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आधुनिक भारत में शिक्षा का विकास (Development of Education in Modern India in Hindi)

आधुनिक भारत में शिक्षा का विकास (Development of Education in Modern India in Hindi)

1780 ई. में वॉरेन हेस्टिंग्स (Warren Hastings) ने कलकत्ता में मदरसा की स्थापना की थी। इसके प्रथम प्रमुख (नाजिन) मौलवी मुइज़-उद-दीन थे। इस मदरसे में फारसी, अरबी और मुस्लिम कानून पढ़ाया जाता था और इसके स्नातक ब्रिटिशराज में दुभाषिए (Interpreter) के रूप में सहायता करते थे।

1791 ई. में बनारस के ब्रिटिश रेजिडेंट जोनाथन डंकन के प्रयत्नों के फलस्वरूप बनारस में एक (प्रथम) संस्कृत कॉलेज खोला गया, जिसका उद्देश्य “हिंदुओं के धर्म, साहित्य और कानून का अध्ययन करना था’| पेरिस की रॉयल एशियाटिक सोसाइटी की सदस्यता माइकल मधुसूदन दत्त को प्रदान की गई थी।

वॉरेन हेस्टिंग्स के काल में चार्ल्स विल्किंस ने ‘भगवद्गीता’ का प्रथम आंग्ल अनुवाद किया, जिसकी प्रस्तावना स्वयं वॉरेन हेस्टिंग्स ने लिखी। * विल्किंस ने फारसी तथा बांग्ला मुद्रण के लिए ढलाई के अक्षरों का आविष्कार किया। हॉलहेड ने 1778 ई. में संस्कृत व्याकरण प्रकाशित किया। सर विलियम जोस वॉरेन हेस्टिंग्स के समय कलकत्ता उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश नियुक्त हुए। इनकी प्रेरणा पर 1784 ई. में एशियाटिक सोसाइटी की स्थापना हुई एवं ये स्वयं इसके सभापति नियुक्त हुए।

इस संस्था ने ‘एशियाटिक रिसर्चेज’ (Asiatic Researches) नामक पत्रिका के माध्यम से भारत के अतीत को प्रकाश में लाने का कार्य किया। इसी क्रम में इन्होंने 1789 ई. में कालिदास रचित ‘अभिज्ञानशाकुंतलम’ का अंग्रेजी में अनुवाद किया एवं इसके पांच संस्करण प्रकाशित किए। 1854 ई. के पश्चात शिक्षा के क्षेत्र में हुई प्रगति की समीक्षा करने के लिए 1882 ई. में डब्ल्यू.डब्ल्यू. हंटर की अध्यक्षता में एक आयोग नियुक्त किया गया।

इस आयोग की रिपोर्ट में प्राथमिक शिक्षा के सुधार एवं विकास पर विशेष जोर दिया गया था। राष्ट्रीय शिक्षा के क्षेत्र में सर्वप्रथम 8 नवंबर, 1905 को ‘रंगपुर नेशनल स्कूल’ की स्थापना हुई। 16 नवंबर, 1905 में कलकत्ता में एक सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस सम्मेलन में राष्ट्रीय साहित्यिक, वैज्ञानिक और तकनीकी शिक्षा देने के लिए “राष्ट्रीय शिक्षा परिषद” (National Council of Education) स्थापित करने का फैसला हुआ।

15 अगस्त, 1906 को राष्ट्रीय शिक्षा परिषद’ की स्थापना की गई। 1813 ई.के चार्टर अधिनियम के तहत प्रति वर्ष शिक्षा के लिए एक लाख रुपये खर्च करने की व्यवस्था की गई थी। सैडलर आयोग शिक्षा से संबंधित था। वर्ष 1917 में सरकार ने कलकत्ता विश्वविद्यालय की संभावनाओं के अध्ययन तथा रिपोर्ट के लिए एक आयोग नियुक्त किया।

डॉ. एम.ई. सैडलर, जो लीडस विश्वविद्यालय के उपकलपतिथे इसके अध्यक्ष नियुक्त किए गए। इस आयोग के सदस्य दो भारतीय, डॉ. आशुतोष मुखर्जी और डॉ. ज़ियाउद्दीन अहमद भी थे। इस आयोग को कलकत्ता विश्वविद्यालय की शिक्षा पर अपनी रिपोर्ट देने को कहा गया था।इस आयोग का यह विचार था कि यदि विश्वविद्यालय शिक्षा का सुधार करना है, तो माध्यमिक शिक्षा का सुधार आवश्यक है।

