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हिमाचल प्रदेश का प्रागैतिहासिक इतिहास फ्री PDF नोट्स ( Prehistoric History of Himachal Pradesh Free PDF )

Prehistoric History of Himachal Pradesh
Written by Abhishek Dubey

हिमाचल प्रदेश का प्रागैतिहासिक इतिहास  (Prehistoric History of Himachal Pradesh)

नमस्कार दोस्तो , मैं अभिषेक दुबे ( ABHISHEK DUBEY ) एक बार फिर से OnlineGkTrick.com  पर आपका स्वागत करता हूँ , दोस्तों इस पोस्ट मे  हम आपको की जानकारी उपलब्ध करा रहे है ! जो आपके आगामी प्रतियोगी परीक्षाओ के लिए बहुत Important है , तो दोस्तों उम्मीद है यह जानकारी आपके लिए काफी महत्वपूर्ण साबित होगी !

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लगभग 5000 वर्ष पूर्व सिन्धु नदी से लेकर हिमाचल के तराई वाले क्षेत्रों में अभूतपूर्व विकास हुआ। इसके अवशेष मोहनजोदडो, हड़प्पा और शिमला की पहाड़ियों के आंचल में बसे रोपड़ के समीप विद्यमान हैं। खुदाई तथा अस्थि-पंजरों से यह पता चलता है कि ये पंजर आदिम आग्नेयकुल या निषादवंशी, मंगोल-किरात, भूमध्य सागरीय कुल और पर्वत प्रदेशीय नामक चार नस्लों के थे। आज इन चार नस्लों की कल्पना द्रविड़, असुर, ब्रात्य, दास, नाग, यक्ष, किन्नर- किरात, ब्राहुई, पार्ण और समैरियन के साथ की जाती है।

सिन्धु सभ्यता कालीन हिमाचल (Himachal in Indus valley period):

सिन्धु और हड़प्पा सभ्यता पूर्व में सरस्वती नदी के ऊपरी भाग और उत्तर में सतलुज-व्यास नदियों के भीतरी भाग तक फैली हुई थी। 3000 ईसा पूर्व से 2500 ई. पूर्व तक सिन्धु सभ्यता के काल में हिमाचल प्रदेश की कोल, आदिम, आग्नेय या निषादवंशी खश, नाग और किन्नर जातियों को समकालीन माना जाता है। कोल जाति को हिमाचल का मूल निवासी और नवपाषाण युगीन संस्कृति का संस्थापक माना जाता है। हिमाचल की कोली, हाली, डुम, डूमने, चनाल, रेहड़, बाढी और चमार इस जाति के हैं। कुछ इतिहासकारों का मत है कि इस जाति के सदस्य उत्तर पूर्वी दरों से भारत आये थे। द्रविड़ों ने कोल जाति के लोगों को अपने मूल स्थान से भगाकर जंगलों और पहाड़ों में शरण लेने के लिए बाध्य किया था।

हिमाचल में किरात(मंगोल) जाति (Kirat (Mongol) in Himachal):

महाभारत में किरातों को हिमालय के निवासी माने जाते थे; ये लाग फल-फूलों का आहार करते थे और मृगछाल पहनते थे। यजुर्वेद और अथर्ववेद में इस जाति को पर्वतीय गुफाओं के निवासियो की संज्ञा दी गई है। इन्हीं के नाम के साथ आज पहाड़ों में हिन्दुकुश, कश्मीर और खशघर या खरशाली(हिमाचल प्रदेश) नाम मिलते हैं। किरात लोग नेपाल तक प्रवेश कर गये थे। किरातों और खशों में इस काल में युद्ध हुए। किरातों और खशों के इस संघर्ष में खशों की विजय हुई।

एक इतिहासकार का मानना है कि किन्नर प्रदेश रामपुर बुशैहर के ऊपरी भाग में हैं जिसे आज किन्नौर जिला कहते हैं।आज चम्बा, लाहौल, मलाणा (कुल्लू), किन्नौर के लोग किरातों के वंशज हैं।

