1857 की क्रांति ‘महासंग्राम’ (Revolution of 1857)
*दिसंबर, 1856 में सरकार ने पुराने लोहे वाली बंदूक ब्राउन बेस (Brown Bess) के स्थान पर नवीन एनफील्ड राइफल (New Enfield Rifle) के प्रयोग का निर्णय लिया। *इसका प्रशिक्षण डम-डम, अम्बाला और स्यालकोट में दिया जाना था। इस नई राइफल में कारतस के ऊपरी भाग को मुंह से काटना पड़ता था।
जनवरी, 1857 में बंगाल सेना में यह अफवाह फैल गई कि चर्बी वाले कारतूस में गाय और सुअर की चर्बी है। *सैनिक अधिकारियों ने इस अफवाह की जांच किए बिना तुरंत इसका खंडन कर दिया। *किंतु सैनिकों को विश्वास हो गया कि चर्बी वाले कारतूसों का प्रयोग उनके धर्म को भ्रष्ट करने का एक निश्चित प्रयत्न है।
यही भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 के विद्रोह का तात्कालिक कारण बना। *29 मार्च, 1857 को ‘बैरकपुर’ में सैनिकों ने चर्बी वाले कारतूसों का प्रयोग करने से इंकार कर दिया और एक सैनिक मंगल पांडेय ने अपने एजुडेंट पर आक्रमण कर उसकी हत्या कर दी। *अंग्रेजों द्वारा 34वीं एन.आई. रेजीमेंट भंग कर दी गई और अपराधियों को दंड दिया गया।
1857 की क्रांति का प्रमुख कारण ब्रिटिश साम्राज्य की घिनौनी नीतियां थीं, जिनसे तंग आकर अंततः विद्रोह का ज्वालामुखी फट पड़ा। भएंग्लो-इंडियन इतिहासकारों ने सैनिक असंतोषों तथा चर्वी वाले कारतूसों को ही 1857 के महान विद्रोह का सबसे मुख्य तथा महत्वपूर्ण कारण बताया है।
परंतु आधुनिक भारतीय इतिहासकारों ने यह सिद्ध कर दिया है कि चर्बी वाले कारतूस ही इस विद्रोह का एकमात्र कारण अथवा सबसे प्रमुख कारण नहीं था। *चर्बी वाले कारतूस और सैनिकों का विद्रोह तो केवल एक चिंगारी थी, जिसने उन समस्त विस्फोटक पदार्थों में, जो राजनैतिक, सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक कारणों से एकत्रित हुए थे, आग लगा दी और जिसने दावानल का रूप धारण कर लिया।
1857 की क्रांति का प्रारंभ 10 मई को मेरठ से हुआ था। यहां की तीसरी कैवेलरी रेजीमेंट के सैनिकों ने चर्बीयुक्त कारतूसों को छूने से इंकार कर दिया तथा खुलेआम बगावत कर दी। *अपने अधिकारियों पर गोली चलाई तथा अपने साथियों को मुक्त करवा कर वे लोग दिल्ली की ओर चल पड़े।
जनरल हेविट (General Hewitt) के पास 2200 यूरोपीय सैनिक थे, परंतु उसने इस तूफान को रोकने का कोई प्रयास नहीं किया। *विद्रोहियों ने 12 मई, 1857 को दिल्ली पर अधिकार कर लिया। *इस प्रकार सैनिकों का दिल्ली के लाल किले पर पहंचना पहली घटना थी। *1857 के स्वाधीनता संग्राम का प्रतीक कमल और रोटी था।
बरेली में रुहेलखंड के भूतपूर्व शासक के उत्तराधिकारी खान बहादुर ने 1857 के विद्रोह की रहनुमाई की। *मुगल सम्राट बहादुर शाह द्वितीय ने उन्हें वायसराय के पद पर नियुक्त किया था। *रानी लक्ष्मीबाई (मूल नाम मनिकर्णिका) का जन्म 19 नवंबर, 1835 को गोलघर में हुआ था, जो वर्तमान में वाराणसी में है।
उनके पिता मोरोपंत झांसी के महाराजा गंगाधर राव के दरबार में गए। *उस समय लक्ष्मीबाई की उम्र 13 वर्ष थी। *14 वर्ष की उम्र में उनका विवाह झांसी के महाराजा गंगाधर राव के साथ हुआ। *इनकी मृत्यु ग्वालियर में हुई थी। *ग्वालियर में ही महारानी लक्ष्मीबाई की समाधि स्थित है। *रानी लक्ष्मीबाई झांसी के अंतिम मराठा राजा गंगाधर राव की विधवा थीं।
