नमस्कार दोस्तो , मैं अभिषेक दुबे ( ABHISHEK DUBEY ) एक बार फिर से OnlineGkTrick.com पर आपका स्वागत करता हूँ , दोस्तों इस पोस्ट मे हम आपको गांधी-इरविन समझौता (5 मार्च, 1931) क्या था ? ( Gandhi Irwin Pact 5 March 1931 ) की जानकारी उपलब्ध करा रहे है ! जो आपके आगामी प्रतियोगी परीक्षाओ के लिए बहुत Important है
Gandhi Irwin Pact 5 March 1931( Delhi Agreement – 5 March 1931 ) – Gandhi Irwin Agreement :-
5 मार्च 1931 को महात्मा गांधी और तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड इरविन के बीच जो समझौता हुआ उसे गांधी इरविन समझौता कहा जाता है
- समय- 5 मार्च 1931
- स्थान- दिल्ली
- समझौते का नाम- गांधी- इरविन समझौता(दिल्ली-पैक्ट)
- मध्य संधि- महात्मा गांधी और लार्ड इरविन
गांधी-इरविन समझौता ( Gandhi Irwin Pact 5 March 1931 ) को हुआ था। महात्मा गाँधी और लॉर्ड इरविन के मध्य हुए इस समझौते को ‘दिल्ली पैक्ट’ के नाम से भी जाना जाता है। गाँधी जी ने इस समझौते को बहुत महत्त्व दिया था, जबकि पंडित जवाहर लाल नेहरू और नेताजी सुभाषचन्द्र बोस ने इसकी कड़ी आलोचना की। कांग्रेसी भी इस समझौते से पूरी तरह असंतुष्ट थे, क्योंकि गाँधी जी भारत के युवा क्रांतिकारियों भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फाँसी के फंदे से बचा नहीं पाए थे। .
25 जनवरी 1931 को गांधीजी तथा कांग्रेस के अन्य सभी प्रमुख नेता बिना शर्त कारावास से रिहा कर दिये गये। कांग्रेस कार्यकारिणी समिति ने गांधीजी को वायसराय से चर्चा करने के लिये अधिकृत किया। तत्पश्चात 19 फरवरी 1931 को गांधीजी ने भारत के तत्कालीन वायसराय लार्ड इरविन से भेंट की और उनकी बातचीत पंद्रह दिनों तक चली। इसके परिणामस्वरूप 5 मार्च 1931 को एक समझौता हुआ, जिसे ‘गांधी-इरविन समझौता’ कहा जाता है।
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लंदन में आयोजित प्रथम गोलमेज सम्मेलन की असफलता और असहयोग आन्दोलन की व्यापकता ने सरकार के सामने यह स्पष्ट कर दिया कि कांग्रेस और गाँधी के बिना भारत की राजनीतिक समस्या का समाधान आसान नहीं है. इसलिए तत्कालीन वायसराय लॉर्ड इरविन (1926-1931) ने मध्यस्थता द्वारा गाँधीजी से समझौते की बातचीत प्रारम्भ कर दी. गाँधीजी 26 जनवरी, 1931 को जेल से रिहा हुए और 17 फ़रवरी से दिल्ली में वायसराय इरविन और गाँधी जी के बीच वार्ता चलने लगी | 5 मार्च, 1931 को गांधी-इरविन समझौता ( Gandhi Irwin Pact 5 March 1931 ) (दिल्ली पैक्ट)/ Gandhi-Irwin Pact के मसविदे पर हस्ताक्षर किये गये.
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गाँधी-इरविन समझौते में लार्ड इरविन इस बात पर सहमत हुए कि-
इस समझौते ने कांग्रेस की स्थिति को सरकार के बराबर कर दिया। इस समझौते में सरकार की ओर से लार्ड इरविन इस बात पर सहमत हुए कि
1.हिंसात्मक अपराधियों के अतिरिक्त सभी राजनैतिक कैदी छोड़ दिये जायेंगे।
2. अपहरण की सम्पत्ति वापस कर दी जायेगी।
3. विभिन्न प्रकार के जुर्मानों की वसूली को स्थगित कर दिया जायेगा।
4. सरकारी सेवाओं से त्यागपत्र दे चुके भारतीयों के मसले पर सहानुभूतिपूर्वक विचार-विमर्श किया जायेगा।
5. समुद्र तट की एक निश्चित सीमा के भीतर नमक तैयार करने की अनुमति दी जायेगी।
6. मदिरा, अफीम और विदेशी वस्तओं की दुकानों के सम्मुख शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन की आज्ञा दी जायेगी।
7. आपातकालीन अध्यादेशों को वापस ले लिया जायेगा। किन्तु वायसराय ने गांधीजी की निम्न दो मांगे अस्वीकार कर दीं
(i) पुलिस ज्यादतियों की जांच करायी जाये। तथा
(ii) भगत सिंह तथा उनके साथियों की फांसी की सजा माफ कर दी जाये।
कांग्रेस की ओर से गांधीजी ने आश्वासन दिया कि –
