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सभाष चंद्र बोस और आजाद हिंद फौज नोट्स ( sabhash chandra bose and azad hind fauj notes)

सभाष चंद्र बोस और आजाद हिंद फौज नोट्स

*नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 को उड़ीसा के कटक में हआ था। * उन्होंने वर्ष 1919 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से ‘स्नातक’ की उपाधि प्राप्त की और वर्ष 1920 में वह भारतीय नागरिक सेवा (I.C.S.) में उत्तीर्ण हुए। *वाद में उन्होंने इस पद से त्यागपत्र दे दिया। वर्ष 1938 एवं 1939 में कांग्रेस के अध्यक्ष बने। वर्ष 1939 में कांग्रेस की अध्यक्षता से त्यागपत्र देकर फॉरवर्ड ब्लॉक की स्थापना की तथा वर्ष 1941 में जर्मनी चले गए। * उन्होंने वर्ष 1943 में आजाद हिंद फौज की कमान संभाली। * प्रायः उन्हें ‘नेताजी’ के नाम से स्मरण किया जाता है। *सुभाष चंद्र बोस को वर्ष 1938 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष बनने के बाद गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा शांतिनिकेतन में ‘देश नायक’ की उपाधि से सम्मानित किया गया था। * महात्मा गांधी ने उन्हें ‘देशभक्तों का देशभक्त’ कहा था। *सुभाष चंद्र बोस 3 अप्रैल, 1941 को जर्मनी पहुंचे। * 6 माह बाद जर्मन विदेश मंत्रालय की सहायता से उन्होंने ‘द फ्री इंडिया सेंटर’ का गठन किया जहां से वे आजादी के पक्ष में पर्चे छपवाते थे तथा भाषण देते थे। *वर्ष 1941 के अंत तक जर्मन तानाशाह एडोल्फ हिटलर ने निर्वासित आजाद हिंद सरकार को मान्यता दे दी और सुभाष चंद्र बोस को आजादी की लड़ाई हेतु सेना गठित करने की सहमति प्रदान कर दी। *वर्ष 1942 में सुभाष चंद्र बोस ने, जर्मनी के जनरल इर्विन रोमेल के उत्तरी अफ्रीका अभियान के दौरान पकड़े गए भारतीय युद्धबंदियों को भर्ती कर 10 हजार सैनिकों का दल गठित किया। * इसे ही ‘द फ्री इंडियन लीज़न’ कहा गया। *आजाद हिंद फौज की स्थापना मूलतः कैप्टन मोहन सिंह ने की थी। * वे ब्रिटेन की भारतीय सेना में अफसर थे। * जब ब्रिटिश सेना पीछे हट रही थी, तो मोहन सिंह जापानियों के साथ हो गए थे। * जापानियों ने जब भारतीय सैनिकों को मोहन सिंह के सुपुर्द कर दिया, तो वे उन लोगों को आजाद हिंद फौज में भर्ती करने लगे। * दिसंबर, 1941 में उत्तरी मलय के जंगलों में कैप्टन मोहन सिंह के नेतृत्व वाली पंजाब रेजीमेंट की टुकड़ी जापानी सेना से पराजित हुई। * इस टुकड़ी के अंग्रेज लेफ्टिनेंट कर्नल एल.वी. फिट्जपैट्रिक जापान के युद्धबंदी हुए, किंतु बैंकॉक निवासी भारतीय सिख ज्ञानी प्रीतम सिंह के जिम्मेदारी लेने पर कैप्टन मोहन सिंह एवं अन्य भारतीय सैनिकों को यद्धबंदी के बजाए ‘जापान के मित्र’ का दर्जा दिया गया। * जापान के मेजर आईवाची फूजीवारा एवं ज्ञानी प्रीतम सिंह ने ही कैप्टन मोहन सिंह को ‘इंडियन नेशनल आर्मी‘ का नेतृत्व करने के लिए उत्साहित किया। * दिसंबर, 1941 के अंत में कैप्टन मोहन सिंह इसके लिए सहमत हो गए। * फरवरी/मार्च, 1942 में मोहन सिंह के नेतृत्व में ‘इंडियन नेशनल आर्मी’ का गठन किया गया, जिसमें जापान के ‘मलय अभियान’ के तहत पराजित ब्रिटिश सेना के भारतीय सैनिकों को शामिल किया गया था। * स्पष्ट है कि आई.एन.ए. का विचार सूत्र ज्ञानी प्रीतम सिंह एवं फूजीवारा ने दिया, जबकि कैप्टन मोहन सिंह ने उसे प्रथम