जब किसी उत्तराधिकारी के अभाव में राजा गंगाधर राव की मृत्यु हो गई, तो डलहौजी ने व्यपगत सिद्धांत के अंतर्गत 1854 में झांसी का ब्रिटिश साम्राज्य में विलय कर लिया। *झांसी में जून, 1857 में रानी लक्ष्मीबाई के नेतृत्व में विद्रोह का श्रीगणेश हुआ। *अंग्रेज जनरल यूरोज से लड़ते हुए 17 जून, 1858 को वे वीरगति को प्राप्त हुई । *रानी की मृत्यु पर घरोज ने कहा था-“भारतीय विद्रोहियों में यहां सोई हुई औरत अकेली मर्द है।”
लखनऊ (अवध) में विद्रोह का प्रारंभ 30 मई, 1857 में हुआ। *विद्रोह का नेतृत्व बेगम हजरत महल ने किया। * उन्होंने अपने अल्पवयस्क बेटे बिरजिस कादिर को नवाव घोषित किया तथा प्रशासन की बागडोर अपने हाथ में ले ली। *अंत में 21 मार्च, 1858 को कैम्पबेल ने गोरखा रेजीमेंट की सहायता से लखनऊ पर पुनः अधिकार कर लिया। कानपुर में 5 जून, 1857 को नाना साहब (नाना धोंदो पंत) को पेशवा मानकर स्वतंत्रता की घोषणा की गई।
नाना साहब को सेनापति (कमांडर-इन चीफ) तात्या टोपे से बहुत सहायता मिली थी। *अजीमुल्ला खां नाना साहब के सलाहकार थे। * इन्होंने नाना साहब के सचिव के रूप में भी कार्य किया था। * इन्हें ‘क्रांतिदूत’ के नाम से भी जाना जाता है। तात्या टोपे (1814-1859 ई.) को रामचंद्र पांडुरंग के नाम से भी जाना जाता है। *वे 1857 के भारतीय विद्रोह के प्रमुख नेता थे।
इनका जन्म महाराष्ट्र में येओला (Yeola) गांव में हुआ था। उनके एक विश्वसनीय मित्र मानसिंह ने उन्हें धोखा देकर उस समय पकड़वा दिया जब वे पारो के जंगलों में अपने कैंप में शयन कर रहे थे। *यहां से उन्हें पकड़कर शिवपुरी लाया गया और सैनिक अदालत में 18 अप्रैल, 1859 को फांसी दे दी गई। *1857 में जगदीशपुर में विद्रोह की अगुवाई करने वाले कंवर सिंह बिहार के तत्कालीन शाहाबाद जिले (वर्तमान भोजपुर जिले) के जगदीशपुर से संबंधित थे।
असम में 1857 की क्रांति के समय वहां के दीवान मनिराम दत्त ने वहां के अंतिम राजा के पौत्र कंदपेश्वर सिंह को राजा घोषित करके विद्रोह की शुरुआत की, परंतु शीघ्र ही विद्रोह का दमन करके मनिराम को फांसी दे दी गई। *आउवा के ठाकुर कुशल सिंह ने 1857 ई. की क्रांति में अंग्रेजों और जोधपुर की संयुक्त सेना को पराजित किया था।
मौलवी अहमदुल्लाह शाह ने फैजाबाद में 1857 के विद्रोह को अपना नेतृत्व प्रदान किया। *ये अंग्रेजों के सबसे कट्टर दुश्मन थे। वह मूलतः तमिलनाडु में अर्काट के रहने वाले थे, पर वह फैजाबाद में आकर बस गए थे। उन्होंने भारत के विभिन्न धर्मानुयायियों का आह्वान करते हुए कहा कि “सारे लोग काफिर अंग्रेजों के विरुद्ध खड़े हो जाओ और उन्हें भारत से बाहर खदेड़ दो।”
इनके बारे में अंग्रेजों ने कहा कि, ‘वह अदम्य साहस के गुणों से परिपूर्ण और दृढ़ संकल्प वाले व्यक्ति तथा विद्रोहियों में सर्वोत्तम सैनिक है। इनकी गिरफ्तारी के लिए ब्रिटिश सरकार ने 50,000 रु. का इनाम रखा था। *1857 के विद्रोह को मिर्जा गालिब ने स्वयं अपनी आंखों से देखा था। *इनका जन्म 27 दिसंबर, 1797 को आगरा में और मृत्यु 15 फरवरी, 1869 को दिल्ली में हुई थी।
