रवर्तक भूरीलाल जी हैं। प्रमुख कलाकार गिरिराज प्रसाद हैं। इसमें 9 प्रकार के वाद्ययंत्रो का प्रयोग किया जाता हैं। यह हाथरस शैली से प्रभावित हैं। इसमें महिला व पुरूष दोनों भाग लेते हैं।

रम्मत

जैलसमेर व बीकानेर क्षैत्रों मे लोकप्रिय हैं श्रावण के महिनें में तथा होली के अवसर पर रम्मत का आयोजन किया जाता हैं।  रम्मत शुरू करने से पहले रामदेव जी का भजन गाया जाता हैं। जैसलमेर में इसे तेजकवी ने लोकप्रिय किया। तेजकवी की प्रसिद्व रम्मत ‘स्वत़त्र-बावनी’ थी। जो उन्होंने 1943 में महात्मा गाँधी को भेंट की थी। तेजकवी ने अपनी रम्मत के माध्यम से अंगेजी सरकार  की नितियों का विरोध किया था। पाटा संस्कृति किससे सम्बधित हैं। बीकानेर के आचारियों के चैक की अमरसिंह राठौड़ की रम्मत प्रसिद्व हैं।

तमाशा

तमाशा मुल रूप से महाराष्ट्र का लोकनाट्य हैं। सवाई प्रतापसिंह के समय जयपुर में लोकप्रिय हुआ था। बन्शीधर भट्ट को महाराष्ट्र से लाए थे। उस समय जयपुर की प्रसिद्व नृत्यांगना गौहर जान थी। तमाशों का मुख्य आयोजन खुले मंच में किया जाता हैं। जिसे अखाड़ा कहा जाता हैं। प्रमुख कलाकार गोपी जी भट्ट थें। मुख्य कहानियाँ गोपीचंद-भर्तृहरी, जोगी-जोगणा, जुठुन मिंया का तमाशा आदि हैं।

चार बैंत

यह मूल रूप से अफगानिस्तान का लोकनाट्य हैं। इसे पश्तों भाषा में प्रस्तुत किया जाता हैं। राजस्थान में यह टोंक में लोकप्रिय हुआ। नवाब फैजल्ला के समय करीम खान ने इसे स्थानीय भाषा में प्रस्तुत किया गया था। इसमें मुख्य वाद्ययंत्र डफ होता हैं।

स्वांग

ऐतिहासिक व पौराणिक पात्रों की वेशभूषा पहनकर उन पर अभिनय करना ही स्वांग कहलाता हैं। इसके कलाकार को बहुरूपिया कहा जाता हैं। परशुराम व जानकीलाल भांड इसके प्रमुख कलाकर हैं। जानकीलाल भांड को ‘मंकी मैन’ कहा जाता हैं। चैत्र कृष्ण त्रयोदशी को भीलवाड़ा के मांडल में नाहरों का स्वांग किया जाता हैं। सर्वाधिक स्वांग भीलवाड़ा में किये जाते हैं।

फड़

कपडे़ के पर्दे पर देवी-देवताओं से सम्बनिधत घटनाओं से  चित्र बनाये जाते हैं। तथा उन पर अभिनय किया जाता हैं। इनके पात्र को भोपा-भोपी को कहा जाता हैं। शाहपुरा-भिलवाड़ा का जोशी परिवार फड़ चित्रण में माहिर हैं। पार्वती जोशी पहली महिला जो फड़ बनाना जानती हैं।

रामलीला

इसके प्रवर्तक तुलसी दास जी थें। बिसाऊ (झुन्झुनू) में मूक रामलीला का प्रदर्शन किया जाता हैं। अटरू-बांरा में धनुष राम द्वारा ना तोड़कर जनता द्वारा तोड़ा जाता हैं। भरतपुर में वेकंटेश रामलीला का आयोजन किया जाता हैं।

रासलीला

इसकी शुरूआत वल्लाभाचार्य द्वारा की गयी थी। काँमा-भरतपुर तथा फुलेरा-जयपुर की रासलीला प्रसिद्व हैं। मुख्य कलाकार शिवलाल कुमावत हैं।

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About the author

Abhishek Dubey

नमस्कार दोस्तों , मैं अभिषेक दुबे, Onlinegktrick.com पर आप सभी का स्वागत करता हूँ । मै उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले का रहने वाला हूँ ,मैं एक upsc Aspirant हूँ और मै पिछले दो साल से upsc की तैयारी कर रहा हूँ ।

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