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ब्रिटिश शाशन में जन आंदोलन (People’s Movement in British Rule)

ब्रिटिश शाशन में जन आंदोलन (People’s Movement in British Rule)

*1857 के विद्रोह के ठीक बाद बंगाल में नील विद्रोह-1859-60 ई. हआ। संन्यासी विद्रोह-1763-1800 ई. में संथाल विद्रोह-1855-56 ई. में तथा पाबना उपद्रव-1873-76 ई. में हुआ। नील विद्रोह की शुरुआत बंगाल के नदिया जिले के गोविंदपुर गांव से हुई। *एक नील उत्पादक के दो भूतपूर्व कर्मचारियों-दिगंबर विश्वास तथा विष्णु विश्वास के नेतृत्व में वहां के किसान एकजुट हए तथा उन्होंने नील की खेती बंद कर दी।

1860 ई. तक नील आंदोलन नदिया, पावना, खुलना, ढाका, मालदा, दीनाजपुर आदि क्षेत्रों में फैल गया। *बंगाल के बुद्धिजीवी वर्ग ने अखबारों में अपने लेखों द्वारा तथा जन सभाओं के माध्यम से इस विद्रोह के प्रति अपने समर्थन को व्यक्त किया। *इसमें ‘हिंदू पैट्रियाट’ के संपादक हरिश्चंद्र मुखर्जी की विशेष भूमिका रही। * नील बागान मालिकों के अत्याचारों का खुला चित्रण दीनबंध मित्र ने अपने नाटक ‘नील दर्पण’ में किया है। ‘वंदे मातरम्’ गीत बंकिमचंद्र चटर्जी की प्रसिद्ध उपन्यास ‘आनंदमठ’ से लिया गया है।

इस उपन्यास का कथानक संन्यासी विद्रोह पर आधारित है। 1896 ई. में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में ‘वंदेमातरम’ को पहली बार गाया गया था। *अंग्रेजी प्रभुसत्ता को सबसे सुनियोजित तथा गंभीर चुनौती वहाबी आंदोलन से मिली, जो 19वीं शताब्दी के चौथे दशक से सातवें दशक तक चलता रहा। *रायबरेली के सैयद अहमद बरेलवी भारत में इस आंदोलन के प्रवर्तक थे।

वह अरब के अब्दुल वहाब से प्रभावित हए, परंतु अधिक प्रभाव दिल्ली के एक संत शाह वलीउल्लाह का था। *सैयद अहमद बरेलवी के प्रयत्नों से इस आंदोलन की विचारधारा शीघ्र ही काबुल, उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रांत, बंगाल, बिहार, मध्य प्रांत आदि में फैल गई। *कुछ समय के लिए इन्होंने 1830 ई. में पेशावर पर कब्जा कर लिया और अपने नाम के सिक्के ढलवाए, किंतु अगले ही वर्ष वह बालाकोट की लड़ाई में मारे गए।

सैयद अहमद बरेलवी की मृत्यु के बाद पटना इस आंदोलन का केंद्र बना। *इस अवधि में आंदोलन का नेतृत्व मौलवी कासिम, विलायत अली, इनायत अली, अहमदुल्ला आदि ने किया। *पटना के अतिरिक्त हैदराबाद, मद्रास, बंगाल, संयुक्त प्रांत तथा बंबई में भी इस आंदोलन की शाखाएं स्थापित की गईं।