1857 के स्वतंत्रता संघर्ष में ग्वालियर के सिंधिया ने अंग्रेजों की सर्वाधिक सहायता की। “यूरोपीय इतिहासकारों ने ग्वालियर के मंत्री सर दिनकर राव और हैदराबाद के मंत्री सालारजंग की राजभक्ति की बहुत सराहना की है। *संकट के समय कैनिंग ने कहा था, “यदि सिंधिया भी विद्रोह में सम्मिलित हो जाए तो मुझे कल ही विस्तर गोल करना होगा।” *1857 का विद्रोह बहुत बड़े क्षेत्र में फैला हुआ था और इसे जनता का व्यापक समर्थन प्राप्त था।
फिर भी पूरे देश को या भारतीय समाज के सभी अंगों तथा वर्गों को यह अपनी लपेट में नहीं ले सका। यह दक्षिणी भारत तथा पूर्वी और पश्चिमी भारत के अधिकांश भागों में नहीं फैल सका। ग्वालियर के सिंधिया, इंदौर के होल्कर, हैदरावाद के निजाम, जोधपुर के राजा, भोपाल के नवाब, पटियाला, नाभा और जींद के सिख शासक एवं पंजाब के दूसरे सिख सरदार, कश्मीर के महाराजा तथा दूसरे अनेक सरदारों और बड़े जमींदारों ने विद्रोह को कुचलने में अंग्रेजों की सक्रिय सहायता की।
गवर्नर जनरल कैनिंग ने बाद में टिप्पणी की कि इन शासकों तथा सरदारों ने “तूफान के आगे बांध (तरंग रोधक) की तरह काम किया, वर्ना यह तूफान एक ही लहर में हमें बहा ले जाता।” *1857 के विद्रोह में शिक्षित वर्ग ने कोई रुचि नहीं ली, जो इस महासमर की असफलता के प्रमुख कारणों में से एक है।
1857 के विद्रोह के समय भारत का गवर्नर जनरल लॉर्ड कैनिंग (1856-62 ई.) था। *विद्रोह के समय लॉर्ड कैनिंग ने इलाहाबाद को आपातकालीन मुख्यालय बनाया था। *लॉर्ड कैनिंग भारत में कंपनी द्वारा नियुक्त अंतिम गवर्नर जनरल तथा ब्रिटिश सम्राट के अधीन नियुक्त भारत का पहला वायसराय था।
न्यायिक सुधारों के अंतर्गत कैनिंग ने ‘इंडियन हाईकोर्ट एक्ट द्वारा बंबई, कलकत्ता तथा मद्रास में एक-एक उच्च न्यायालय की स्थापना की। *सामाजिक सुधारों के अंतर्गत विधवा पुनर्विवाह अधिनियम 1856 में कैनिंग के समय में ही पारित हुआ था। *1857 के सिपाही विद्रोह (Sepoy mutiny) को भारत में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के नाम से तथा ब्रिटेन में इंडियन म्यूटिनी (Indian mutiny) के नाम से अभिहित किया जाता है।
1857 के विद्रोह के समय बैरकपुर में लेफ्टिनेंट जनरल सर जॉन बेनेट हैरसे (John Bennet Hearsey) कमांडिंग ऑफिसर थे। *जिस समय भारत में 1857 की क्रांति हई, विस्कॉन्ट पामर्स्टन ब्रिटेन के प्रधानमंत्री थे। *इनका कार्यकाल 1855-1858 ई. तथा 1859-1865 ई. तक था। *1857 के विद्रोह की असफलता का मुख्य कारण किसी सामान्य योजना एवं केंद्रीय संगठन की कमी था।
विद्रोहियों के नेताओं में कोई संगठन की भावना देखने में नहीं आई। *उनके पास किसी सुनियोजित कार्यक्रम का पूर्ण अभाव था। *उनमें अनुशासन की कमी भी थी। कभीकभी तो वे अनुशासित सेना के बजाए दंगाई भीड़ की तरह व्यवहार करते थे। उनके पास एक भविष्योन्मुख कार्यक्रम, सुसंगत विचारधारा, राजनीतिक परिप्रेक्ष्य या भावी समाज और अर्थव्यवस्था के प्रति एक स्पष्ट दृष्टिकोण का अभाव था।
