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पारितंत्र के घटक (Components of Ecosystem in Hindi)

किसी क्षेत्र के सभी जीवधारी (जैविक) तथा वातावरण में उपस्थित अजैविक घटक संयुक्त रूप से पारितंत्र (Ecosystem) का निर्माण करते हैं। पारितंत्र जैविक व अजैविक घटकों से मिलकर बनी हुई एक रचना होती है। . पारिस्थितिकी तंत्र जीवमंडल में एक निश्चित क्षेत्र धारण करता है। पारिस्थितिकी तंत्र एक कार्यशील क्षेत्रीय इकाई है। पारिस्थितिकी तंत्र एक खुला तंत्र होता है। पारिस्थितिकी तंत्र प्राकृतिक संसाधन होते हैं अर्थात इसकी अपनी उत्पादकता होती है।

अतः जीवमंडल में उपस्थित सभी संघटकों के वे समूह जो पारस्परिक क्रिया में सम्मिलित होते हैं, पारिस्थितिक तंत्र का निर्माण करते हैं। जीव विभिन्न प्रकार के जैविक संगठनों द्वारा जीवमंडल का निर्माण करते हैं। जीव से जैवमंडल का जैविक संगठन का सही क्रम है

ध्यातव्य है कि एक ही जाति के जीवधारियों की संख्या को उनकी जनसंख्या कहा जाता है। दो या दो से अधिक जातियों की जनसंख्या मिलकर समुदाय का निर्माण करती है। कई समुदाय मिलकर पारिस्थितिक तंत्र का निर्माण करते हैं तथा एक निश्चित भू-क्षेत्र या भू-दृश्य में एक या उससे अधिक पारिस्थितिक तंत्र पाए जा सकते हैं।

पारिस्थितिक तंत्र के घटक

पारिस्थितिकी तंत्र के अंतर्गत जैविक संघटकों को दो प्रमुख भागों में विभाजित किया जाता है-

(1) स्वपोषित संघटक और

(2) परपोषित संघटक

स्वपोषित संघटक (Autotrophic Component) वे होते हैं, जो प्रकाश संश्लेषण अथवा रसायन संश्लेषण द्वारा अपना आहार स्वयं निर्मित करते हैं। उपभोक्ता (Consumers) मानव सहित परपोषित जंतु होते हैं, जो स्वपोषित पौधों (प्राथमिक उत्पादक या प्राथमिक पोषक) द्वारा उत्पन्न

जैविक तत्वों से अपना आहार ग्रहण करते हैं। अतः उपभोक्ता द्वितीयक, पोषक या द्वितीयक उत्पादक कहलाते हैं। वियोजक (Decomposers) या अपघक वे सूक्ष्म जीव होते हैं, जो मृत पौधों, जंतुओं और अन्य जैविक पदार्थों को सड़ा-गला कर वियोजित करते हैं। इसी प्रक्रिया के दौरान ये अपना आहार ग्रहण करते हैं और जैविक तत्वों की पुनर्व्यवस्था भी करते हैं। प्रकृति में पारिस्थितिकी तंत्र को दो प्रमुख श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है। वे स्थलीय एवं जलीय तंत्र कहलाते हैं।

घास स्थल, वन तथा मरुस्थल, स्थलीय पारिस्थितिक तंत्रों के उदाहरण हैं। जलीय पारिस्थितिकीय तंत्र में झील, नदियां तथा समुद्र आते हैं। प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र मानवीय गतिविधियों द्वारा मानवीकृत पारिस्थितिक तंत्र में परिवर्तित हो सकता है। उदाहरणतया घास स्थल प्रदेश के बहुत बड़े भाग को जोतकर उसे शस्य भूमि में परिवर्तित किया जा चका है।

मानव ने प्राकृतिक वनों के बड़े भाग को काटकर उस भूमि पर कृषि कार्य किया है। अतः वन, झील तथा घास का मैदान प्राकृतिक पारितंत्र हैं, जबकि धान का खेत मानव निर्मित कृत्रिम पारिस्थितिक तंत्र है। पारिस्थितिक तंत्र को निम्न प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है।

पृथ्वी के लगभग 71 प्रतिशत भाग पर जलीय पारिस्थितिकी तंत्र का विस्तार है। अतः यह तंत्र विश्व के सर्वाधिक क्षेत्र पर फैला है। सागरीय (महासागर) पारिस्थितिकी तंत्र, सबसे अधिक स्थिर पारिस्थितिकी तंत्र है। सागरीय पारिस्थितिकी तंत्र अपनी रासायनिक संरचना के कारण स्थिर रहता है। सागरीय जल खारा (Saline) होने के साथ ही घुलित ऑक्सीजन (Dissolved Oxygen), प्रकाश व तापमान के स्थिर रहने के कारण सबसे स्थिर तंत्र है।

समुद्र विश्व का विशालतम पारिस्थितिक तंत्र है। पृथ्वी पर विद्यमान जलमंडल (Hydrosphere) का लगभग 97 प्रतिशत भाग समुद्री जल होता है। समुद्री जल में सर्वाधिक व्याप्त लवण सोडियम क्लोराइड है। पृथ्वी पर पाए जाने वाले विभिन्न समुद्र आपस में मिले हुए हैं। ये बंटे हुए नहीं हैं जैसा कि स्थलीय महाद्वीपों के बीच देखने को मिलता है। ध्रुवों (Poles) तथा मध्य रेखा (Equator) के तापमान में बहुत अधिक अंतर

पाया जाता है। इससे समुद्री धाराएं उत्पन्न होती हैं। इन समुद्री धाराओं के कारण जल का सारे समुद्र में एक-सा मिश्रण बना रहता है। इस कारण तापमानों का स्तरण (जैसा कि झीलों में होता है) नहीं हो पाता और जल में ऑक्सीजन की कमी भी नहीं होने पाती है। समुद्र में ज्वार-भाटे आते रहते हैं, जिससे जल स्तर बदलता रहता है। समुद्री पारिस्थितिक तंत्र में स्तरण (Stratification) पाया जाता है, जो इस प्रकार है

पारिस्थितिक तंत्र में प्रत्येक पोषण स्तर से आगे बढ़ने पर ऊर्जा का ह्रास होता है, इसी कारण उत्पादकों की संख्या उपभोक्ताओं से अधिक होती है। पारिस्थितिक तंत्र में शाकाहारियों की संख्या मांसाहारियों से अधिक होती है।

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Abhishek Dubey

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