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पारिस्थितिक पदछाप एवं मिलेनियम इकोसिस्टम एसेसमेंट और पारिस्थितिक तंत्र (Ecological footprint and millennium ecosystem assessment and ecosystem)

पारिस्थितिक पदछाप एवं मिलेनियम इकोसिस्टम एसेसमेंट

पारिस्थितिकीय तंत्र के विभिन्न घटकों का उपयोग मानव जीवन के लिए आवश्यक है। पारिस्थितिकीय घटकों की वह आवश्यक मात्रा, जो मनुष्य को उसकी जीवनशैली को सुचारू रूप से चलाने के लिए आवश्यक होती है, पारिस्थितिक पदछाप कहलाती है। इसके अंतर्गत मनुष्य द्वारा कार्बन उत्सर्जन का भी मापन किया जाता है।

अविवेकशील जीवनशैली जिसमें पारिस्थितिक तंत्र के घटकों यथा – जल, ऊर्जा इत्यादि का आवश्यकता से अधिक दोहन किया जाता है, पदछाप के आकार को बढ़ा देती है। आधुनिक युग में प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन की मात्रा बढ़ रही है। इससे मुख्यतया ग्रीन हाउस गैसों की मात्रा में भी बढ़ोत्तरी हो रही है।

प्रदत्त वर्ष में एक टन के उत्सर्जन से होने वाली दीर्घकालीन क्षति (आर्थिक मूल्य के रूप में) को ‘कार्बन का सामाजिक मूल्य’ (Social cost of carbon) कहते हैं। मानव, समुदाय व देश अपनी नीतियों को सतत विकास के संदर्भ में बनाकर अपने-अपने पारिस्थितिकीय पदछाप के आकार को सम्यक् बना सकते हैं। अतः हम कह सकते हैं कि पारिस्थितिक पदछाप या पदचिह्न, पृथ्वी के पारिस्थितिक तंत्रों पर मानवीय मांग का एक मापक है।

यह इंसान की मांग की तुलना, पृथ्वी की पारिस्थितिकी के पुनरुत्पादन करने की क्षमता से करता है। पारिस्थितिकीय पदछाप के माप की इकाई भूमंडलीय हेक्टेयर (Global Hectares) है। ध्यातव्य है कि पारिस्थितिक तंत्र मानव व प्रकृति को विभिन्न सेवाएं प्रदान करता है। वर्ल्ड डेवलपमेंट रिपोर्ट, 2010 के अनुसार, ‘मिलेनियम इकोसिस्टम एसेसमेंट’ पारिस्थितिक तंत्र की सेवाओं के निम्न पांच प्रमुख वर्गों का वर्णन करता है। इसमें पोषण चक्रण और फसल परागण समर्थन सेवाएं हैं।

पारिस्थितिक तंत्र

यूकेलिप्टस को उसकी अत्यधिक जल ग्रहण शक्ति के कारण पर्यावरण शत्र के रूप में घोषित किया गया है। इसको जिस स्थान पर लगाया जाता है, वहां की मिट्टी का जलस्तर काफी नीचे चला जाता है। यह पौधा ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप में बहुतायत में पाया जाता है। स्थिर जल के आवास लैन्टिक आवास के अंतर्गत आते हैं, जैसेआर्द्रभूमि, तालाब, झील, जलाशय इत्यादि। बहते जल के आवास लोटिक (Lotic) आवास कहे जाते हैं, जैसे- नदी। दो भिन्न समुदायों के बीच का संक्रमण क्षेत्र इकोटोन कहलाता है।

सर्वाधिक स्थायी पारिस्थितिक तंत्र महासागर है। पारिस्थितिकी तंत्र (Ecosystem) शब्द का प्रथम प्रयोग ए.जी. टांसले द्वारा किया गया है। पारितंत्रों की घटती उत्पादकता के क्रम में उनका सही अनुक्रम हैमैंग्रोव, घास स्थल, झील, महासागर। अधिक विविधता वाले पारितंत्र की उत्पादकता भी अधिक होगी। पिक्नोक्लाइन किसी जल निकाय में घनत्व प्रवणता को दर्शाती है।

हैलोक्लाइन किसी जल निकाय में लवणता प्रवणता को प्रदर्शित करती है। थर्मोक्लाइन किसी जल निकाय में गहराई के साथ तापमान परिवर्तन को दर्शाती है। अर्नीज नेस ने वर्ष 1973 में सर्वप्रथम ‘गहन पारिस्थितिकी’ शब्द का प्रयोग किया था। पारिस्थितिकी निशे (Niche) शब्द को सर्वप्रथम जोसेफ ग्रीनेल (Joseph Grinnell) ने वर्ष 1917 में प्रस्तुत किया था, जिसे इन्होंने सूक्ष्म-आवास (Micro-Habitats) कहा था। ‘भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम’ वर्ष 1972 में लागू किया गया।

पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, पर्यावरण के संरक्षण एवं सुधार के लिए वर्ष 1986 में लागू किया गया। जनजातियों एवं अन्य पारंपरिक वन निवासियों के (वन अधिकारों को मान्यता) अधिनियम दिसंबर, 2006 में लागू किया गया। वन संरक्षण अधिनियम वर्ष 1980 में लागू किया गया था। समुद्री उत्प्रवाह एक ऐसी घटना है, जिसमें वायु प्रवाह द्वारा समुद्र की सतह पर विद्यमान गर्म, पोषकरहित जल को, सघन, ठंडे तथा पोषक तत्वों से परिपूर्ण जल द्वारा स्थानांतरित कर दिया जाता है।

पारिस्थितिक संवेदी क्षेत्र (Eco-Sensitive Zone : ESZ) वे क्षेत्र हैं, जिन्हें पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत घोषित किया गया है। पारिस्थितिक संवेदी क्षेत्रों को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा अधिसूचित किया जाता है। पारिस्थितिक संवेदी क्षेत्रों में रात्रि के समय व्यावसायिक प्रयोजनों हेतु वाहनों के आवागमन को विनियमित (Regulate) किया जाता है और यह प्रतिबंधित नहीं है। अतः कृषि को छोड़कर सभी मानव क्रियाओं का निषेध नहीं है, बल्कि कुछ पर प्रतिबंध लगाया गया है और कुछ को विनियमित किया गया है।

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Abhishek Dubey

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