*कूका आंदोलन वहाबी आंदोलन से बहुत कुछ मिलता-जुलता था। दोनों धार्मिक आंदोलन के रूप में आरंभ हुए, किंतु बाद में ये राजनीतिक आंदोलन के रूप में परिवर्तित हो गए, जिसका सामान्य उद्देश्य अंग्रेजों को देश से बाहर निकालना था। * पश्चिमी पंजाब में कूका आंदोलन की शुरुआत 1840 के दशक में भगत जवाहरमल द्वारा की गई, जिन्हें मुख्यतः सियान साहब के नाम से पुकारा जाता था। * इनका उद्देश्य सिख धर्म में प्रचलित बुराइयों और अंधविश्वासों को दूर कर इस धर्म को शुद्ध करना था। *1872 ई. में इस आंदोलन के नेता राम सिंह को रंगून निर्वासित कर दिया गया, जहां इनकी 1885 ई. में मृत्यु हो गई। *पागलपंथ एक अर्द्ध-धार्मिक संप्रदाय था, जिसे उत्तरी बंगाल के करमशाह ने चलाया था। *करमशाह के पुत्र तथा उत्तराधिकारी टीटू, धार्मिक तथा राजनैतिक उद्देश्यों से प्रेरित थे। *उसने जमींदारों के द्वारा मुजारों (Tenants) पर किए गए अत्याचारों के विरुद्ध आंदोलन किया। *1825 ई. में टीटू ने शेरपुर पर अधिकार कर लिया तथा राजा बन बैठा। *वह इतना शक्तिशाली हो गया कि स्वतंत्र सत्ता का प्रयोग करने लगा और प्रशासन को चलाने के लिए उसने एक न्यायाधीश, एक मजिस्ट्रेट और एक कलेक्टर नियुक्त किया। *फराजी लोग बंगाल के फरीदपुर के हाजी शरीयतुल्ला द्वारा चलाए गए संप्रदाय के अनुयायी थे। *ये लोग अनेक धार्मिक, सामाजिक तथा राजनैतिक आमूल परिवर्तनों का प्रतिपादन करते थे। *शरीयतुल्ला के पुत्र दूदू मियां ने बंगाल से अंग्रेजों को निकालने की योजना बनाई। *यह आंदोलन 1818 से 1862 ई. तक चलता रहा, अंत में इस संप्रदाय के अनुयायी वहाबी दल में सम्मिलित हो गए। *1805 ई. में वेलेजली ने ट्रावनकोर (केरल) के महाराजा को सहायक संधि करने पर विवश किया। *महाराजा संधि की शर्तों से अप्रसन्न था और इसलिए उसने

सहायक संधि संबंधी कर देने में आनाकानी की। *अंग्रेज रेजीडेंट का व्यवहार भी बहुत धृष्टतापूर्ण था, जिसके फलस्वरूप दीवान वेलु थम्पी ने विद्रोह कर दिया, जिसमें नायर बटालियन ने उसका समर्थन किया। *प्रारंभिक भारतीय क्रांतिकारियों में अग्रगण्य वासदेव बलवंत फड़के (1845-83) ने बंबई प्रेसीडेंसी के रामोसी जनजाति के लोगों को संगठित करके उन्हें प्रशिक्षित लड़ाकुबल में परिवर्तित किया और रामोसी कृषक जत्था की स्थापना की थी। *गडकरी लोग मराठों के किलों में काम करने वाले उनके वंशानुगत कर्मचारी थे। *उन्होंने मनमाने ढंग से भू-राजस्व की वसूली, मराठा सेना से उन्हें सेवा मुक्त किए जाने और उनकी जमीनों को मामलतदारों की देख-रेख के अधीन कर दिए जाने के विरुद्ध 1844 ई. में कोल्हापुर में विद्रोह कर दिया। *खोंद जनजाति के लोग तमिलनाडु से लेकर बंगाल और मध्य भारत तक फैले विस्तत पहाडी क्षेत्रों में रहते थे और पहाडी क्षेत्र होने के कारण वे वस्तुतः स्वतंत्र थे। इन्होंने 1817 से 1856 ई. तक अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह किया। *इस आंदोलन का नेतृत्व यवा राजा के नाम पर चक्र विसोई ने किया। *इस विद्रोह के मुख्य कारण ब्रिटिश सरकार द्वारा मानव बलि (मरिहा) को प्रतिबंधित करने के प्रयास, अंग्रेजों द्वारा नए करों का आरोपण और अनेक क्षेत्रों में जमींदारों तथा साहुकारों के प्रवेश से संबंधित थे, जिनके कारण आदिवासियों को अनेक कष्टों का सामना करना पड़ा। *अंग्रेजों ने एक ‘मरिहा एजेंसी’ गठित की, जिसके विरुद्ध खौदों ने विद्रोह किया। *छोटानागपुर क्षेत्र में कोल विद्रोह का नेतृत्व 1831-32 ई. में बुद्धू या बुद्धो भगत ने किया था। *यह विद्रोह रुक-रुक कर 1848 ई. तक चलता रहा तथा अंततः इसे सरकार द्वारा कुचल दिया गया। बघेरा विद्रोह 1818 ई. में बड़ौदा में अंग्रेज सरकार के विरुद्ध किया गया था। *1857 के पूर्व के प्रमुख विद्रोहों का क्रम इस प्रकार है- (i) बंगाल का सिपाही विद्रोह (1764 ई.), जिसमें हेक्टर मुनरो की एक बटालियन बक्सर की रणभूमि से मीर कासिम से जा मिली थी: (ii) वेल्लोर का सिपाही विद्रोह (1806 ई.); (iii) कच्छ का विद्रोह (1819-31 ई.); (iv) कोल विद्रोह (1831-32 ई.) एवं (v) संथाल विद्रोह (1855-56 ई.)।