(i) सविनय अवज्ञा आंदोलन स्थापित कर दिया जायेगा। तथा
(ii) कांग्रेस द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में इस शर्त पर भाग लेगी कि सम्मेलन में संवैधानिक प्रश्नों के मुद्दे पर विचार करते समय परिसंघ, भारतीय उत्तरदायित्व तथा भारतीय हितों के संरक्षण एवं सुरक्षा के लिये अपरिहार्य मुद्दों पर विचार किया जायेगा। (इसके अंतर्गत रक्षा, विदेशी मामले, अल्पसंख्यकों की स्थिति तथा भारत की वित्तीय साख जैसे मुद्दे शामिल होंगे)।
मार्च 1931, लंदन में महात्मा गांधी और लार्ड इरविन के मध्य एक राजनीतिक समझौता हुए, जिसमें गांधीजी की निम्न मांगों को स्वीकार कर लिया गया-
गांधी-इरविन समझौता ( Gandhi Irwin Pact 5 March 1931 ) के अनुसार सरकार ने निम्नलिखित वायदे किये –
- हिंसा के आरोपियों को छोड़कर बाकी सभी राजनीतिक बंदियों को रिहा कर दिया जाएगा।
- भारतीयों को समुद्र के किनारे नमक बनाने का अधिकार दिया गया।
- भारतीय अब शराब तथा विदेशी कपड़ों की दुकानों के सामने धरना देने के लिये स्वतंत्र थे।
- आंदोलन के दौरान त्यागपत्र देने वालों को बहाल किया गया।
- कांग्रेस की ओर से गांधीजी ने सविनय अवज्ञा स्थगित कर द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लेना स्वीकार किया तथा गांधीजी ने पुलिस की ज्याददियों की जाँच की मांग भी छोड़ दी।
- उपर्युक्त समझौते में गांधीजी की पलायनवादी प्रवृत्ति के बिन्दु निम्न प्रकार से समझे जा सकते हैं-
- इस समझौते में आंदोलन के मूल मंत्र, पूर्ण स्वराज्य का कोई उल्लेख नहीं किया गया। इसका जवाहरलाल नेहरू तथा सुभाषचंद्र बोस ने विरोध किया।
- कुछ लोगों का मानना था कि गांधीजी के यह फैसले पूंजीवादी हित में किये गए थे।
- क्योंकि वह भगत सिह तथा उनके साथियों की सजा माफ करवाने में असफल रहे, कुछ लोगों ने इसे औपनिवेशिक शासन के खिलाफ समर्पण माना। गांधीजी सुलझे हुए राजनीतिज्ञ थे अतः उनके द्वारा लिये गए फैसलों को रणनीतिक संदर्भों में समझने की आवश्यकता है।
- गांधीजी संघर्ष विराम संघर्ष की रणनीति के अनुयायी थे उनके अनुसार जनांदोलनों को लम्बे समय तक चलाने से आंदोलन में नीरसता के साथ ढीलापन आ जाता है। अंतः जनता का ऊर्जा और उत्साह आंदोलन के प्रति बना रहना आवश्यक है।
- वे अहिसात्मक तथा नियंत्रित जनांदोलन में विश्वास करते थे और आंदोलन पर शीर्ष नेतृत्व की पकड़ कमजोर हो रही थी।
- गांधीजी ने दबाव-समझौता-दबाव की रणनीति अपनाई। पहले अंग्रेजों की शर्तें स्वीकार की किन्तु गोलमेज आंदोलन से निराशा हाथ लगने पर दोबारा आंदोलन की शुरुआत की।
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गांधी-इरविन समझौता ( Gandhi Irwin Pact 5 March 1931 ) का प्रभाव ( Effect of Gandhi Irwin Pact 5 March 1931 ) –
गांधी-इरविन समझौता ( Gandhi Irwin Pact 5 March 1931 ) कांग्रेस और साथ ही भारत के लिए काफी प्रभावपूर्ण साबित हुआ था। चूँकि उस समय कांग्रेस अंग्रेजों की स्वीकृति प्राप्त करने के साथ-साथ भारत के लोगों की एकमात्र प्रतिनिधि थी, इसलिए कांग्रेस सरकार के साथ समान स्तर पर प्रमुख भारतीय पार्टी के रूप में उभर कर सामने आई। हालाँकि, कांग्रेस ने सविनय अवज्ञा आंदोलन को निलंबित कर दिया था और समझौते पर हस्ताक्षर करने के कारण कांग्रेस की स्थिति और प्रतिष्ठा भी काफी बढ़ गई थी।
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आपका आर्टिकल पढ़कर मुझे बहुत अच्छा लगा. में अक्सर आपके ब्लॉग के न्यू आर्टिकल्स पढ़ता हूं जिससे मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला. आपके सभी आर्टिकल से टॉपिक को पूरी तरह से समझने की पूर्ण क्षमता होती है. आप इसी तरह से हमें अपना ज्ञान देते रहे इसके लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद.
Thankyou Aman Singh Tomar