जयशकर प्रसाद के जीवन-परिचय जयशंकर प्रसाद का जन्म काशी के एक प्रतिष्ठित वैश्य परिवार में माघशक्ल दशमी संवत् 1945 वि० (सन् 1889 ई०) में हुआ था। इनके पिता का नाम देवीप्रसाद था। ये तम्बाक के एक प्रसिद्ध व्यापारी थे।
बचपन में ही पिता की मृत्यु हो जाने से इनकी प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही हुई। घर पर ही इन्होंने हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत, उर्दू, फारसी का गहन अध्ययन किया। ये बड़े मिलनसार, हँसमुख तथा सरल स्वभाव के थे। इनका बचपन बहुत सुख से बीता, किन्तु उदार प्रकृति तथा दानशीलता के कारण ये ऋणी हो गये। अपनी पैतृक सम्पत्ति का कुछ भाग बेचकर इन्होंने ऋण से छुटकारा पाया।
अपने जीवन में इन्होंने कभी अपने व्यवसाय की ओर ध्यान नहीं दिया। परिणामस्वरूप इनकी आर्थिक स्थिति बिगड़ती गयी और चिन्ताओं ने इन्हें घेर लिया। बाल्यावस्था से ही इन्हें काव्य के प्रति अनुराग था, जो उत्तरोत्तर बढ़ता ही गया। ये बडे स्वाभिमानी थे, अपनी कहानी अथवा कविता के लिए पुरस्कारस्वरूप एक पैसा भी नहीं लेते थे।
यद्यपि इनका जीवन बड़ा नपा-तुला और संयमशील था, किन्तु दु:खों के निरन्तर आघातों से ये न बच सके और संवत् 1994 वि० (सन् 1937ई०) में अल्पावस्था में ही क्षय रोग से ग्रस्त होकर स्वर्ग सिधार गये। साहित्यिक सेवाएँ श्री जयशंकर प्रसाद छायावाद के प्रवर्तक, उन्नायक तथा प्रतिनिधि कवि होने के साथ-साथ युग प्रवर्तक नाटककार, कथाकार तथा उपन्यासकार भी थे।
विशुद्ध मानवतावादी दृष्टिकोण वाले प्रसाद जी ने अपने काव्य में आध्यात्मिक आनन्दवाद की प्रतिष्ठा की है। प्रेम और सौन्दर्य इनके काव्य के प्रमुख विषय रहे हैं, किन्तु मानवीय संवेदना उनकी कविता का प्राण है। रचनाएँ प्रसाद जी अनेक विषयों एवं भाषाओं के प्रकाण्ड पण्डित और प्रतिभासम्पन्न कवि थे। इन्होंने नाटक, उपन्यास, कहानी, निबन्ध आदि सभी साहित्यिक विधाओं पर अपनी लेखनी चलायी और अपने कृतित्व से इन्हें
अलंकृत किया। इनका काव्य हिन्दी-साहित्य की अमूल्य निधि है। इनके प्रमुख काव्यग्रन्थों का विवरण निम्नवत् है कामायनी यह प्रसाद जी की कालजयी रचना है। इसमें मानव को श्रद्धा और मनु के माध्यम से हृदय और बुद्धि के समन्वय का सन्देश दिया गया है। इस रचना पर कवि को मंगलाप्रसाद पारितोषिक भी मिल चुका है।
आसू यह प्रसाद जी का वियोग का काव्य है। इसमें वियोगजनित पीड़ा और दुःख मुखर हो उठा है। – हर यह प्रसाद जी का भावात्मक काव्य-संग्रह है। न इसमें प्रसाद जी की छायावादी कविताएँ संकलित हैं, जिसमें सौन्दर्य आर प्रेम की अनभति साकार हो उठी है। कहानी आकाशदीप, इन्द्रजाल, प्रतिध्वनि, आदि।
साहित्य में स्थान प्रसाद जी असाधारण प्रतिभाशाली कवि थे। उनके काव्य में एक ऐसा नैसर्गिक आकर्षण एवं चमत्कार है कि सहदय पाठक उसमें रसमग्न होकर अपनी सुध-बुध खो बैठता है। निस्सन्देह वे आधुनिक हिन्दी-काव्य-गगन के अप्रतिम तेजोमय मार्तण्ड हैं।
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