हिमाचल में खश जाति (Khash jati in Himachal):

खश मूलत: मध्य एशिया से आये थे। उपनिवेश की खोज में निकले इस समुदाय की तीन टोलियां बट गए थे। एक टोली तो सीधी ईरान होती हुई यूरोप तक बढ़ती गई। दूसरी टोली दो दलों में बंटकर हिन्दू-कुश पर्वत माला को लांघते हुए सिन्धु घाटी की ओर मुडी। तीसरी टोली मूलत: हिमाचल की खश जाति मानी जाती है। ये लोग हिमाचल प्रदेश, गढ़वाल, कुमाऊ और पूर्वी नेपाल तक फैल गये थे। खशों को इन क्षेत्रों में कोल, किन्नर (किरात), नाग और यक्ष जातियों के विरोध का सामना करना पड़ा। स्थानीय परम्पराओं, लोकनाट्यों, किंवदन्तियों, लोक कथाओं, गाथाओं और परम्पराओं में इस जाति के कौशल का पता चलता है।

प्रसिद्ध भूण्डा (नरमेद्य यज्ञ) प्राचीन समय से खश जाति की नाग जाति पर विजय की परम्परा है। आज भी हिमाचल के कुल्लू में निरमण्ड, रामपुर-बुशैहर, जुब्बल, रोहडू और बाहरी सिराज क्षेत्र में भूण्डा उत्सव खशों की परम्परा से जुड़ा है। निरमण्ड में मनाई जाने वाली बूढ़ी दीवाली खश-नाग युद्ध का ही एक प्रतीक है। इसे दीवाली से ठीक एक मास के बाद मनाया जाता है।

खशों का वर्णन मनुस्मृति, महाभारत और पुराणों में भी है।खश जाति को दुर्योधन की ओर से लड़ने के संकेत मिलता है।

हिमाचल में आर्यों का आक्रमण (Invasion of Aryan in Himachal):

विद्वानों का मत है कि आर्य जाति पहले एक स्थान पर बसती थी, बाद में किसी कारण से वह यूरोप और एशिया में फैल गए थे।वेदों में वर्णित पूर्व से पश्चिम की ओर सभी नदियां गंगा, यमुना, सरस्वती, शुतटु (सतलुज), परूष्णी (रावी), असिकनी (चिनाव), मरूदवृषा (चिनाव और जेहलम की सहायक नदी), वितस्ता (जेहलम), सुषमा (सोहन) तथा आर्जीकिया या विपाशा (व्यास) है। इनके बीच का क्षेत्र आर्यों का प्रदेश माना गया है।

दिवोदास और शम्बर का युद्ध- दिवोदास(आर्य जाती का शक्तिशाली शासक)शम्बर (खश जाति का शक्तिशाली शासक) का एक शक्तिशाली समकालीन राजा था। इन दोनों में परस्पर युद्ध छिड़ा रहता था। दिवोदास भरत कुल का शासक था।   उसके अधीन मैदानी भाग में परूष्णी (रावी) और शतद्र-विपाशा नदियों के बीच वाले नाग का क्षेत्र था। शम्बर की बढती शक्ति, क्षेत्र, विशाल समर्थन तथा यश को देखकर दिवोदास कहां चुप रहने वाला था। शम्बर और दिवोदास में अन्तत: युद्ध छिड़ गया जो की 40 वर्षे तक चला यह युद्ध हिमाचल की पहाड़ियों में हुआ। चालीस वर्षों तक चले युद्ध में दिवोदार ने वीर शम्बर को परास्त किया और आर्य लोगों ने धन सम्पन्न पर्वत में प्रवेश किया।

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About the author

Abhishek Dubey

नमस्कार दोस्तों , मैं अभिषेक दुबे, Onlinegktrick.com पर आप सभी का स्वागत करता हूँ । मै उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले का रहने वाला हूँ ,मैं एक upsc Aspirant हूँ और मै पिछले दो साल से upsc की तैयारी कर रहा हूँ ।

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