14 सितंबर, 1857 को अंग्रेजों द्वारा दिल्ली पर अधिकार करने के क्रम में जनरल जॉन निकलसन घायल हुआ और 23 सितंबर, 1857 को उसकी मृत्यु हुई थी। लखनऊ में 1857 के विद्रोह के दौरान अंग्रेज रेजीडेंसी की रक्षा करते हुए सर हेनरी लॉरेंस, मेजर जनरल हैवलॉक तथा जनरल नील की मृत्यु हुई। सर जेम्स आउट्रम एवं डब्ल्यू. टेलर ने 1857 के विद्रोह को हिंदू-मुस्लिम षड्यंत्र का परिणाम बताया है।
आउट्रम का विचार था कि “यह मस्लिम षड़यंत्र था, जिसमें हिंद शिकायतों का लाभ उठाया गया।” जॉन लॉरेंस और सीले के अनुसार यह केवल ‘सैनिक विद्रोह’ था। टी.आर. होम्स के अनुसार, यह बर्बरता और सभ्यता के बीच युद्ध था। ची.डी. सावरकर ने अपनी पुस्तक “The Indian war of Independence 1857″ में इस विद्रोह को सुनियोजित स्वतंत्रता संग्राम की संज्ञा दी।
उन्होंने इसे स्वतंत्रता की पहली लड़ाई कहा था। 1857 के भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के सरकारी इतिहासकार सुरेंद्र नाथ सेन (एस.एन. सेन) थे जिनकी पुस्तक ‘एडीन फिफ्टी सेवन’ 1957 में प्रकाशित हुई थी। सर सैयद अहमद खां द्वारा लिखित पुस्तक ‘असवाय-ए-बगावत-ए-हिंद’ 1859 ई. में प्रकाशित हुई थी, जिसमें 1857 के विद्रोह के कारणों की चर्चा की गई थी।
भारत सरकार द्वारा आर. सी. मजूमदार को 1857 के विद्रोह का इतिहास लिखने के लिए नियुक्त किया गया था। परंतु सरकारी समिति से अनबन होने के कारण उन्होंने यह कार्य करने से इनकार कर दिया तथा अपनी पुस्तक “The Sepoy Mutiny and the Rebellion of 1857” को स्वतंत्र रूप से वर्ष 1957 में प्रकाशित किया। “मजमदार ने ही 1857 के विद्रोह को “तथाकथित प्रथम राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम न प्रथम, न राष्ट्रीय और न ही स्वतंत्रता संग्राम था” कहा था।
1857 के विद्रोह का सबसे महत्वपूर्ण परिणाम महारानी विक्टोरिया की उद्घोषणा थी। यह उद्घोषणा 1 नवंबर, 1858 को इलाहावाद में हुए दरबार में लॉर्ड कैनिंग द्वारा उद्घोषित की गई। इसमें भारत में कंपनी के शासन को समाप्त कर भारत का शासन सीधे क्राउन के अधीन कर दिया गया।
इस उदघोषणा में भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के विस्तार पर रोक लोगों के धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप न करना, एकसमान कानूनी सुरक्षा सबको उपलब्ध कराना आदि शामिल थे। *भारतीय रजवाड़ों के प्रति विजय और विलय की नीति का परित्याग कर दिया गया और सरकार ने राजाओं को गोद लेने की अनुमति प्रदान की तथापि अन्य आश्वासन ब्रिटिश शासन द्वारा पूरे नहीं किए जा सके।
1857 के विद्रोह के दमन के बाद ब्रिटिश सरकार ने भारतीय फौज के ‘नव गठन’ के लिए जुलाई, 1858 में मेजर जनरल जोनाथन पील की अध्यक्षता में एक रॉयल कमीशन (पील आयोग) का गठन किया, जिसने सेना के रेजीमेंटों को जाति, समुदाय और धर्म के आधार पर विभाजित किया। “यूरोपीय सैनिकों की संख्या जो 1857 से पूर्व 45,000 थी, अब 65,000 कर दी गई तथा भारतीय सैनिकों की संख्या 2,38,000 से घटाकर 1,40,000 कर दी गई। *बंगाल में युरोपीय सैनिकों का भारतीय सैनिकों से 1 : 2 का अनुपात रखा गया, जबकि मद्रास तथा बंबई में यह अनुपात 1: 3 का रखा गया। *1857 के विद्रोह के बाद ब्रिटिश सरकार ने सिपाहियों का चयन गोरखा, सिख एवं पंजाब के उत्तर प्रांत से किया।