जीवन-परिचय – अज्ञेय जी का जन्म सन् 1911 ई० में करतारपुर (जालन्धर) में हुआ था। इनके पिता पं० हीरानन्द शास्त्री भारत के प्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता थे। ये वत्स गोत्र के और सारस्वत ब्राह्मण परिवार के थे। संकीर्ण जातिवाद से ऊपर उठकर वत्स गोत्र के नाम से ये वात्स्यायन कहलाये।
अज्ञेय जी का शैशव अपने पिता के साथ वन और पर्वतों में बिखरे पुरातत्त्व अवशेषों के मध्य व्यतीत हुआ। माता और भाइयों से अलग एकान्त में रहने के कारण इनका जीवन और व्यक्तित्व कुछ विशेष प्रकार का बन गया। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा पुराने ढंग से अष्टाध्यायो रटकर संस्कृत में हुई।
इसके बाद इन्होंने फारसी और अंग्रेजी सीखी। इनकी आगे की शिक्षा मद्रास (चेन्नई) और लाहौर में हुई। सन् 1929 ई० में बी० एस-सी० उत्तीर्ण करने के उपरान्त ये अंग्रेजी में एम० ए० के अन्तिम वर्ष में ही थे कि क्रान्तिकारी आन्दोलनों में भाग लेने के कारण गिरफ्तार कर लिये गये। चार वर्ष जेल में और एक वर्ष घर में ही नजरबन्द रहकर व्यतीत करना पड़ा।
इन्होंने मेरठ के किसान आन्दोलन’ में भाग लिया था और तीन वर्ष तक सेना में भरती होकर असम-बर्मा सीमा पर और यहाँ युद्ध समाप्त हो जाने पर पंजाब के पश्चिमोत्तर सीमान्त पर सैनिक रूप में सेवा भी की। सन् 1955 ई० में यूनेस्को की वृत्ति पर आप यूरोप गये तथा सन् 1957 ई० में जापान और पूर्वेशिया का भ्रमण किया। कछ समय तक ये अमेरिका में भारतीय साहित्य और संस्कृति के प्राध्यापक रहे तथा जोधपुर विश्वविद्यालय में तुलनात्मक साहित्य और भाषा अनुशीलन विभाग में निदेशक पद पर भी कार्य किया।
ये ‘दिनमान’ और ‘नया प्रतीक’ पत्रों के सम्पादक भी रहे। साहित्य के अतिरिक्त चित्रकला, मृत्तिका-शिल्प, फोटोग्राफी, बागवानी, पर्वतारोहण आदि में ये विशेष रुचि लेते थे। 4 अप्रैल, 1987 ई० को इनका स्वर्गवास हो गया। इन्हें मरणोपरान्त ‘भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
साहित्यिक सेवाएँ अज्ञेय जी की रचनाओं में उनका व्यक्तित्व बहुत मुखर रहा है। वे प्रयोगवादी कवि के रूप में विख्यात हैं और उनकी प्रतिभा निरन्तर परिमार्जित होती रही है। प्रगतिवादी काव्य का ही एक रूप प्रयोगवादी काव्य के आन्दोलन में प्रतिफलित हुआ। इसका प्रवर्तन ‘तार सप्तक’ के द्वारा अज्ञेय जी ने ही किया था। इन्होंने अपने कलात्मक बोध, समृद्ध कल्पना-शक्ति और संकेतमयी अभिव्यंजना द्वारा भावना के अनेक नये अनछुए रूपों को उजागर किया। प्रमुख रचनाएँ
1. आँगन के पार द्वार,
2. सुनहले शैवाल,
3. पूर्वा,
4. हरी घास पर क्षण भर,
5. बावरा अहेरी,
6. अरी ओ करुणामय प्रभामय,
7. इन्द्रधनु रौदे हुए ये,
8.कितनी नावों में कितनी बार,
9. पहले मैं सन्नाटा बुनता हूँ,
10. इत्यलम्,
11. चिन्ता,
12. सागरमुद्रा,
13. महावृक्ष के नीचे,
14. भग्नदूत,
15. रूपांवरा,
16. नदी के बॉक पर छाया आदि
इनके प्रमुख काव्य ग्रन्थ हैं। ‘प्रिज़न डेज़ ऐण्ड अदर पोयम्स’ नाम से इनकी अंग्रेजी भाषा में रचित एक अन्य काव्य-कृति भी प्रकाशित हुई है।
साहित्य में स्थान अज्ञेय की सतत प्रयोगशील प्रतिभा किसी एक बँधी-बँधायी लीक पर चलने वाली न थी, फलत: इन्होंने काव्य के भावपक्ष तथा कलापक्ष दोनों में नये-नये प्रयोग करके हिन्दी कविता के भावक्षेत्र का विस्तार किया तथा अभिव्यक्ति को नूतन व्यंजकता प्रदान की।
अत: इनके विषय में यह नि:संकोच कहा जा सकता है कि इन्होंने हिन्दी कविता का नव संस्कार किया। ये प्रयोगवादी काव्यधारा के प्रवर्तक तथा आधुनिक हिन्दी कवियों में उच्च स्थान के अधिकारी हैं।
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