भारतीय शिक्षा पद्धति में भाषा संबंधी विवाद पर अपना विवरण देने के लिए विलियम बेंटिक ने अपनी कौंसिल के विधि-सदस्य लॉर्ड मैकाले को लोक शिक्षा समिति का प्रमुख नियुक्त किया। मैकाले ने भारत में शिक्षा हेतु अंग्रेजी भाषा का समर्थन किया था। भारत के औपनिवेशिक काल में ‘अधोमखी निस्यंदन सिद्धांत’ (The theory of downward filtration) शिक्षा के क्षेत्र से संबंधित था। इस सिद्धांत का अर्थ था कि, शिक्षा समाज के उच्च वर्ग को ही दी जाए, इस वर्ग से छन-छनकर ही शिक्षा का असर जन सामान्य तक पहुंचे।

भारत में आधुनिक शिक्षा प्रणाली की नींव 1835 ई. के मैकाले के स्मरण-पत्र (Minute) से पड़ी। मैकाले ने भारतीय रीति-रिवाजों के लिए अपना तिरस्कार इन शब्दों में व्यक्त किया “यूरोप के एक अच्छे पुस्तकालय की एक आलमारी का एक कक्ष, भारत और अरय के समस्त साहित्य से अधिक मूल्यवान है।’

लॉर्ड विलियम बैंटिक के काल में 7 मार्च, 1835 को प्रस्ताव द्वारा मैकाले का दृष्टिकोण अपना लिया गया। गवर्नर जनरल लॉर्ड विलियम केवेंडिश बेंटिक (1828-35 ई.) के शासनकाल में 7 मार्च, 1835 ई. को लॉर्ड मैकाले के प्रस्ताव को स्वीकृत कर भारत में अंग्रेजी को उच्च शिक्षा का माध्यम मान लिया गया। भारत में अंग्रेजी शिक्षा का मैग्नाकार्टा’ कहे जाने वाले 1854 के चार्ल्स वुड के डिस्पैच को आधार बनाकर लंदन विश्वविद्यालय की तर्ज पर ब्रिटिश भारत में तीन विश्वविद्यालय कलकत्ता, मद्रास एवं बंबई की स्थापना 1857 ई. में की गई थी।

डी.के. कर्वे के प्रयत्नों से बंबई में प्रथम महिला विश्वविद्यालय की स्थापना हुई। ये महाराष्ट्र के समाज सुधारक एवं सामाजिक कार्यकर्ता थे। इन्होंने विधवाओं के उत्थान के लिए ‘विधवा विवाह प्रतिबंध निवारक मंडली’ की भी स्थापना की थी। 1896 ई. में उन्होंने पूना में विधवा गृह की स्थापना की थी। उन्होंने स्वयं एक ब्राह्मणी विधवा से विवाह किया था। वर्ष 1958 में इन्हें ‘भारत रत्न’ प्रदान किया गया।

डेक्कन एजुकेशनल सोसाइटी की स्थापना मूलतः ‘न्यू इंग्लिश स्कूल’ के प्रारंभ (1880 ई.) के साथ पुणे में की गई थी तथा 1884 ई. में डेक्कन एजुकेशन सोसाइटी औपचारिक रूप से गठित की गई। *इस संस्था के संस्थापकों में वी.के. चिपलुंकर, बी.जी. तिलक, गोपाल गणेश आगरकर एवं एम.बी. नामजोशी प्रमुख थे।

राजा राममोहन राय आधुनिक शिक्षा के सबसे प्रारंभिक प्रचारकों में से एक थे। 1817 ई. में इन्होंने डेविड हेयर एवं एलेक्जेंडर डफ के साथ मिलकर कलकत्ता में प्रसिद्ध हिंदू कॉलेज की स्थापना की थी। *मेयो कॉलेज की स्थापना 1875 ई. में अजमेर में, मुस्लिम एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज की स्थापना 1875 ई. में अलीगढ़ में एवं दिल्ली कॉलेज की स्थापना 1824 ई. में हुई थी।

भारतीय विश्वविद्यालयों में धार्मिक शिक्षा के लिए मदन मोहन मालवीय ने प्रबल रूप से वकालत की थी। इन्होंने वर्ष 1916 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना की और वर्ष 1919 से 1939 तक इसके कुलपति बने रहे। इन्होंने हिंदुस्तान’, ‘दि इंडियन यूनियन’, ‘अभ्युदय’ तथा ‘मर्यादा’ नामक पत्र-पत्रिकाएं प्रकाशित कीं।

 

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Abhishek Dubey

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