नेतृत्व प्रदान करने का साहसिक कार्य किया। *आजाद हिंद फौज की पहली डिवीजन का औपचारिक गठन सितंबर, 1942 को हुआ और कैप्टन मोहन सिंह इसके प्रथम सेनापति बने। *4 जुलाई, 1943 को रास बिहारी बोस ने आजाद हिंद फौज की कमान सुभाष चंद्र बोस को सौंप दी। *21 अक्टूबर, 1943 को सुभाष चंद्र बोस ने सिंगापुर में स्वतंत्र भारत की अस्थायी सरकार (आजाद हिंद सरकार) का गठन किया। *आजाद हिंद फौज का गठन 4 जुलाई, 1943 को सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में किया गया था। फौज का गठन सिंगापुर द्वीप पर किया गया था, किंतु तब सिंगापुर द्वीप ‘ब्रिटिश मलय’ का अंग था। ब्रिटिश मलय में शामिल 3 भाग थे-(1) फेडरेटेड मलय, (2) अनफेडरेटेड मलय तथा (3) स्ट्रेट्स सेटलमेंट। तृतीय यानी स्ट्रेट्स सेटलमेंट के अंतर्गत 4 अलग-अलग क्षेत्रों को जोड़ा गया था। जो इस प्रकार हैं

(1) मलक्का-वर्तमान में मलेशिया का एक राज्य है। (2) डिंडिंग-वर्तमान में मलेशिया के पेराक राज्य का एक जिला है। (3) पेनांग-वर्तमान में मलेशिया का एक राज्य है। (4) सिंगापुर-अगस्त, 1963 में स्वतंत्रता की घोषणा की: 16 सितंबर, 1963 को मलेशिया का अंग बना: 9 अगस्त, 1965 को मलेशिया की संसद के एक प्रस्ताव द्वारा मलेशिया संघ से अलग कर दिया गया तथा इसी दिन से स्वतंत्र देश बना। स्पष्ट है कि जब सिंगापुर में आजाद हिंद फौज का गठन हुआ तब वह मलय का हिस्सा था।

*सिंगापुर (तत्कालीन मलय) में अपने सैनिकों का आह्वान करते हुए सुभाष चंद्र बोस ने कहा था-बहुत त्याग किया है, किंतु अभी प्राणों की आहुति देना शेष है, आजादी को आज हमें अपने शीश फल चढ़ा देने वाले पागल पुजारी की आवश्यकता है, जो अपना सिर काटकर स्वाधीनता की देवी को भेंट चढ़ा सके, “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा।”। *”जय हिंद’ का नारा सुभाष चंद्र बोस ने दिया था, यह आजाद हिंद फौज में नमस्कार का ढंग था तथा आज यह सारे देश का नारा हो गया है। * आजाद हिंद फौज दिवस’ 12 नवंबर, 1945 को मनाया गया था, जबकि 5 नवंबर से 11 नवंबर, 1945 के मध्य आजाद हिंद फौज सप्ताह मनाया गया था। *आजाद हिंद फौज के सैनिकों एवं अधिकारियों को गिरफ्तार कर ब्रिटिश सरकार ने नवंबर, 1945 में दिल्ली के लाल किले में उन पर मुकदमा चलाया। * इसमें तीन अभियुक्तों प्रेम सहगल, गुरुबख्श सिंह एवं शाहनवाज को फांसी की सजा तथा राशिद अली को 7 वर्ष के कारावास का दंड दिया गया। * इनके बचाव के लिए कांग्रेस ने आजाद हिंद फौज बचाव समिति का गठन किया जिसमें भूलाभाई देसाई के नेतृत्व में तेज बहादुर सपू. कैलाश नाथ काटजू, आसफ अली और जवाहरलाल नेहरू प्रमुख वकील थे। * सरकार के निर्णय के विरुद्ध पूरे देश में तेज प्रतिक्रिया हुई। अंत में विवश होकर वायसराय लॉर्ड वेवेल ने अपने विशेषाधिकार का प्रयोग करते हए मृत्युदंड की सजा को माफ कर दिया। *पं. जवाहरलाल नेहरू ने भारत के नाजीवाद, फासीवाद तथा साम्राज्यवाद विरोधी निश्चित रुख के कारण जापान के विरुद्ध गरिल्ला युद्ध की अपनी योजना के पक्ष में इलाहाबाद में हुई कांग्रेस कार्यकारिणी समिति की बैठक में बहुमत प्राप्त किया।

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Abhishek Dubey

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