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प्रकृति में कार्बन चक्र व जल चक्र नोट्स (Carbon Cycle & Water Cycle in Nature in Hindi)

पर्यावरण विभिन्न अजैविक व जैविक घटकों से मिलकर बना है । ये घटक आपस में अंतःक्रिया करते हैं । सामान्यतया यह अंतःक्रिया एक चक्रीय स्वरूप में होती है । अर्थात तत्वों का चक्रण एक रूप से दूसरे रूप में होता रहता है । यह चक्रण प्रकृति में कार्बन चक्र , जल चक्र इत्यादि के रूप में दिखाई देता है।

पृथ्वी के कार्बन चक्र में कार्बनिक पदार्थों के अपघटन से , जीवधारियों द्वारा श्वसन प्रक्रिया से , ज्वालामुखी प्रक्रियाओं से , जीवाश्म ईंधनों के दहन इत्यादि से कार्बन डाइऑक्साइड पहुंचती है । स्वपोषित पौधे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा कार्बोहाइड्रेट्स के निर्माण में वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड ग्रहण करते हैं । कार्बन चक्र वायुमंडल में कार्बन तत्व का संतुलन बनाए रखता है ।

ध्यातव्य है कि कार्बन पृथ्वी पर बहुत सारी अवस्थाओं में पाया जाता है । यह अपने मूल रूप में ग्रेफाइट एवं हीरा में पाया जाता है । यौगिक के रूप में यह वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड के रूप में , कार्बोनेट और हाइड्रोजन कार्बोनेट के रूप में पाया जाता है । विभिन्न प्रकार के खनिजों में भी कार्बन पाया जाता है । जल की तरह कार्बन का भी विभिन्न भौतिक एवं जैविक क्रियाओं के द्वारा पुनर्चक्रण होता रहता है ।

वहीं दूसरी ओर जल चक्र में सौर विकिरण की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका है । सौर विकिरण जल चक्र को चालित करता है और जल का वाष्पीकरण करता है । वायुमंडल में नमी वर्षा की मात्रा का निर्धारण करती है । सभी प्रकार की वर्षा की मात्रा यथा बूंदा – बांदी , वर्षा , बर्फबारी इत्यादि वायुमंडल में नमी की मात्रा में बढ़ोत्तरी से बढ़ जाती है

सौर विकिरण द्वारा बर्फ का जल में द्रवीकरण होता है । जल चक्र हाइड्रोस्फीयर में जल की विभिन्न गतिविधियों को दर्शाता है । प्रकृति में जल चक्र को निम्न प्रकार से प्रदर्शित किया जा सकता है । जल चक्र पौधों की वृद्धि में सहायक होता है । पौधे भूमि में प्रतिरोपित किए जाते हैं तथा भूमि में उपस्थित उनके मूलरोमों द्वारा वे जल का अवशोषण करते हैं । सामान्यतया पौधों के अधिकांश मूलरोम प्रतिरोपण के कारण नष्ट हो जाते हैं । इसलिए कई प्रतिरोपित पौधों में वृद्धि नहीं होती ।

ध्यातव्य है कि मूलरोम मृदा में उपस्थित मृदा विलयन ( Soil Solution ) के संपर्क में रहते हैं । इन मूलरोमों के द्वारा ही पौधे भूमि से जल का अवशोषण करते हैं । मूलरोम की कोशा – भित्ति मुख्यतया सेलुलोज से बनी होती है । इसके साथ इनमें कुछ पेक्टिन भी पाया जाता है । पेक्टिन के कारण ही मूलरोम मृदा से चिपके रहते हैं । मूलरोमों की कोशिका भित्ति पारगम्य कला ( Permeable Membrane ) की तरह कार्य करती है ।

इसके अलावा एक कारण यह भी है कि खेतों में उर्वरकों ( Fertilizers ) का प्रयोग करने पर यदि शीघ्र ही अधिक जल से खेतों की सिंचाई नहीं होती , तो मृदा विलयन की सांद्रता अधिक हो जाती है । इससे जड़ के मूलरोमों द्वारा जल अवशोषण कठिन हो जाता है । इससे पौधे मुरझा जाते हैं ।

उल्लेखनीय है कि जल अवशोषण प्राप्य भूमि जल ( Available Soilwater ) , मृदा के तापमान , मृदा विलयन की सांद्रता व मृदा की वायु ( Soil Air ) जैसे कारकों पर निर्भर करता है । इस प्रकार जलमंडल में स्थित जल , जल चक्र द्वारा पर्यावरण में अपनी भूमिका विभिन्न प्रकार से निभाता रहता है । जल चक्र के साथ – साथ वायुमंडल में होने वाली गतिविधियां भी पर्यावरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं ।

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Abhishek Dubey

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