*1855-56 ई. का संथाल विद्रोह एक प्रसिद्ध आदिवासी विद्रोह था, जिसमें मूलभूत आदिवासी आवेग और ब्रिटिश शासन के पूर्ण तिरस्कार जैसी भावनाएं देखने को मिलती हैं। *भागलपुर से राजमहल के बीच का क्षेत्र, जो कि दामन-ए-कोह के नाम से जाना जाता है, में यह विद्रोह मूलतः आर्थिक कारणों से हुआ। *साहूकारों तथा औपनिवेशिक प्रशासक दोनों ही उनका शोषण कर रहे थे। *दिकुओं (बाहरी लोगों) एवं व्यापारियों ने संथालों द्वारा लिए गए ऋणों पर 50 से लेकर 500 प्रतिशत व्याज वसूल किया। *इस विद्रोह के नेता सीदो, कान्ह, चांद एवं भैरव नामक 4 भाई थे। *सीदो ने अधिकारियों से कहा था कि, “ठाकुर जी ने मुझे आदेश देते समय कहा कि यह देश साहबों का नहीं है। ठाकुर जी खुद हमारी तरफ से लड़ेंगे। इस तरह आप साहब लोग और सिपाही लोग खुद ठाकुर जी से लड़ोगे।” *यह आंदोलन 1856 ई. तक जारी रहा और अंततः विद्रोही नेताओं को पकड़ने के बाद आंदोलन को भारी दमन के साथ कुचल दिया गया। *1855 ई. में संथालों ने भागलपुर क्षेत्र के भगनीडीह ताल्लुके में विद्रोह कर

दिया था। *संथाल विद्रोह को दबाने के लिए मेजर बारो के नेतृत्व में एक सेना भेजी गई, जिसे संथालों ने हरा दिया था। *अंततः भागलपुर के कमिश्नर ब्राउन और मेजर जनरल लॉयड ने क्रूरतापूर्वक संथाल विद्रोह का दमन किया था।

भील विद्रोह, भीलों की आदिम जाति पश्चिमी तट के खानदेश में रहती थी। *1818-31 ई. तक इन लोगों ने अपने नए स्वामी अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। * कंपनी के अधिकारियों का कथन था कि इस विद्रोह को पेशवा बाजीराव द्वितीय तथा उसके प्रतिनिधि त्रयंबकजी दांगलिया ने प्रोत्साहित किया था। *वास्तव में कृषि संबंधी कष्ट तथा नई सरकार का भय ही इस विद्रोह का कारण था। *1825 ई. में सेवरम के नेतृत्व में इन लोगों ने विद्रोह किया। *ब्रिटिश सेना काफी प्रयास के बाद इस विद्रोह को कुचल सकी। रम्पा विद्रोह आंध्र प्रदेश के गोदावरी जिले के उत्तर में स्थित ‘रम्पा’ पहाड़ी क्षेत्र में हुआ। *आदिवासियों का यह विद्रोह साहूकारों के शोषण और वन कानूनों के विरुद्ध हुआ। *19वीं सदी के उत्तरार्ध में सुर्जी भगत एवं गोविंद गुरु नामक समाज सुधारकों ने राजस्थान की मेवाड़, डूंगरपुर, बांसवाड़ा, प्रतापगढ़, सिरोही, पाली इत्यादि रियासतों में बसी भील जनजाति में सामाजिक सुधारों के प्रयास किए। *गोविंद गुरु (इन्हें लसोड़िया भी कहा जाता है) ने भीलों को संगठित करने के उद्देश्य से 1883 ई. में ‘सभ्य सभा’ की स्थापना की थी। गोविंद गुरु को लसोड़िया आंदोलन का प्रवर्तक माना जाता है। *मुंडा आदिवासियों का विद्रोह 1899-1900 ई. के बीच हुआ, इसका नेतृत्व बिरसा मुंडा ने किया। *मुंडा जाति में सामूहिक खेती का प्रचलन था, लेकिन जागीरदारों, ठेकेदारों, बनियों और सूदखोरों ने सामूहिक खेती की परंपरा पर हमला बोला। *मुंडा सरदार 30 वर्ष तक सामूहिक खेती के लिए लड़ते रहे। *इनका यह विद्रोह ‘सरदारी लड़ाई’ के नाम से भी जाना जाता है। *1895 ई. में विरसा ने अपने आपको ‘भगवान का दूत’ घोषित किया था। *मुंडा विद्रोह को उलगुलान (महान हलचल) के नाम से जाना गया। *यह विद्रोह इस अवधि का सर्वाधिक प्रसिद्ध आदिवासी विद्रोह था। *मुंडों की पारंपरिक सामूहिक खेती बाली भूमि व्यवस्था खूटकट्टी या मंडारी के जमींदारी या व्यक्तिगत भू-स्वामित्व वाली भूमि व्यवस्था में परिवर्तन के विरुद्ध मुंडा विद्रोह की शुरुआत हुई। लेकिन कालांतर में बिरसा ने इसे धार्मिक, राजनीतिक आंदोलन का रूप प्रदान किया। *इनको ‘जगत पिता’ या ‘धरती आवा’ कहा जाता था। *उसने कहा कि “दिकुओं (गैर-आदिवासियों) से हमारी लड़ाई होगी और उनके खून से जमीन इस तरह लाल होगी जैसे लाल झंडा।” * 3 मार्च, 1900 को चक्रधरपुर के जामकोपई जंगल में सोते समय बिरसा को गिरफ्तार कर लिया गया और 9 जून, 1900 को जेल में ही उनकी मृत्यु हो गई। *बिरसा मुंडा का कार्यक्षेत्र रांची से लेकर भागलपुर तक था। *बिरसा ने अनेक देवताओं (बोंगा) की पूजा को छोड़कर अपने अनुयायियों से एक ईश्वर (सिंग बोंगा) की पूजा करने का आह्वान किया।

*ठक्कर बापा ने जनजातीय लोगों के संबंध में ‘आदिवासी’ शब्द का प्रयोग किया था। *ये हरिजन सेवक संघ के महासचिव थे। *हौज (हो) विद्रोह 1820-21 ई. में हआ था, जिसका केंद्र विहार का

संथाल परगना था। *खैरवार आदिवासी आंदोलन भागीरथ मांझी के नेतृत्व में 1874 ई. में हुआ था। *संभलपुर की गद्दी के दावेदार सुरेंद्र साई ने यहां ब्रिटिश विरोधी आंदोलन का नेतृत्व किया। *1862 ई. में उसने आत्मसमर्पण कर दिया था। *मोपला विद्रोह केरल के मालाबार क्षेत्र में वर्ष 1921 में हुआ था। यहां पर काश्तकार अधिकतर बटाईदार मुसलमान थे तथा जमींदार अधिकतर हिंदू थे। *यह आंदोलन जमींदारों के शोषण के खिलाफ था। *अहोम विद्रोह 1828 ई. में प्रारंभ हुआ था। *इसके नेता गोमधर कुंवर थे। *ताना भगत आंदोलन का प्रारंभ उरांव आदिवासियों के मध्य वर्ष 1914 में छोटानागपुर में हुआ था। *इस आंदोलन के नेतृत्वकर्ता जतरा भगत, बलराम भगत तथा देवमेनिया भगत आदि थे।

*महात्मा गांधी और उनकी विचारधारा से प्रभावित होने वाले पहले जनजातीय नेता जदोनांग (जोड़ानांग) थे। *वे मणिपुर के नागा जनजाति के अग्रणी स्वतंत्रता सेनानी थे।

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Abhishek Dubey

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